तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़) में कांग्रेस सरकारों द्वारा किए गए कर्ज माफी की आलोचना की जा रही है। जो लोग आलोचना कर रहे हैं उनका मुख्य तर्क ये है कि कांग्रेस की सरकारों ने कर्ज माफी तो दे दी है लेकिन उसके लिए संसाधन कहां से आएंगे ? इसका सीधा सा जवाब ये है कि जब हम उद्योगों की स्थापना के लिए संसाधन खर्च कर सकते हैं, उद्योंगों को रियायत दी जा सकती है, कॉरपोरेट सेक्टर को छूट दी जा सकती है तो फिर कृषि क्षेत्र को संसाधन क्यों नहीं दिया जा सकता ? उस क्षेत्र को रियायत क्यों नहीं दी जा सकती जिससे देश की 70 फीसदी की आबादी जुड़ी हुई है। असल में बात प्राथमिकता की है। हमारे देश का इतना बड़ा तबका संकट में डूबा है और हम इसके लिए कुछ करना चाहते हैं या नहीं- ये प्राथमिकता की ही बात है।
चलिए मान लेते हैं कि संसाधन नहीं भी हैं तो उन्हें पैदा कीजिए। सरकारों का आखिर काम क्या है ? लोककल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी आखिर क्या है ?
कृषि क्षेत्र को तत्कालीन राहत पहुंचाने के लिए कर्ज माफी करना ही होगा और न केवल कर्ज माफी बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य को भी देखना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में अगर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश किया जाए तो इससे रोजगार का भी सृजन होगा। ईमानदारी की बात ये है कि संसाधन का सवाल पॉलिटिकल विल (राजनीतिक इच्छाशक्ति) से जुड़ा हुआ है। अगर आपके पास राजनीतिक इच्छा शक्ति है तो संसाधन भी पैदा हो जाएंगे। आप प्राथमिकता तय कीजिए कि राज्य में जो संसाधन हैं या जो पैदा हो रहे हैं उसे कहां खर्च किया जा रहा है।
कर्ज माफी की वजह से कृषि क्षेत्र में आए संकट का पूरा समाधान तो नहीं होगा पर तत्कालीन लेकिन बड़ी राहत मिलेगी। मोदी सरकार द्वारा लागू की गई योजनाओं- नोटबंदी और जीएसटी ने भी असंगठित क्षेत्र पर बहुत बुरा असर डाला था। कृषि क्षेत्र भी इसी असंगठित क्षेत्र में ही आता है। इन दोनों योजनाओं की वजह से किसानी का संकट और गहरा गया था। कहने की जरूरत नहीं कि ऋण माफी किसानों को राहत मिलेगी।
आपको पता होगा कि हमारे देश में असंगठित क्षेत्र ही 93 प्रतिशत वर्क फोर्स को काम देता है। जब कृषि क्षेत्र में ही संकट में डूबा है तो जाहिर है उसका असर कुछ प्रतिशत को छोड़कर पूरी आबादी पर पड़ता है। कृषि क्षेत्र में संकट की वजह से मांग कम हो जाती है और जब मांग कम हो जाती है तो उसका असर कीमत पर भी पड़ता है। कीमत कम होने का सीधा असर आय पर पड़ता है। जब कीमत कम होती है तो आय भी कम हो जाती है।
दूसरी बात ये है कि जो व्यापारी हैं किसानों का उत्पाद खरीदते हैं और ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री के लोग, वो अपनी प्रॉफिट मार्जिन (लाभ में हिस्सेदारी) कम नहीं करते। इस हिसाब से देखा जाए तो किसानों के सामने दोहरा संकट है। एक तरफ तो उसकी आय कम हो गई है क्योंकि कीमतें कम हो गई हैं दूसरी तरफ उसका कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन यानि लागत बहुत बढ़ गई है। किसान इससे उबरने के लिए सेठ साहूकारों से कर्जा लेता है और फिर इसके चक्र में फंसता चला जाता है। आपने खबरों में देखा होगा कि बहुत से किसानों ने सेठ-साहूकारों का कर्जा न उतार पाने की वजह से आत्महत्या की है। आय कम होने की वजह से जो किसानों के सामने संकट खड़ा हुआ है उसका तत्कालीन उपाय है कर्ज माफी ही है इसके अलावा कोई दूसरा इलाज नहीं है। कर्ज माफी बेशक शॉर्ट टर्म उपाय है लेकिन राहत तो मिल ही रही है।
सरकारों को लांग टर्म उपाय भी करने होंगे। इसके लिए चरण बद्ध तरीके से कुछ कदम उठाने होंगे। जैसे ऐसे कॉपरेटिव स्थापित किए जाएं जिससे किसान सीधे उपभोक्ता के संपर्क में आ जाएं और शहरी बाजारों में अपने उत्पाद को बेच सके। इससे किसानों को उत्पाद की सही कीमत मिलेगी। लांग टर्म उपाय के तहत ही ट्रेड और ट्रांसपोर्टर्स के प्रॉफिट मार्जिन को कम करने की जरूरत है। किसान खेत में अपने जिस उत्पाद के लिए एक रूपये प्रति किलो की कीमत हासिल करता है, उसे व्यापारी बाजार में बीस रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं। इस चक्र को खत्म करने के लिए ऐसे कॉपरेटिव स्थापित किए जाने चाहिए जिनके माध्यम से किसान अपने उत्पादों को सीधे शहरी उपभोक्ताओं तक पहुंचा सके।
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कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन है यानि लागत की कीमत को भी कम करने की जरूरत है। इसके लिए पानी बिजली, खाद की कीमत कम किए जाने चाहिए।
तीसरा लॉग टर्म उपाय ये है कि जो फसल बर्बाद हो जाती है उसका मुआवजा ठीक से मिलना चाहिए। मोदी सरकार ने फसल बीमा की महत्वाकांक्षी योजना का ऐलान किया है लेकिन उसे ठीक से लागू नहीं किया जा सका है। जो फायदा किसानों को मिलना चाहिए उसका फायदा बीमा कंपनियां उठा रही हैं। ये ख़बर बार-बार आ रही है कि फसल बीमा का मुआवजा ठीक से मिल नहीं रहा है। इसे नीतिगत स्तर पर इसे ठीक करना चाहिए। तो लक्ष्य यही होना चाहिए कि लॉग टर्म में इस समस्या को दूर किया जाए। क्योंकि अगर इसे शॉर्ट टर्म में ठीक करके छोड़ दिया जाए तो समस्या फिर से खड़ी हो जाएगी। लेकिन तत्कालीन संकट को दूर करने के लिए कर्ज माफी बिल्कुल ठीक कदम है।
(विश्वदीपक से फोन पर हुई बातचीत पर आधारित)
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