प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर, 2014 को महात्मा गांधी की याद में देश को साफ-सुथरा बनाने का संकल्प लिया और पूरा सरकारी अमला इस काम में जुट गया। इसके लिए करोड़ों के विज्ञापन दिए गए। यहां तक तो ठीक था, लेकिन उसके बाद यह सरकार आदत के मुताबिक आंकड़ों और तथ्यों की बाजीगरी करते हुए योजना की सफलता के दावे करने लगी। श्रेय लेने की होड़ में राज्यों ने करोड़ों के विज्ञापन देकर कहना शुरू कर दिया कि वे खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं। पीएम मोदी की फ्लैगशिप योजनाओं में से एक स्वच्छता अभियान की नवजीवन द्वारा पड़ताल की इस कड़ी में पेश है उत्तराखंड में इस योजना का जमीनी हाल।
उत्तराखंड की जनता को बरगलाने और राष्ट्रीय स्तर पर वाहवाही लूटने के लिए त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने लगभग दो साल पहले राज्य को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) करने की जो घोषणा की थी, उसकी पोल-पट्टी भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में खुल जाने के बाद अब राज्य सरकार ने स्वयं ही विधानसभा में अपने झूठ को कबूल कर लिया है। विधानसभा में पेयजल मंत्री प्रकाश पंत ने स्वीकार किया है कि राज्य में अभी 19 हजार से अधिक परिवार शौचालय विहीन हैं।
पेयजल मंत्री ने भी केवल हरिद्वार जिले का उल्लेख किया जबकि उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, चमोली और बागेश्वर जिलों में भी यह बात सामने आ चुकी है कि ऐसे परिवारों की संख्या अच्छी-खासी है जिनके यहां शौचालय की सुविधा नहीं दी जा सकी है। गांव-गली की तो बात छोड़िए, विधानसभा भवन तक खुले में शौच की दुर्गंध से घिरा रहता है। यही नहीं, देवभूमि को तो अब तक सिर पर मैला ढोने की मजबूरी से भी मुक्त नहीं किया जा सका है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने वाहवाही लूटने के लिए 22 जून 2017 को उतावलेपन में राज्य को खुले में शौच मुक्त घोषित करके देश में 29 प्रदेशों और 7 केंद्र शासित राज्यों में हरियाणा के बाद चौथा स्थान तो प्राप्त कर लिया, लेकिन राज्य सरकार की इस झूठी घोषणा ने उसे मजाक का पात्र बना दिया। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा सरकारी आंकड़ों को फर्जी मानने के बाद अब विधानसभा में अपने ही दल के सदस्य कुंवर प्रणव सिंह के एक प्रश्न के उत्तर में प्रदेश के पेयजल एवं वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने स्वीकार किया है कि हरिद्वार जिले में अब भी 19,375 परिवार शौचालय विहीन रह गए हैं।
पंत के अनुसार बेस लाइन सर्वे 2012 के उपरांत 8203 परिवार छूट गए थे और उसके बाद 11,172 परिवार बाद में बढ़ गए। यह सवाल केवल हरिद्वार जिले के बारे में पूछा गया था इसलिए जवाब भी हरिद्वार जिले के ही बारे में मिला, जबकि सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में राज्य सरकार के दावे को एक तरह से तार-तार ही कर डाला। विधानसभा में पेश सीएजी की रिपोर्ट में त्रिवेंद्र सरकार के दावे की पोल खोलते हुए कहा गया है कि राज्य सरकार ने 1.8 लाख लाभार्थियों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) के ऐक्शन प्लान में शामिल ही नहीं किया था।
वहीं, दावे के विपरीत सरकार की खुले में शौच मुक्ति की उपलब्धि महज 67 फीसदी थी। 22 दिसंबर, 2016 तक अल्मोड़ा जिले में 5,672 शौचालयों का निर्माण नहीं हो पाया था। वहीं 546 सामुदायिक स्वच्छता परिसर में से 63 परिसर ही बने थे। मार्च, 2017 तक इनकी प्रगति महज 11.54 फीसदी थी।
प्रधानमंत्री के इस मिशन के तहत राज्य में 4,89,108 व्यक्तिगत घरेलू शौचालय, 831 सामुदायिक स्वच्छता परिसर और 7,900 ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं का निर्माण किया जाना था। इसके अलावा, ग्रामीण स्वच्छ भारत मिशन के तहत राज्यों को हर वर्षअप्रैल में लाभार्थियों के आंकड़ों को अपडेट करना था परंतु राज्य परियोजना प्रबंधन इकाई ऐसा करने में विफल रही। इस वजह से 1,79,868 अतिरिक्त परिवार योजना में शामिल ही नहीं किए गए।
सीएजी की जांच में व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों के निर्माण के संबंध में सरकारी आंकड़ों की विश्वसनीयता भी संदिग्ध पाई गई। जांच में पाया गया कि22 दिसंबर, 2016 को खुले में शौच से मुक्त घोषित अल्मोड़ा जिले की 241 ग्राम पंचायतों को 5,672 शौचालयों के निर्माण के लिए चार दिन बाद यानी 26 दिसंबर, 2016 से 3 जनवरी, 2017 के बीच दो करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई।
खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) होने के दावे की पोल अल्मोड़ा जिले के सल्ट विकास खंड का भ्याड़ी गांव भी खोल रहा है। इस गांव में 30 परिवार शौचालय विहीन हैं। गांव के मुख्य मार्ग गंदगी से पटे रहते हैं। पिथौरागढ़ जिले में झूलाघाट क्षेत्र के मजिर कांडा ग्राम पंचायत में 54 परिवारों के पास आज भी शौचालय नहीं है। मूनाकोट विकासखंड की मजिरकांडा ग्रामसभा के ओजस्वी तोक में 54 परिवारों के पास शौचालय नहीं हैं। अठखोला में 7, सेठीगांव में 5, लेक में 10, तल्लीम जिरकांडा में 4, मल्लीमजिरकांडा में 10, बनाड़ा में 5 और झूलाघाट के 13 परिवार खुले में शौच करते हैं।
खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित हुए उत्तरकाशी जनपद को दो साल से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन अभी जिले में 2 हजार 151 परिवार के शौचालय बनने से छूटे हुए हैं। जबकि परिवारों के बढ़ने से 4664 शौचालयों के निर्माण अभी और होने बाकी हैं। ऐसे में उत्तरकाशी जिले में खुले में शौच मुक्ति का मुख्यमंत्री का दावा मजाक बन कर रह गया है। महात्मा गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद पहली बार हरिद्वार पहुंचे थे तो उन्हें वहां खुले में शौच की प्रवृत्ति से काफी दुख हुआ था जिसका जिक्र उन्होंने अपनी डायरी में किया है।
विधानसभा भवन मुख्यमंत्री की सपनों की ऋषिपर्णा (रिस्पना) के किनारे बना हुआ है और इस बरसाती नाले में खुले में शौच के कारण इतनी दुर्गंध रहती है कि विधानसभा भवन का चक्कर लगाते समय नाक बंद करनी पड़ती है। इसी तरह, हरिद्वार को खुले में शौच से मुक्त करना तो दूर की बात है, सिर पर मैला ढोने से भी मुक्त नहीं कराया जा सका है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के समक्ष गत दिनों हरिद्वार में सिर पर मैला ढोने वालोंकी संख्या135 बताई गई। वैसे, देहरादून में भी ऐसे लोगों की संख्या आठ बताई जाती है।
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