लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लकार्जुन खड़गे ने सीबीआई निदेशक के पद से आलोक वर्मा को हटाए जाने के तरीके पर गंऊर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस किसी के पक्ष में या खिलाफ नहीं है, लेकिन कोई भी प्रक्रिया कानून के अनुसार चलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम आलोक वर्मा का बचाव नहीं कर रहे हैं। सवाल नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया को लेकर हैं। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों को सुना जाना चाहिए था, लेकिन केवल एक रिपोर्ट देखी गई और बिना दूसरे पक्ष को सुने फैसला ले लिया गया।
प्रधानमंत्री की अगुवाई वाली सेलेक्ट कमेटी के फैसले पर सवाल उठाते हुए खड़गे ने कहा कि पहले समिति की बैठक बुलाए बिना निदेशक को हटा दिया गया और फिर बैठक बुलाने के बाद भी समिति के समक्ष सभी दस्तावेज पेश नहीं किए गए। खड़गे ने साफ तौर पर कहा कि वर्मा पर जिस सीवीसी की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की गई, उसमें जस्टिस पटनायक की रिपोर्ट शामिल नहीं थी।
गौरतलब है कि आलोक वर्मा के खिलाफ सीवीसी जांच की निगरानी कर रहे रिटायर्ड जस्टिस एके पटनायक ने शनिवार को यह कहकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए कि वर्मा के खिलाफ सीवीसी रिपोर्ट में भ्रष्टाचार का कोई सबूत नहीं था। पटनायक ने कहा कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सीवीसी रिपोर्ट में कोई भी निष्कर्ष मेरा नहीं है। उन्होंने कहा, “सीवीसी ने मुझे 9 नवंबर, 2018 को राकेश अस्थाना द्वारा कथित रूप से साइन एक बयान भेजा था। लेकिन मेरा साफ कहना है कि अस्थाना का साइन किया यह बयान मेरी मौजूदगी में नहीं तैयार किया गया था।”
खास बात ये है कि पटनायक की निगरानी में ही सीवीसी ने आलोक वर्मा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की थी और उसी सीवीसी की रिपोर्ट को आधार मानकर पीएम मोदी की अगुवाई वाली सेलेक्ट कमेटी ने आलोक वर्मा को सीबीआई के निदेशक पद से हटा दिया। पटनायक ने साफ कहा कि अलोक वर्मा पर पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने जल्दबाजी में फैसला लिया है।
बता दें कि पीएम मोदी की अगुवाई वाली चयन समिति द्वारा सीबीआई निदेशक के पद से हटाए जाने के खिलाफ आलोक वर्मा ने शुक्रवार को नौकरी से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को भेजे अपने पत्र में सरकार और सीवीसी को निशाना बनाते हुए खुद को हटाए जाने की प्रक्रिया पर कई गंभीर सवाल उठाए थे। अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि सीबीआई निदेशक के पद से हटाने के पहले उन्हें अपनी सफाई का मौका नहीं दिया गया और इस पूरी प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की अवहेलना की गई और चयन समिति ने अपने फैसले में इस बात का ध्यान नहीं रखा कि सीवीसी की पूरी रिपोर्ट उस शख्स के बयान पर आधारित है, जिसकी जांच खुद सीबीआई कर रही है।
बता दें कि बीते साल अक्टूबर में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और एजेंसी में दूसरे नंबर के अधिकारी राकेश अस्थाना की लड़ाई सार्वजनिक होने के बाद मोदी सरकार ने 23 अक्टूबर की आधी रात को आलोक वर्मा को पद से हटाकर जबरन छुट्टी पर भेज दिया था। आलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करने के आदेश दे दिए थे, जबिक अस्थाना ने भी वर्मा पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाए थे। दोनों बड़े अधिकारियों के बीच हुई लड़ाई को सत्ता और अहम के टकराव की लड़ाई बताया गया था। लेकिन अंदरखाने से चर्चा ये थी कि आलोक वर्मा राफेल मामले में मिली शिकायतों पर कार्रवाई करना चाहते थे।
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