किसान समस्या और आर्थिक स्थिति राजस्थान में भी चिंताजनक है, लेकिन ऐसा लगता है कि यहां अगली सरकार को रोजगार पर फोकस तुरंत ही करना होगा। यह इन चुनावों में बड़ा मुद्दा भी रहा है।
यहां भी सरकार ने एमओयू तो बहुत किए, लेकिन धरातल पर काम कम ही हुए। इससे रोजगार की स्थिति में सुधार नहीं आ पाया। वसुंधरा राजे सरकार ने इस वर्ष मार्च-अप्रैल में बड़े पैमाने पर सरकारी भर्तियों के वादे किए थे। करीब एक लाख भर्तियां करने की प्रक्रिया शुरू भी हुई थी। इनमें से कुछ भर्तियां तो हो गईं, लेकिन अब भी करीब आधी भर्तियां लंबित हैं।
राजस्व को लेकर पिछली सरकार काफी परेशान रही थी। इसके अलावा आय के अन्य स्रोतों में भी नोटबंदी और जीएसटी के कारण कमी आई थी। नई सरकार को आय के नए स्रोतों पर तुरंत ध्यान देना होगा। इसका एक बड़ा कारण किसानों के कर्ज माफी के वादे भी है। कांग्रेस ने सत्ता में आने के 10 दिनों के भीतर कर्ज माफी का वादा किया है। बीजेपी ने चुनाव से पहले ही कर्ज माफी शुरू की थी, हालांकि उसका लाभ अधिकांश किसानों तक नहीं पहुंचा है। उस समय सरकार ने इस पर 9 हजार करोड़ के खर्च का अनुमान लगाया था, लेकिन इतने पैसे सरकार के पास नहीं थे। अब इस वादे को पूरा करने के लिए तुरंत पैसे की व्यवस्था करनी होगी।
बाड़मेर में बन रही रिफाइनरी यहां के लोगों की उम्मीदों का केंद्र है। कांग्रेस सरकार ने इसका शिलान्यास कराया तो बीजेपी ने चार साल तक काम रोके रखा। लेकिन चुनाव का मौसम नजदीक देखकर पिछले साल दिसंबर में इसका काम शुरू हो गया। यह भी दोनों दलों का मुद्दा है, इसलिए उम्मीद करनी चाहिए कि नई सरकार की प्राथमिकता में यह काम होगा।
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बजरी खनन पर सुप्रीम कोर्ट की रोक लगी हुई है। राजस्थान के लोगों के लिए यह परेशानी का बड़ा कारण है। रोक के कारण बजरी की कालाबाजारी हो रही है और दाम आसमान छू रहे हैं। आम लोग तो परेशान हैं ही, इसके चलते सरकारी परियोजनाएं भी देरी से चल रही हैं और उनकी लागत भी बढ़ रही है। जो भी सरकार बने, उसे सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट से यह रोक हटवाने पर ध्यान देना होगा। ऐसे में देखना होगा कि अवैध खनन करने वालों के दबाव में नई सरकार कितनी रहती है।
दक्षिण पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों में पेयजल और सिंचाई की समस्याओं को दूर करने के लिए बीजेपी सरकार ने पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना तैयार की है। केन्द्रीय जल बोर्ड इसकी सैद्धांतिक मंजूरी दे चुका है। केन्द्र सरकार से इसकी मंजूरी बाकी है। इस परियोजना को दोनों दलों ने अपने घोषणा पत्रों में शामिल किया है। किसी भी नई सरकार को इसके लिए प्रयास करना होगा। यह 37 हजार करोड़ की परियोजना चंबल और इसकी सहायक नदियों के पानी को पेजयल संकट से जूझते जिलों तक पहुंचा सकती है।
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