दीपावली का त्यौहार आने वाला है। आमतौर पर इस त्यौहार में दीपकों के बाजार को सपोर्ट मिलता है। राजस्थान के जोधपुर में भी दीपावली के नजदीक आते ही कुम्हारों को अधिक मात्रा में दीपकों को तैयार करने का ऑर्डर मिलता है। लेकिन बाजार में इलेक्ट्रॉनिक आइटम आने से उनको नुकसान उठाना पड़ रहा है।
जैसे-जैसे दीपावली नजदीक आ रही है वैसे-वैसे बाजारों में रंग-बिरंगे दीपकों को बेचने के लिए कुम्हार इसको अपने घरों में सुबह से शाम तक तैयार करने में लगे रहते हैं। वैसे तो बाजार में रंग-बिरंगी चाइनीज लाइट भी हैं, लेकिन दीपकों की अपनी डिमांड है। हालांकि दीपक बनाने के पेशे से जुड़े लोगों का मानना है कि बाजार में इलेक्ट्रॉनिक आइटम के आने से उनके व्यवसाय को परेशानी उठानी पड़ रही है।
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मिट्टी के दीपकों को तैयार करने वाले कुम्हार धर्मेंद्र ने बताया कि दीपक को तैयार करने के लिए एक खास तरह की मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। यह मिट्टी टूटती कम है, जिससे आसानी से मिट्टी के बर्तन तैयार किए जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि सरकार ने इस मिट्टी पर टैक्स लगा दिया, जिससे यह महंगी हो गई । लेकिन फिर भी दीपावली पर दीपकों की भारी मांग के कारण इसको पड़ोस के गांव से लाते हैं और उसके बाद पानी में भिगोकर दीपक बनाते हैं। उन्होंने सरकार से मांग की है कि इसपर लगने वाला टैक्स बंद कर दे और जहां से हम मिट्टी लेकर आते थे, उसको लाने दिया जाए।
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उन्होंने आगे कहा कि दीपकों को बनाने का काम हमारी दो-तीन पीढ़ी पहले से चल रहा है, पहले यह काम सही से चल रहा था, लेकिन अब 50 प्रतिशत का अंतर आ गया है। कुम्हार जाति को अपने पुश्तैनी धंधा चलाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, हकीकत यह है कि अधिकांश कुम्हार दीपक बनाने का कार्य छोड़ चुके हैं। अब सिर्फ गिने चुने ही लोग अपने घर में चौक से दीपक बनाते हैं और उससे हो रही आमदनी में अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं।
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