कोरोना के कारण देशभर में लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था को हो रहे भारी नुकसान के बीच आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। शक्तिकांत दास ने लॉकडाउन बढ़ने के बाद अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान से बचाने के लिए अहम घोषणाएं की। उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए कहा कि आरबीआई कोरोना वायरस को लेकर सतर्क है। रिजर्व बैंक इसकी करीब से निगरानी कर रहा है। दास ने कहा कि 2020 वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी मंदी का साल है।
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उन्होंने कहा, कोरोना के चलते दुनिया को 9 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होने की आशंका है जो कि कई विकसित देशों की अर्थव्यवस्था के बराबर है। हालांकि, उन्होंने कहा, वैश्विक मंदी के अनुमान के बीच भारत की विकास दर अब भी पॉजिटिव रहने का अनुमान है।
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आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने बताया, IMF के मुताबिक भारत की विकास दर 1.9 प्रतिशत रहेगी। यह जी-20 देशों में सबसे ज्यादा है। उन्होंने कहा, दुनियाभर की स्थिति पर हमारी नजर है। भारत ने लगातार वित्तीय नुकसान को कम करने की कोशिश जारी रखी है। आरबीआई गवर्नर दास ने कहा, 50,000 करोड़ रुपये की कीमत के TLTRO 2.0 को लॉन्च करेंगे। उन्होंने कहा, कोरोना के चलते यह सबसे काला दौर है। लेकिन हमें उजाले की ओर देखना है।
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इसके अलावा आरबीआई ने रिवर्स रेपो रेट 0.25% हटाने का फैसला किया है। अब 4 प्रतिशत से कम करके 3.75 प्रतिशत किया गया। इसके अलावा आरबीआई ने NABARD को 25 हजार करोड़, SIDBI को 15 हजार करोड़ और NHB को 10 हजार करोड़ रुपये की मदद का फैसला किया है। आपको बता दें, बैंक दिनभर के कामकाज के बाद रकम बचाकर भारतीय रिजर्व बैंक में रखती है। इस रकम पर आरबीआई बैंकों को ब्याज देता है। रिजर्व बैंक जिस दर से बैंकों को ब्याज देता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहा जाता है।
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इसके अलावा मार्केट में लिक्विडिटी मेनटेन रखने के लिए आरबीआई का बड़ा फैसला। नैशनल बैंक फॉर ऐग्रिकल्चर ऐंड रूरल डिवेलपमेंट (NABARD), स्मॉल इंडस्ट्रीज डिवेलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया और नैशनल हाउजिंग बैंक को 50 हजार करोड़ रुपए की मदद का ऐलान किया।
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आरबीआई गवर्नर ने कहा, मार्च में ऑटोमोबाइल प्रोडक्शन और सेल गिरी है और साथ ही बिजली की मांग में भी कमी आई है। साल 2020 में वैश्विक कारोबार में 13 से 32% गिरावट का अनुमान है, भारत की जीडीपी 7% से अधिक रहने के आसार है ,देश में अनाज की कोई कमी नहीं है।
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भले ही यह तकनीकी टर्म है और आरबीआई एवं बैंकों के बीच का मसला है, लेकिन इसका असर देश की अर्थव्यवस्था से लेकर आम नागरिकों तक पर होता है। दरअसल इस दर में कटौती से बाजार में नकदी की उपलब्धता बढ़ जाती है और बैंकों के पास अधिक राशि कर्ज के लिए उपलब्ध होती है। ऐसी स्थिति में वे सस्ती दरों पर कर्ज देने के लिए प्रेरित होते हैं।
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