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आरएसएस तय करता है मोदी सरकार की सारी नीतियां, संविधान बचाने के लिए संघ-बीजेपी गठजोड़ को हटाना जरूरी: डी राजा

सीपीआई के राज्यसभा सांसद डी राजा का साफ मानना है कि अगर देश और संविधान को बचाना है तो बीजेपी-आरएसएस को हटाना ही होगा। देश में विपक्ष की एकता को लेकर राजा बेहदआश्वस्त हैं। देश के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर भाषा सिंह ने डी राजा से बातचीत की।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

बीजेपी पिछले साढ़े चार साल से सत्ता मेंहै। इस दौरान आपको भारतीय राजनीति में क्या मूलभूत बदलाव नजर आए?

देशबहुआयामी चुनौतियों का सामना कर रहा है। देश का संविधान बहुत गंभीर खतरे में है।लोकतंत्र,सामाजिक न्याय, संघीय शासन के सामने चुनौतियांहैं। बहुत ही गहनता के साथ कई स्तरों पर संगठित हमलों का देश ने इससे पहले कभीसामना नहीं किया था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नियंत्रण बहुतबढ़ गया है...

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सत्ता केकेंद्र में है और वह यह निर्देश देता है कि सरकार को क्या करना चाहिए। पॉलिसी केफ्रंट पर वह सीधा डील कर रहा है। विज्ञान भवन में उसने तीन दिन का कार्यक्रम कियाऔर वह पूरे राजनीतिक क्षेत्र पर हावी है। यही कारण है कि यह इस धारणा को मजबूतीप्रदान करता है कि वर्तमान सरकार आरएसएस द्वारा नियंत्रित सरकार है। आरएसएस ने कभीभी स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी नहीं की। आज हम जो भी हैं उस भारत के निर्माणमें आरएसएस का कोई योगदान नहीं है। विडंबना यह है कि आरएसएस इतिहास को फिर सेलिखना चाहता है और हिंदुत्व तथा हिंदू राष्ट्र के आधार पर राष्ट्रीयता कोपुनर्परिभाषित करना चाहता है। आंबेडकर ने जब संविधान निर्माता के रूप में संविधानका निर्माण किया तो एक बात को लेकर वह एकदम दृढ़ थे और उन्होंने एकदम स्पष्ट कहदिया था कि भारत धर्म पर आधारित राष्ट्र नहीं हो सकता। वास्तव में,उन्होंने यहां तक कहा कि यदि किसी भी तरह से हिंदू राष्ट्र एकसच्चाई बन जाता है तो यह राष्ट्र के लिए एक विपदा होगी। इसलिए, आंबेडकर ने धर्म पर आधारित राष्ट्र की अवधारणा को सिरे से नकार दिया था।उन्होंने दो दलीय व्यवस्था को भी नहीं चुना। इसी तरह आंबेडकर ने राष्ट्रपतिप्रणाली वाली सरकार के स्वरूप को भी नहीं चुना। आंबेडकर स्पष्ट थे कि भारत को एकलोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, गणतंत्र औरसंघीय राष्ट्र के रूप में उभरना चाहिए। अब आरएसएस इसके लिए खतरा पैदा कर रहा है।आरएसएस, विहिप और बजरंग दल स्पष्ट तौर पर संविधान को नष्ट कररहे हैं। उनके पास संसदीय लोकतंत्र को ध्वस्त करने के लिए बहुत ही खतरनाक डिजाइनहै। इसी वजह से सभी संस्थानों पर कब्जा किया जा रहा है और उनकी स्वायत्तता छीनी जारही है। इसी वजह से हम कह रहे हैं कि लोकतंत्र खतरे में है। यह हम सभी के लिए बड़ीचुनौती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आंबेडकर कोलगातार उद्धृत करते रहते हैं, लेकिन बीजेपी औऱ संघदलितों के खिलाफ हैं, और ऐसी धारणा लगातार पुख्ता होती जारही है।

ये लोग कभी भी दलितों-आदिवासियों या हाशियेके लोगों के दोस्त नहीं हो सकते, क्योंकि इनकीविचारधारा भेदभाव और ऊंच-नीच पर आधारित है। सामाजिक न्याय का सवाल आंबेडकर के दिलके बहुत करीब था। जब भी वह न्याय की बात करते थे, तो उनकाआशय सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक तौर पर न्याय से होता था। आंबेडकर ने संविधान मेंस्पष्ट तौर पर कहा है कि सभी नागरिकों के पास समानता, स्वतंत्रताऔर भाईचारा होना चाहिए। इस त्रयी को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। आशय है किइनसे समझौता नहीं किया जा सकता। न्याय सर्वोच्च है और हम सभी को इसकी ओर बढ़नाचाहिए। राज्य को सभी के लिए इसकी गारंटी करनी चाहिए। बीजेपी-आरएसएस गठजोड़ आंबेडकरके इस दृष्टिकोण का विरोध करता है। आंबेडकर जब जीवित थे और संविधान के निर्माण मेंप्रयासरत थे, तो इन लोगों ने उनका कड़ा विरोध किया था। अब येलोग आंबेडकर की विचारधारा का जो मुख्य आधार है उसको ही खत्म करना चाहते हैं। एकबात को लेकर हमें एकदम साफ होना चाहिए कि वर्तमान मोदी सरकार न केवल नव-उदारवादीआर्थिक नीतियों की पोषक सरकार है बल्कि नव-उदारवादी नीतियों के साथ-साथ फासिस्टसरकार भी है और यह जनविरोधी है और अपने मूल में संविधान विरोधी है। 

विपक्ष की एकता का आधार कितना पुख्ता है?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि हमें देश को बचानाहै। यह हमारे सामने पहला लक्ष्य है। सभी विपक्षी दलों को इसका अहसास है। जब मैंकहता हूं कि सभी दल, यह एकदम स्पष्ट है कि जोराजनीतिक दल धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और देश की एकता में विश्वास करते हैं, तो आप पाएंगे की व्यापक रूप से सभी विपक्षी दलों में यह समझदारी है। हमसभी चाहते हैं कि नव-आर्थिक फासीवादी हमलों से देश की रक्षा की जाए। लोकतंत्र औरहमारे देश के लिए हमारी चिंताओं को इसने एक कर दिया है। यहीं से इस आम खतरे नेहमें एकता में बांधने का काम किया। यहां यही साझा समझदारी है – और इस समझदारी से यह नारा निकला है – बीजेपी भगाओ, देश बचाओ।

लेकिन बीजेपी का मंसूबा विपक्षी एकता कोतोड़ना है, जो प्रभावी सा दिख रहा है?

जब बात चुनाव की होती है तो राज्य स्तर परसमस्या हो सकती है। जैसा कि हमने राज्यों के चुनावों में देखा। हर दल और खासकरक्षेत्रीय दलों की अपनी विशेष अहमियत है, राज्योंमें उनका दावा काफी बड़ा होता है। जब राष्ट्रीय स्तर की बात आती है, तब स्थिति बदल जाती है। इसे हमें समझना होगा। हमें आसानी से एकदम निष्कर्षपर नहीं पहुंचना चाहिए। हमारा मुख्य उद्देश्य बीजेपी को हराना होना चाहिए, देश को बचाने के लिए। विपक्षी दल एक हैं और हमें इसको लेकर कोई दुविधानहीं पालनी चाहिए।

बीजेपी अब तीसरा मोर्चा बनाने में लगी है - जैसेउत्तरप्रदेश में अमर सिंह और शिवपाल को अपने साथ कर लिया है?

बीजेपी का संघीय व्यवस्था में विश्वास नहींहै। यह सत्ता केंद्रित हो चुकी है। मोदी विकास हैं, मोदीप्रगति के समान हैं, इत्यादि। अब वह विकास पर कोई बात नहींकरते, वह रोजगार के बारे में कुछ नहीं कहते, वह गिरते भारतीय रुपये या मुद्रास्फीति अथवा आजीविका से जुड़े मुद्दों परकिसी तरह की बातचीत से बचते हैं। बीजेपी सोचती है कि विपक्षी पार्टियां एक साथनहीं आ सकतीं और इसको लेकर वे बहुत खुश हैं। वे इस तरह गणित लगाते हैं। यह उनकीकमजोरियों को दिखाता है। इससे पहले वे भ्रष्टाचार पर बात करते थे, अब वे राम मंदिर पर दांव लगा रहे हैं। लेकिन यह उन पर उल्टा पड़ रहा है,यह इसलिए कि भारतीय राज्य एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है और लोगों ने इसेकेवल इसी रूप में स्वीकार किया है। आप पूरे देश में कहीं भी राम मंदिर बना सकतेहैं। आपत्ति केवल उस जगह के बारे में है। लेकिन बीजेपी-संघ भारतीय न्यायपालिका परशिकंजा कसना चाहते हैं, इसलिए वे यह कह कर सर्वोच्च न्यायालयको चुनौती दे रहे हैं कि वह आस्था के मुद्दे को कैसे तय कर सकता है। वे मानते हैंकि आस्था संविधान से बाहर की कोई चीज है। इस तरह वे भारतीय संविधान पर सवाल उठारहे हैं। राज्य मंदिर नहीं बना सकता। वे न्यायपालिका को कब्जे में रखना चाहते हैं।न्यायपालिका देश के नागरिकों के लिए अंतिम उम्मीद है। वे न्यायपालिका पर अपने पक्षमें फैसले के लिए दबाव बना रहे हैं। यह बेहद खतरनाक है। वे संसद को निर्देशित कररहे हैं कि वह इस तरह चले। वे (संघ) सरकार को अध्यादेश लाने के लिए निर्देश दे रहेहैं। यह सब कुछ इस संविधान के तहत संभव नहीं है।

बहुत सारे लोगों का कहना होता है कि भारत कोजर्मनी (हिटलर के समय वाला) के रास्ते पर नहीं चलाया जा सकता?

भारत में जर्मनी की तरह का फासीवाद नहींलाया जा सकता। यह फासीवाद का भारतीय संस्करण है, इसकाअपना रंग और प्रकृति है। दलितों और आदिवासियों पर हमले किए जा रहे हैं- इसे आपकैसे परिभाषित कर सकते हैं। महिलाएं, बच्चे, अल्पसंख्यक खतरे में हैं। भारत ऐसा देश हैं जहां ये दक्षिणपंथी तत्व तय कररहे हैं कि क्या खाएं, क्या पहनें और क्या बोलें आदि। खतरादक्षिणपंथी तत्वों की ओर से पैदा किया जा रहा है और यह राह चलते साधारणलुच्चे-लफंगों का गिरोह का हिस्सा नहीं है - वे सत्ता में हैं। बीजेपी और संघ कामेल भारतीय फासीवाद की धुरी है।

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