राजस्थान में सीकर-जयपुर-झुनझुनू इन तीन जिलों के लगभग 150 गांवों में फैली पत्थर खदान और स्टोन क्रशर की पट्टी है। इस पट्टी में ही बसा है शुक्लावास गांव (जिला जयपुर)। यहां के निवासी राधेश्याम बताते हैं, “खदानों में अवैध ढंग से ब्लास्टिंग इतनी जोर की होती है कि अनेक मकानों में दरारें पड़ गई हैं। धूल इतनी उड़ती है कि मजदूरों में ही नहीं, गांव के लोगों में भी सिलिकोसिस जैसी गंभीर बीमारी फैल रही है। जल-स्तर नीचे जा रहा है। पानी प्रदूषित हो रहा है। खेती की पैदावार पहले की अपेक्षा बहुत कम हो गई है।”
यह स्थिति केवल एक गांव की नहीं अपितु खदान और क्रशर प्रभावित अधिकांश गांवों की है। खदानें अवैध ढंग से आबादी के पास चल रही हैं जिससे न केवल मकानों में दरारे आती हैं अपितु अनेक लोगों का जीवन भी खतरे में पड़ गया है। अनेक परिवारों को ब्लास्टिंग के समय देर तक घर से बाहर रहना पड़ता है। वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश मीणा बताते हैं कि विनाशक खदान से जुड़ी अनेक मौतें इस क्षेत्र में होती रहती हैं।
सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि खदानों द्वारा नियम कानूनों के उल्लंघन की शिकायतें गांववासी बार-बार करते हैं तो भी उनकी शिकायतों पर ध्यान ही नहीं दिया जाता है। इतना ही नहीं, शान्तिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन करने वाले गांववासियों का ही उत्पीड़न किया जाता है। हाल की एक वारदात में भराला-महावा गांवों (सीकर जिले) में शान्तिपूर्ण विरोध कर रही एक महिला का लाठीचार्ज में हाथ फ्रैक्चर हो गया और उसे तथा एक अन्य महिला को जेल भेजा गया। जब खनन और पर्यावरण कानूनों के सही क्रियान्वयन की मांग उठाने वाले गांववासियों से ऐसा व्यवहार हो तो यह सवाल उठाना जरूरी हो जाता है कि यहां कानून व्यवस्था का राज है या खनन माफिया की मनमानी का राज है।
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यह स्थिति तब और भी असहनीय हो जाती है जब माफिया राज में असमाजिक तत्त्व हावी होने लगते हैं। शान्ति देवी ने बताया, “हमारी परेशानियां बहुत बढ़ गई हैं, पर हम तो कुछ बोल भी नहीं पा रहे हैं।” असमाजिक तत्त्वों का डर यहां बहुत फैल गया है। राधेश्याम कहते हैं कि हमने अपने गांव को नशा-मुक्त बनाने का बहुत प्रयास किया था, शराब का ठेका नहीं आने दिया, पर अब असमाजिक तत्त्वों के हावी होने से कई जगह अवैध शराब बिक रही है। इस कारण महिलाओं की असुरक्षा बहुत बढ़ गई है और उनके विरुद्ध कई गंभीर अपराध हाल के समय में हुए हैं।
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यदि यही स्थिति चलती रही तो स्वास्थ्य, पर्यावरण औरआजीवका की बढ़ती तबाही के साथ अनेक गांव उजड़ने लगेंगे। गांववासियों की वर्तमान पीढ़ी और भावी पीढ़ियों की रक्षा के लिए यह जरूरी है कि अनियंत्रित खनन और स्टोन क्रशरों पर समुचित रोक लगाई जाए और सभी कार्यों को कानूनों की परिधि में किए जाएं। पर क्या जिस तरह यहां कानून व्यवस्था के दिन-प्रतिदिन उल्लंघन की स्थिति देखी जा रही है, उसमें यह संभव हो पाएगा? अरावली जैसी प्राचीनतम और पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील पर्वत श्रृंखला में भी यदि पर्यावरण की ऐसी तबाही होती रही तो फिर देश के पर्यावरण की रक्षा के प्रति विश्वास कैसे उत्पन्न होगा?
(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। यह लेखक के अपने विचार हैं और इनसे नवजीवन की सहमति अनिवार्य नहीं है।)
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