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शहीद के अपमान से हुई फजीहत के बाद संघ हुआ सावधान, प्रज्ञा को दी जा रही है बोलने की ट्रेनिंग

मालेगांव विस्फोट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से प्रत्याशी बनाकर बीजेपी भले हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद के जरिये नैया पार लगाना चाहती है। लेकिन वह भूल रही है कि उसी की सरकार ने साल 2008 में संघ कार्यकर्ता की हत्या के आरोप में प्रज्ञा को गिरफ्तार किया था।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

मालेगांव बम धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से प्रत्याशी बनाने का मकसद साफ है कि बीजेपी को पिछले पांच साल के कामकाज पर भरोसा नहीं रहा और इसलिए अब वह हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद के जरिये नैया पार लगाना चाहती है। यह भी साफ है कि बीजेपी ने प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाकर सिर्फ भोपाल का दांव नहीं खेला है, बल्कि वह देश भर में यह मैसेज देना चाहती है।

वैसे, मुसलमानों के वोट विभाजित कर भोपाल विधानसभा सीट जीतने का बीजेपी ने नवंबर में सपना देखा था लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्देश पर बीजेपी ने फातिमा रसूल सिद्दिकी पर यहां दांव खेला था। उसे लग रहा था कि ट्रिपल तलाक के मुद्दे की वजह से मुस्लिम वोटों का विभाजन होगा और उसे भोपाल सीट पर कामयाबी मिल जाएगी। लेकिन यहां कांग्रेस प्रत्याशी आरिफ अकील आराम से जीत गए और 35 साल की फातिमा कोई प्रभाव भी नहीं छोड़ पाईं।

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बीजेपी के कई समर्थक मानते हैं कि प्रज्ञा को प्रत्याशी बनाना पार्टी का मास्टर स्ट्रोक है। विज्ञापन एजेंसी चलाने वाले राजेश जैन ऐसा मानने वालों में एक हैं और उन्हें भरोसा है कि प्रज्ञा कांग्रेस उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को आराम से पराजित कर देंगी।

दूसरी ओर, पार्टी के लिए समर्पित रहे कई कार्यकर्ता इस बात से हैरान हैं कि पार्टी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण और कश्मीर में धारा 370 हटाने जैसे मुद्दों से मुंह मोड़ लिया है। दिग्विजय सिंह की उम्मीदवारी का विरोध करते आ रहे शरद शेखर का कहना है कि प्रज्ञा के मैदान में आने से काफी सारे लोगों को नोटा (नन ऑफ द एबव- इनमें से कोई नहीं) का विकल्प आजमाने का विकल्प मिल गया है।

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वैसे, मालेगांव मामला सामने आने के बाद से ही प्रज्ञा सुर्खियों में रही हैं। वह मीडिया के एक खास वर्ग में अपने को प्रताड़ित किए जाने के रूप में सहानुभूति भी बटोरती रही हैं। वह जानती हैं कि सुर्खियों में किस तरह रहा जाए। इसीलिए वह कभी व्हील चेयर पर बैठ जाती हैं और कभी अपने पैरों पर चलने लगती हैं। वैसे, उनकी पहले सीमित अपील रही है, इसलिए उन्हें अंदाजा नहीं है कि उनकी बात कितनी दूर तलक और किस तरह जा सकती है।

हेमंत करकरे को लेकर दिया उनका बयान इसी तरह का था। वह सुदर्शन टीवी जैसे चैनलों पर तो यह बात कहती रही हैं लेकिन बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर जैसे ही मुख्य मीडिया में उनका यह बयान सामने आया, शहीद के प्रति अपमान का मसला गरम हो गया और अंततः उन्होंने सीमित तरीके से ही सही, अपना बयान वापस ले लिया।

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इसीलिए संघ के निर्देश पर बीजेपी ने प्रज्ञा को विवादास्पद बयानों से बचने की सलाह दी है। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा को प्रज्ञा को यह सब बताने की जिम्मेदारी दी गई है कि वह कब, कहां, क्या बोलें और क्या नहीं बोलें। प्रभात झा प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष रहे हैं और इस वक्त राज्यसभा सदस्य हैं।

लेकिन प्रज्ञा की उम्मीदवारी को लेकर कोई भ्रम नहीं है। भोपाल के निवृत्तमान सांसद आलोक संजर का टिकट काटने के बावजूद उनका नामांकन पत्र दाखिल कराने की वजह सिर्फ यह है कि पार्टी नेतृत्व को लगता रहा है कि प्रज्ञा ने ऐसे बयान दे दिए हैं कि किसी कानूनी पचड़े में चुनाव आयोग कहीं उनकी उम्मीदवारी रद्द न कर दे। ऐसे में, संजर को डमी से रीयल उम्मीदवार बनाया जा सकता है। शहीद हेमंत करकरे को अपने शाप से मार डालने वाले प्रज्ञा के बयान के कारण आयोग ने सरकार को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को कहा और बीजेपी इसीलिए डरी हुई है।

पहले तो बीजेपी ने ही किया था गिरफ्तार

बीजेपी के लोग प्रज्ञा को कांग्रेसी षडयंत्र का उदाहरण बताते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक कह चुके हैं कि हिंदू इस तरह के षडयंत्र के लिए कांग्रेस को कभी माफ नहीं करेंगे। लेकिन बीजेपी नहीं चाहती कि लोग उस केस के बारे में चर्चा भी करें जिसमें बीजेपी की तत्कालीन शिवराज सिंह सरकार ने प्रज्ञा को भी आरोपी बनाया था।

23 सितंबर, 2008 को मध्य प्रदेश पुलिस ने देवास जिले में संघ कार्यकर्ता सुनील जोशी की हत्या के आरोप में प्रज्ञा और आठ अन्य लोगों को गिरफ्तार किया था। सुनील जोशी का नाम मक्का मस्जिद, समझौता एक्सप्रेस और मालेगांव बम विस्फोट मामलों में भी आया था। 2007 समझौता एक्सप्रेस ट्रेन विस्फोट कांड में एनआईए ने जोशी पर भी आरोप पत्र दाखिल किया था।

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जोशी की देवास के चूना खदान क्षेत्र में 29 दिसंबर, 2007 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में 2008 में प्रज्ञा और अन्य लोगों की गिरफ्तारी के बाद 25 मार्च, 2009 को देवास के तब के एसपी के आदेश पर इस मामले को पुलिस ने बंद कर दिया। लेकिन 9 जुलाई, 2010 को पुलिस ने यह मामला फिर खोला और प्रज्ञा को गिरफ्तार कर लिया गया।

यह तकनीकी गिरफ्तारी थी क्योंकि मालेगांव विस्फोट के मामले में वह पहले से ही जेल में थी। जोशी हत्याकांड में एनआईए कोर्ट में प्रज्ञा के खिलाफ भी चार्जशीट दी गई। तीन साल बाद 19 अगस्त, 2014 को यह मुकदमा देवास जिला अदालत में भेज दिया गया। ध्यान रहे कि उसी साल मई में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री-पद संभाला था। सितंबर, 2015 में इस मामले में देवास कोर्ट में आरोप पत्र पर संज्ञान लिया गया। 1 फरवरी, 2017 को देवास के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश कुमार आप्टी ने जोशी हत्याकांड में प्रज्ञा समेत सभी आरोपियों को दोषमुक्त करार दे दिया था।

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