भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई ने कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था को मार्च से पहले यानी कोरोना संकट से पहले वाली स्थिति में पहुंचने में लंबा वक्त लगेगा और यह सब इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार मांग और खपत बढ़ाने के लिए क्या उपाय कर रही है। मंगलवार को जारी ताजा रिपोर्ट में आरबीआई ने कहा कि भारत को सतत विकास की राह पर लौटने के लिए तेजी से और अधिक व्यापक आर्थिक सुधारों की जरूरत है। आरबीआई ने कहा कि, “साल के दौरान अबतक सकल मांग के आकलन से पता चलता है कि खपत पर असर काफी गंभीर है और इसके पटरी पर लौटकर कोरोना काल के पहले के स्तर पर आने में लंबा समय लगेगा।“
आरबीआई की रिपोर्ट बताती है कि इस दौरान सबसे ज्यादा मुश्किलों की मार गरीब तबके पर पड़ी है। आरबीआई के मुताबिक खरीदारी के रुझान बताते हैं कि लोगों ने मनमर्जी खरीदारी बंद कर दी है और इसके त्योहारी सीजन में भी बढ़ने की संभावना नहीं है। रिजर्व बैंक का कहना है कि सर्विस सेक्टर, परिवहन, होटल, मनोरंजन और सांस्कृतिक गतिविधियों पर विशेष रूप से गहरा असर हुआ है। गौरतलब है कि इन क्षेत्रों का देश की जीडीप में करीब 60 प्रतिशत हिस्सा होता है।
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आरबीआई के मुताबिक, “कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित मांग को बढ़ा सरकारी खपत से सहारा मिल सकता है, वहीं निजी खपत मांग में सुधार को तभी आगे बढ़ाएगी जब यह मजबूत होगी।“ आरबीआई का कहना है कि जब तक खर्च योग्य आमदनी नहीं बढ़ेगी और लोग मनमर्जी से खर्च करने की स्थिति में फिर से नहीं आ जाते हैं तब तक जरूरी खर्च के जरिए ही निजी मांग बढ़ेगी।’
हालांकि आरबीआई ने आर्थिक वृद्धि का अनुमान नहीं दिया है। लेकिन उसने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के 2020-21 में 3.7 प्रतिशत और ओईसीडी (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) के 7.3 प्रतिशत गिरावट के अनुमान का जिक्र किया है। ध्यान रहे कि देश की आर्थिक वृद्धि दर कोरोना महामारी से पहले ही नरम पड़ गई थी। देश की जीडीपी वृद्धि दर 2019-20 में 4.2 प्रतिशत रही जो एक दशक पहले वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से सबसे कम है। पहली तिमाही का जीडीपी आंकड़ा 31 अगस्त को जारी होगा। वैश्विक तथा घरेलू एजेंसियों ने अर्थव्यवस्था में 20 प्रतिशत तक की गिरावट का अनुमान जताया है।
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आरबीआई का कहना है कि, “संकेतक बताते हैं कि गतिविधियों में कमी ऐतिहासक रूप से अभूतपूर्व है।“ रिपोर्ट के अनुसार, “देश के कई हिस्सों में ‘लॉकडाउन’ में ढील के बाद मई और जून में जो तेजी दिखी थी, वह जुलाई और अगस्त में हल्की पड़ती नजर आई। इसका कारण कुछ क्षेत्रों में फिर से ‘लॉकाउन’ लगाया जाना या कड़ाई से उसका पालन करना रहा। यह बताता है कि आर्थिक गतिविधियों में गिरावट दूसरी तिमाही में भी बनी रहेगी।“
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आरबीआई के मुताबिक महामारी का विश्व अर्थव्यवस्था गहरा प्रभाव पड़ेगा। भविष्य इस बात पर निर्भर है कि कोविड-19 महामारी कितनी तेजी से फैलती है, कब तक बनी रहती है और टीके की खोज कब तक होती है। रिजर्व बैंक का मानना है कि, “महामारी के बाद के हालात में तेजी से और व्यापक सुधारों की जरूरत होगी। उत्पाद बाजार से लेकर वित्तीय बाजार, कानूनी ढांचे और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के मोर्चे पर व्यापक सुधारों की जरूरत होगी। तभी विकास दर में गिरावट से उबरा जा सकता है और अर्थव्यवस्था को वृहद आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के साथ मजबूत और सतत वृद्धि की राह पर ले जाया जा सकता है।’
रिपोर्ट आगाह करती है कि केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के पास वैश्विक वित्तीय संकट में उपलब्ध संसाधनों के मुकाबले कोरोना वायरस से निपटने को लेकर काफी कम गुंजाइश है। ऐसे में महामारी के दौरान कर्ज और आकस्मिक देनदारियों के कारण राजकोषीय नीति का रास्ता भी मुश्किल भरा होगा।
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