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सजा की बजाय ईनाम मिला एम के सिंह को, बनाए गए बीएचयू के चीफ प्रॉक्टर

प्रो एम के सिंह की नियुक्ति विश्वविद्यालय के नियमों का उल्लंघन है। इस समय उनके पास तीन अहम कार्यभार हैं। विश्वविद्यालय के प्राध्यापक इस बात से नाराज हैं कि उन्हें सजा देने की जगह ईनाम दिया गया है।



बीएचयू के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी/ फोटो: Twitter
बीएचयू के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी/ फोटो: Twitter 

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्र अधिष्ठता यानी डीन ऑफ स्टूडेंट्स और आईएमएस व सरसुंदरलाल चिकित्सालय के नेत्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. एम.के. सिंह को चीफ प्रॉक्टर बनाया गया है, क्या यह विश्वविद्यालयों के नियमों के हिसाब से सही है ? साथ ही एक सवाल और है कि एम.के. सिंह डीन ऑफ स्टूडेंट थे, इनके ऊपर छात्र-छात्रों की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी, जिसमें वह चूके। इसके बाद उन्हें दंड़ित करने के बजाय डीन ऑफ प्रॉक्टर क्यों बनाया गया। उनकी इस पदोन्नति केपीछे वीसी गिरीश चंद्र त्रिताठी का क्या दांव है?

Published: 28 Sep 2017, 6:09 PM IST

बीएचयू केलैंडर के मुताबिक, उनकी नियुक्ति विश्वविद्यालय के नियमों का उल्लंघन है। इस समय प्रो. एम.के. सिंह के पास तीन अहम कार्य़भार हैं, जबकि विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों ने नवजीवन को बताया कि यह बीएचयू के नियमों के खिलाफ है और सजा देने के बजाय एन.के.सिंह को ईनाम देने परिसर में खासी नाराजगी है।

साथ ही जिस समय छेड़खानी के खिलाफ छात्राओं का आंदोलन हुआ उस समय प्रो. एम.के सिंह डीन ऑफ स्टूडेंट थे और उनके जिम्मे ही था छात्रों की सुरक्षा की गारंटी करना। इस जिम्मेदारी में वह पूरी तरह से चूकें। जिस तरह से चीफ प्रॉक्टर को छात्रों के आंदोलन से सही ढंग से न पेश आने के लिए हटाया गया, उसी तरह से प्रो. एम.के. सिंह को भी हटाया जाना चाहिए था। बताया जाता है कि इस मामले में बीएचयू के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने अपने विश्वसनीय प्रो.एम.के .सिंह को आनन-फानन में चीफ प्रॉक्टर बना कर प्रशासन की पूरी कमान अपने ही पास रखी है।

गौरतलब है कि बीएचयू में जब छात्राए विरोध में उतरी हुई थी औऱ लाठीचार्ज आदि हो रहा था, उस समय भी कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी अपने चेहेतों की भर्ती कर रहे थे। इनमें से यौन शोषण के आरोपी डॉ. ओ.पी. उपाध्याय को मेडिकल सुप्रिटेंडेंट बनाए जाने का मामला सामने आ ही चुका है। डॉ. उपाध्याय का साक्षात्कार 25 सितंबर को लिया गया। फिजी में एक महिला के ऊपर यौन शोषण का आरोप उन पर सिद्ध हो चुका है, और इसके बाद भी उन्हें इस तरह से साक्षात्कार के लिए बुलाया जाना और कुलपति द्वारा उनकी नियुक्ति की कोशिश करने से साफ है कि जाते-जाते भी गिरीश चंद्र त्रिपाठी अपने लोगों को भरने के काम में लगे हुए हैं।

अभी आरोप लग रहा है कि आनन-फानन में बहुत सी नियुक्तियां की गई। गत 17 सितंबर को सहायक कुल-सचिव पद के लिए लिखित परीक्षा हुई। इसके बाद 22 सितंबर को देर रात इसका परिणाम घोषित किया गया और चुने ही अभ्यार्थियों को 24-25 सितंबर को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। इस पूरे प्रकरण पर कई प्राध्यापकों ने कड़ी आपत्ति की, क्योंकि नियमों के मुताबिक इंटरव्यू के लिए चुने गए अभ्यार्थियों को 21 दिन पहले पत्र भेजकर सूचित करने का नियम है। इस पूरी प्रक्रिया पर आपत्ति आने की वजह से अभी बीएचयू प्रशासन कुछ भी नहीं बोल रहा है। इंटरव्यू हुआ है और नियमों का उल्लंघन करते हुए हुआ है, इसके बारे में नवजीवन को कई प्राध्यापकों ने बताया।

Published: 28 Sep 2017, 6:09 PM IST

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Published: 28 Sep 2017, 6:09 PM IST