एक तरफ देश ‘आर्थिक मंदी’ से जूझ रहा है, वहीं विदेशों में भी भारतीय मजदूरों की संख्या कम होने लगी है। ऐसा तब हो रहा है जब देश के प्रधानमंत्री लगातार विदेशों का दौरा कर रहे हैं और कहा जा रहा है कि विदेशों में देश का सम्मान बढ़ रहा है, नौकरियां बढ़ रही हैं और संबंध बेहतर हो रहे हैं।
जीसीसी यानी गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) के खाड़ी देशों से भारतीय मजदूरों का संबंध काफी पुराना है। लेकिन पिछले कुछ सालों में मजदूरों/कामगारों की संख्या में भारी गिरावट देखने को मिल रही है। सरकार के खुद के आंकड़ें बताते हैं कि खाड़ी देशों में भारतीय मजदूरों की संख्या में करीब 60 फीसद की गिरावट आई है।
सरकार के आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच सालों में सबसे अधिक गिरावट सऊदी अरब और यूनाइटेड अरब अमीरात में देखने को मिल रही है। ये वही सऊदी अरब है, जहां के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान हाल के दिनों में भारत दौरे पर आए थे और पीएम मोदी को अपना बड़ा भाई बताया था। और ये वही यूनाइटेड अरब अमीरात है, जिसने 25 अगस्त 2019 के दिन पीएम मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ ज़ायेद' से नवाजा है।
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राज्यसभा में एक लिखित सवालों का जवाब देते हुए विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने जो आंकड़ें उपलब्ध कराए हैं, उसके मुताबिक साल 2014 में सऊदी अरब में काम वाले मजदूरों की संख्या 3 लाख 30 हजार थी, लेकिन साल 2018 में ये संख्या सिर्फ 72 हजार रह गई है। यही हाल यूनाइटेड अरब अमीरात का भी है। यहां साल 2014 में 2 लाख 24 हजार मजदूर काम करते थे, लेकिन साल 2018 में ये संख्या सिर्फ एक लाख 12 हजार रह गई है। बता दें कि ये आंकड़ें सिर्फ ईसीआर श्रेणी के पासपोर्ट धारकों के हैं। ईसीआर श्रेणी के पासपोर्ट धारक ज्यादातर राजमिस्त्री, श्रमिक, सहायक, बढ़ई, इलेक्ट्रीशियन आदि कामों के लिए जाते हैं। और जीसीसी देशों में कुवैत, कतर, बहरीन, ओमान, सऊदी अरब और यूनाइटेड अरब अमीरात शामिल हैं।
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केरल के त्रिस्सूर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस सांसद टी.एन. प्रथापन के सवाल के जवाब में केन्द्र सरकार का कहना है कि ‘अपने नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने की खातिर जीसीसी देश एक ऐसी नीति का अनुसरण कर रहे हैं जिसमें नौकरी का कुछ हिस्सा आरक्षित रखना अनिवार्य है। भारत सरकार इस क्षेत्र में उभरती प्रवृतियों और भारतीय प्रवासी कामगारों पर पड़ने वाले इसके प्रभाव पर ध्यान रखती है। सरकार जीसीसी देशों के समन्वयन से भारतीय कामगारों के हितों और कल्याण की रक्षा करने के लिए कार्य कर रही है, उन्हें हर प्रकार की सहायता दी जाती है।’ लेकिन ये सहायता किस प्रकार की जाती है, सरकार के पास इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है।
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यहां बता दें कि भारत सरकार का विदेश मंत्रालय 18 अधिसूचित ईसीआर देशों में जाने वाले ईसीआर श्रेणी के पासपोर्ट धारकों से संबंधित आंकड़े रखता है। इन 18 देशों में जीसीसी देशों सहित अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, इराक, जॉर्डन, लेबनान, लीबिया, मलेशिया, सूडान, दक्षिण सूडान, सीरिया, थाईलैंड और यमन का नाम शामिल है। आंकड़ों की मानें तो इन तमाम देशों में भारतीय कामगारों की संख्या साल दर साल गिरती ही जा रही है। बल्कि इन 18 देशों में से 7 देशों में एक भी ईसीआर श्रेणी का पासपोर्ट धारक साल 2018 में भारत से काम करने के लिए नहीं गया है।
18 अधिसूचित ईसीआर देशों में जाने वाले ईसीआर श्रेणी के पासपोर्ट धारकों की संख्या
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क्या सरकार खाड़ी देशों में रोजगार खोने वाले लोगों का पुनर्वास करने के लिए तैयार है? टी.एन. प्रथापन के इस सवाल पर विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन का कहना था कि ‘जहां तक लौटकर आने वाले कामगारों के पुनर्वास का संबंध है, तो यह मुद्दा मूल रूप से राज्य सरकारों के क्षेत्राधिकार में है। इस संबंध में सरकार राज्यों को अपेक्षित सहयोग देने के लिए हमेशा तैयार रहती है।’ तो इस प्रकार सरकार ने खाडी़ देशों में रोजगार खोने वाले भारतीयों के पुनर्वास से भी अपना पल्ला झाड़ लिया।
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