पंजाब की सत्ता से बेदखल होने के बाद शिरोमणि अकाली दल में मची रार गहरी हो गई है। पंजाब में पंथक सियासत करने वाली पार्टी अब तक के सबसे गंभीर संकट से रूबरू है। पार्टी के बुजुर्ग नेता खुलकर सामने आ गए हैं। शिरोमणि अकाली दल को खड़ा करने वाले लोगों में शामिल इन वरिष्ठ नेताओं ने बगावत कर दी है। इनकी गंभीर नाराजगी पार्टी चलाने के तौर-तरीकों से है। निशाने पर सीधा पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल हैं।
सीनियर नेताओं में गुस्सा काफी समय से था, लेकिन वरिष्ठ अकाली नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींडसा के अपने सभी पदों से इस्तीफा देने के बाद धीरे-धीरे सभी खुल कर सामने आ गए। इसके बाद पंजाब के माझा क्षेत्र के दिग्गज नेता पूर्व सांसद रत्न सिंह अजनाला, खडूर साहिब से वर्तमान सासंद रणजीत सिंह ब्रम्हपुरा और गुरदासपुर से दो बार राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे सेवा सिंह सेखवां ने मोर्चा संभाल लिया।
इन नेताओं ने खुला ऐलान किया था कि वह सात अक्टूबर को पटियाला में होने वाली रैली में शामिल नहीं होंगे। और हुआ भी वही, पटियाला में हुई रैली में माझा के इन तीनों दिग्गज नेताओं के अलावा सुखदेव सिंह ढींडसा और पंजाब में पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे आदेश प्रताप सिंह कैरों भी नहीं शामिल हुए। कैरों प्रकाश सिंह बादल के दामाद और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के बेटे हैं। प्रताप सिंह कैरों को आजादी के बाद बने नए पंजाब का निर्माता कहा जाता है। वह संयुक्त पंजाब ( हिमाचल, हरियाणा और पंजाब) के मुख्यमंत्री थे।
सुखबीर के साले बिक्रम सिंह मजीठिया की वजह से कैरों परिवार भी काफी समय से खुद को हाशिए पर महसूस कर रहा है। वहीं फिरोजपुर से वर्तमान सांसद शेर सिंह घुबाया ने तो ऐलान कर दिया है कि जब तक सुखबीर बादल अकाली दल के अध्यक्ष रहेंगे, तब तक वह पार्टी चुनाव चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़ेंगे।
यह संकट कितना गहरा है इसको सुखदेव सिंह ढींडसा के इस्तीफे से समझा जा सकता है। 82 साल के ढींडसा पंजाब में मालवा के संगरूर से चुनाव लड़ते रहे और वर्तमान में राज्यसभा सदस्य ढींडसा को जब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो पार्टी की तरफ से मंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। लेकिन जब बारी आई तो मंत्री पद की शपथ ली सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर ने।
ढींडसा फिलहाल पार्टी से नाराजगी की बात पर चुप हैं, लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि, “चिट्ठी लिख दी है, जिसमें इस्तीफे की वजह बता दी है।“ ढींडसा के साथ मालवा क्षेत्र के आधा दर्जन से ज्यादा विधायक बताए जा रहे हैं।
इसी तरह चार बार विधायक और दो बार सांसद रहे रत्न सिंह अजनाला का पिछले लोकसभा चुनाव में टिकट काटकर रणजीत सिंह ब्रम्हपुरा को दे दिया गया था, जो अभी खडूरसाहिब से सांसद हैं। अब रत्न सिंह अजनाला के बेटे व पूर्व विधायक बोनी अमर पाल ने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की। बोनी ने कहा है कि, “यह 98 साल पुरानी पार्टी किसी की जागीर नहीं है। यह किसी व्यक्ति विशेष की पार्टी नहीं है। बेशक कोई किसी का साला हो या कुछ और हो। उसकी वजह से पार्टी की यदि यह हालत हुई है तो उसे सजा मिलनी चाहिए।“ बोनी अमर पाल ने सीधा हमला करते हुए कहा कि विक्रम जीत सिंह मजीठिया ने पार्टी का बेड़ा गर्क कर दिया है।
उधर सांसद रणजीत सिंह ब्रम्हपुरा के बेटे और वर्तमान में विधायक रविंदर सिंह ब्रम्हपुरा ने कहा कि, “यह पार्टी सत्ता के लिए नहीं बनी थी। क्या कारण है कि चंद साल पुरानी पार्टी (आम आदमी पार्टी) हमसे आगे हो गई और हम पंजाब में महज 15 सीटों पर सिमट गए। कोई तो इसके लिए जिम्मेदार है।“
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मसला सीधा है। सभी का निशाना सुखबीर बादल पर है। उनकी कार्यशाली वरिष्ठ नेताओं को रास नहीं आ रही है। अंदरखाने यह बात आम है कि पार्टी का मतलब सुखबीर बादल, उनकी पत्नी हरसिमरत कौर और साले बिक्रम सिंह मजीठिया हैं। इसी वजह से पटियाला रैली की कमान 91 साल के बुजर्ग प्रकाश सिंह बादल को अपने हाथ में लेनी पड़ी।
यह भी कहा जा रहा है कि नाराज सभी अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल के करीबी हैं और महज तीन लोगों तक केंद्रित हो गई पार्टी में जानबूझकर उन्हें हाशिए पर डाला जा रहा है। यही वजह है कि हालात को संभालने के लिए पटियाला रैली में सुखबीर बादल को यहां तक कहना पड़ा कि अकाली दल कोई बादल परिवार की जागीर नहीं है। पर, सुखबीर का यह बयान भी मरहम लगाता नजर नहीं आ रहा है। इस बार संकट गहरा है और सुलझता नहीं दिख रहा है। 13 लोकसभा सीटों वाले पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के वर्ततान में महज चार सांसद हैं, जिनमें से आधे बगावत पर हैं।
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