जब 2019 समाप्त होने का था, लगभग उसी समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाय) के तहत एक करोड़ घरों को आवंटित करने के लिए बधाई दी थी। मोदी ने ट्वीट किया थाः यह शहरी गरीबों और मध्य वर्ग के लिए गौरवपूर्ण उपलब्धि है। यह प्रयास पारदर्शिता, टेक्नोलाॅजी के उपयोग और त्वरित कार्यान्वयन से संभव हो पाया है। केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी ट्वीट कियाः साफ नीयत, सही विकास। इसे लेकर प्रधानमंत्री की मुस्कुराती तस्वीर वाला एक पोस्टर भी हैः हमने सपना देखा है कि जब आजादी के 75 साल हों, तब हिन्दुस्तान के गरीब से गरीब का अपना घर हो।
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लेकिन प्रधानमंत्री के अपने ही गृह प्रदेश गुजरात, के वड़ोदरा की जमीनी सच्चाई कुछ दूसरी ही कहानी बताती है। पिछले कुछ दिनों से वड़ोदरा नगरपालिका निगम (वीएमसी) अवैध ढंग से रह रहे विभिन्न लोगों को नोटिस जारी कर रही है। वड़ोदरा जिले के सामा इलाके में गोकुलधाम को-ऑपरेशन हाउसिंग सोसाइटी के 48 में से 14 परिवारों को घर खाली करने का नोटिस मिले। इन्हें पीएमएवाय स्कीम के तहत ये घर मिले थे। इन 14 में से कम-से-कम 9 ने नोटिस मिलने के बाद अपने घर छोड़ दिए और दूसरी जगहों पर चले गए। यह सब तब हुआ जब कुछ स्थानीय समाचार चैनलों ने इस बाबत खबरें चलाईं कि पीएमएवाय स्कीम के तहत मकान पाने वाले कुछ लोगों ने अपने मकान किराये पर उठा दिए हैं।
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यहां रह रहे आलोक कुमार तिवारी के अनुसार, इन मकान मालिकों ने सब्सिडी वाले ब्याज दरों पर घर ले लिए और वे खुद तो अन्यत्र रहते हैं, पर उन्होंने ये मकान किराये पर उठा दिए। ऐसा पिछले तीन साल से चल रहा है। इस मामले की जानकारी जिला काॅरपोरेशन बिल्डर्स समेत तमाम अधिकारियों को पहले भी कई दफा दी गई लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ। ध्यान रहे कि नियमतः पीएमएवाय मध्य आय वर्ग (एमआईजी) स्कीम के अंतरत्ग सहायता प्राप्त करने वाले लोगों के पास अपने नाम से दूसरा मकान नहीं हो सकता है। लेकिन अब जो खबरें हैं, उनके मुताबिक, सब्सिडी वाले इन मकानों के मालिक अहमदाबाद, मेहसाना वगैरह विभिन्न इलाकों में रहते हैं, बल्कि एक मकान का मालिक तो एनआरआई भी है।
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तिवारी आरोप लगाते हैं कि कई ऐसे लोगों ने इस तरह से मकान ले लिए हैं, भले ही वे इस आय वर्ग के नहीं हैं। वजह सिर्फ यह है कि उनके संपर्क ऊंचे-बड़े लोगों तक हैं। खुद गोकुलधाम सोसाइटी के निर्माण में लगे एक बिल्डर्स ग्रुप के प्रभारी, उसके एक सबकाॅन्ट्रैक्टर और बिल्डर्स के निदेशक की बहन ने इस सोसाइटी में मकान ले लिए हैं। कई मकान मालिक जिला नगरपालिका निगम के स्टाफ या उनके रिश्तेदार हैं।
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मजेदार यह भी है कि एक व्यक्ति ने वीएमसी प्रशासन का सौंपे पत्र में कहा है कि उसने अपना मकान अस्थायी तौर पर इसलिए किराये पर दे दिया क्योंकि काविड-19 फैलने के मद्देनजर प्रधानमंत्री ने अचानक ही लाॅकडाउन की घोषणा कर दी थी। लेकिन उनका जो किरायानामा है, वही इस बात को झुठलाता है। कई किरायेदारों ने भी अधिकारियों को आवेदन सौंपे हैं कि उन्हें फिलहाल यहां रहने दिया जाए। वैसे, इस तरह से रहस्य खुल जाने के बावजूद यहां रहे कुछ दबंग खुलेआम कह रहे कि अंततः कुछ होना-जाना नहीं है। यहां रहने वाले एक साइट इंजीनियर ने दावा किया कि काॅरपोरेशन में क्लर्क से लेकर प्रोजेक्ट इंजीनियर तक उनके साथ हैं और हमलोग सबकुछ जानते हैं कि क्या हो रहा है, बल्कि यह भी पता है कि कौन व्यक्ति इन सब शिकायतों के पीछे है। हाल यह है कि हाल में वीएमसी की जीप कुछ नए किरायेदारों के सामान लेकर भी यहां आ गई।
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इन सब पर कार्यकारी अभियंता नवेंदु पारीख का वही जवाब है जो किसी सरकारी अधिकारी का आम तौर पर होता हैः अभी जांच चल रही है; तथ्य सामने आने पर सूचना दी जा सकेगी; और फिलहाल कोई सूचना नहीं दी जा सकती। अन्य अधिकारी भी इसी किस्म का जवाब दे रहे हैं।
ऐसे में, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब प्रधानमंत्री मोदी के गृह प्रदेश में ही उनकी पसंदीदा योजना का यह हाल है, तो अन्य जगहों की हालत समझी जा सकती है। सिर्फ जानकारी के लिए कि आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार, दिसंबर, 2019 तक प्रधानमंत्री आवास योजना स्कीम के तहत गुजरात में 3.69 लाख घरों का निर्माण हो चुका है। वड़ोदरा के ये उदाहरण यह संदेह तो पैदा करते ही हैं कि सचमुच कितने वास्तविक लाभार्थियों को इस तरह मकान मिल पाए होंग
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