गायक और गीतकार पवन सेमवाल ने ‘झांपू दा’ गीत के जरिये राज्य के कई मुद्दों को उठाया है। बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ का नारा जगह-जगह लिखा मिलता है, लेकिन बेटियों की लाज नहीं बच रही। उत्तरकाशी में नाबालिग के साथ बलात्कार और हत्या के मामले को वीडियो गीत में दिखाया गया है। साथ ही राज्य की मौजूदा बदहाली दर्शाने की कोशिश की गई है। इस गीत में त्रिवेंद्र सरकार को ‘सोई हुई सरकार’ कहा गया है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के एक साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद से ही उनकी मुश्किलें बढ़ रही हैं। कभी पार्टी के अंदर बगावत हो जाती है, अपने ही नेता अपनी सरकार के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप की लड़ियां लगा देते हैं। यही नहीं शिक्षिका उत्तरा के तबादले के मामले में सरकार की काफी किरकिरी हुई और अब इस गीत ने रही-सही कसर पूरी कर दी। गाने के बोल के जरिये केंद्र में मोदी सरकार, उत्तर प्रदेश में योगी सरकार और उत्तराखंड में "चमचा" भेजे जाने की बात कही गई है।
इस वीडियो गीत को 29 अगस्त को यूट्यूब पर लॉन्च किया गया। करीब 76 हजार लोग अब तक ये गाना देख चुके हैं। सोशल मीडिया पर ये काफी वायरल हो रहा है। गीत को लिखने वाले पवन सेमवाल का कहना है कि उन्होंने उत्तराखंड के मौजूदा हालात को देखते हुए गीत के बोल लिखे। उन्होंने कहा कि राज्य में विकास की गति धीमी है और समस्याएं बढ़ रही हैं। शराब की बिक्री बढ़ गई है। महिलाओं की हालत बिगड़ गई है। इन्हीं समस्याओं को उन्होंने गीतों के जरिये प्रस्तुत किया है। मुख्यमंत्री के लिए इस्तेमाल किये गये ‘झांपू’ शब्द पर पवन सेमवाल ने कहा कि गढ़वाल में आराम से, मंद-मंद होकर चलने वाले और कार्य करने वाले व्यक्ति को झांपू कहते हैं। उन्हें मौजूदा मुख्यमंत्री का कार्य कुछ ऐसा ही लगा इसलिए उन्हें ‘झांपू दा’ की उपाधि से नवाजा है। गीत से बीजेपी की नाराजगी पर पवन सेमवाल का कहना है कि क्या वो कलम के जरिये अपनी पीड़ा भी बयां नहीं कर सकते।
इस गीत पर यूट्यूब पर प्रतिक्रियाएं भी खूब दी गई हैं। कृष्ण बडोनी ने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा है कि “पहले मुझे लगा कि गाना गलत है पर जब मैंने यहां आ कर पूरा सुना तब समझ आया कि गाना कोई गलत नहीं है। ये गायक भाई की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है । जो भी इस गाने को सुन के नहीं समझा, समझ लो तुम्हें अपने घर गांव से जगह जमीन से हाथ धोना पड़ेगा। इनका क्या है, ये तो 5 साल में इतने घोटाले करेंगे कि इनकी 7 पीढ़ी बैठ के खायेगी। पर तुम कहां जाओगे? जब तुम खुद अपनी जगह में ही सुरक्षित नहीं हो तो पलायन कर के कौन सी जेड सिक्योरिटी हासिल कर लोगे। उत्तरकाशी में रेप की घटना को ज़्यादा जोर न मिले इसलिये मुख्यमंत्री ने इंटरनेट सेवा स्थगित कर दी। ताकि उनकी नाकामयाबी सब के सामने न आ जाये। बस इतना ही कहना चाहूंगा कि आप इस गाने के विरोध के बजाय समर्थन में आ जायें तो शायद मुख्यमंत्री जी पर कुछ असर पड़े।”
एक अन्य प्रतिक्रिया में नंदकिशोर सेमवाल ने लिखा है, “100% यह गाना सही है। उत्तराखंड अब वो उत्तराखंड नहीं है। सब पढ़े-लिखे हैं। किसी को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है। अपने राज्य और अपने क्षेत्र के लिए आवाज उठाने की आजादी हमारे देश का संविधान देता है। आखिर सीएम हो या पीएम, हमारे चुनने के बाद ही सत्ता की कुर्सी पर बैठते हैं, तो फिर सत्ता हमारी है। और खासकर उन लोगों की है जिन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगा कर उत्तराखंड राज्य लिया है।
उत्तराखंड बीजेपी को ये गीत हजम नहीं हो रहा है। पार्टी के मीडिया प्रभारी डॉ देवेंद्र भसीन का कहना है कि मुख्यमंत्री पर गाया गया ये गीत बेहद अपमानजनक है। आप किसी के विचारों से, कार्यशैली से असहमति जता सकते हैं लेकिन इस गीत में बेहद अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया गया है। इससे समाज में द्वेष फैलाने और मुख्यमंत्री की छवि खराब करने की नीयत से उन पर आरोप लगाए गए हैं। 5 सितंबर को एक बीजेपी कार्यकर्ता ने त्रिवेंद्र सिंह रावत पर गीत गाने वाले पवन सेमवाल, वीडियो निर्माता और प्रमोटर समेत 15 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है।
जबकि प्रदेश कांग्रेस ‘झांपू दा’ गीत गाने वाले गायक पवन सेमवाल के पक्ष में है। पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि ये गायक की अभिव्यक्ति की आजादी है। उसकी असहमति के स्वर हैं। पार्टी का कहना है कि वो गायक पर किसी किस्म की कार्रवाई नहीं होने देंगे।
Published: undefined
उत्तरा बहुगुणा प्रकरण में शिक्षिका पर कार्रवाई के आदेश देकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पहले ही बुरी तरह फंस चुके हैं। मीडिया में उनकी खासी किरकिरी हुई। पार्टी को डर है कि लोक गायक पर सीधे कार्रवाई का नुकसान हो सकता है। हालांकि बीजेपी कार्यकर्ता के कंधे पर बंदूक रखकर एफआईआर तो दर्ज करा ही दी गई है। नौछमी नारायणा गीत ने उस समय उत्तराखंड की सत्ता में हलचल मचा दी थी। उस गीत को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके नारायण दत्त तिवारी पर सबसे बड़ा कटाक्ष माना गया था। उसके बाद नेगी दा का ‘कमीशन कु मीट-भात’ गीत भी खूब प्रचलित हुआ था। लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने दोनों गीतों की रचना की थी और खुद ही गाया भी था। इसके बाद उत्तराखंड में राजनीति को लेकर गीतों के जरिये प्रतिरोध की परंपरा सी चल पड़ी। पूर्व मुख्यंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से होते हुए प्रतिरोध की इस परंपरा के दायरे में मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी आ गए हैं।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined