किसी भी देश और समाज के निर्माण में मीडिया काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यही वजह है कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है। मीडिया की जिम्मेदारी देश और लोगों की समस्याओं को सामने लाने के साथ-साथ सरकार के कामकाज पर नजर रखना भी है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में मीडिया की कार्यप्रणाली और रुख पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। सवाल यह है कि क्या मीडिया बदल रहा है? इसमें दो राय नहीं कि मीडिया के काम करने के तरीके और चरित्र में बहुत बदलाव आया है। देश के ज्यादातर मीडिया में सिवाए सत्ता पक्ष के कुछ और नहीं दिखाया जा रहा है। आलम यह है कि पत्रकार से लेकर कई बुद्धिजीवी तक लोगों को मीडिया से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं।
सोशल मीडिया पर कई ऐसे मैसेज वायरल हो रहे हैं जिसमें मीडिया से दूरी बनाने की बात कही जा रही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मीडिया अपने दायित्व को भूल कर सत्ता पक्ष का गुणगान करने में लगा हुआ है। जिस मीडिया का काम सरकार से सवाल पूछने का था वो आज प्रोपेगेंडा और खबरें प्लांट करने में लगा हुआ है। ऐसे में लोगों को न्यूज चैनल न देखने की अपील की जा रही है। कई बड़े पत्रकारों से लेकर समाजसेवी तक न्यूज चैनलों से दूरी बनाने की सलाह दे रहे हैं।
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रविवार को दिल्ली में दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन से जुड़ी शिवानी ने भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को पक्षपाती चैनलों को न देखने की शपथ दिलाई। उन्होंने सभी से अपील की कि ऐसे चैनलों को न देखें जो सत्ता के साथ है और असली मुद्दों पर बात नहीं करती है।
हाल ही में वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने भी लोगों से चुनाव होने तक न्यूज चैनल न देखने की अपील की थी। उनके अलावा अखबार और टीवी जगत के कई बड़े पत्रकार मीडिया की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं।
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