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मरीना पर करुणानिधि की समाधि के राजनीतिक मायने: डीएमके को मिला मनोवैज्ञानिक फायदा

करुणानिधि की दो इच्छाएं थीं जिन्हें उन्होंने जाहिर किया था। उन्हें उम्मीद थी कि एक तमिल ईलम गठित होगा। दूसरा, वह अन्ना के बगल में दफ्न होना चाहते थे। ईलम का सपना ध्वस्त हो चुका था। डीएमके को आशा थी कि कम से कम उनकी दूसरी इच्छा पूरी हो, अन्ना मेमोरियल के बगल में एक कलैनार मेमोरियल।

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फोटो:  अन्नादुरई के साथ करुणानिधि

मरीना बीच पर अन्ना मेमोरियल के नजदीक करुणानिधि मेमोरियल बनाए जाने का मद्रास हाई कोर्ट का फैसला एआईएडीएमके के खिलाफ संघर्ष में डीएमके की बड़ी राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक जीत है। यह संघर्ष 46 साल पहले शुरू हुआ था जब अभिनेता एमजीआर ने डीएमके से निकलने के बाद अन्ना डीएमके का गठन किया था।

कलैनार यानी करुणानिधि की समाधि को लेकर विवाद 7 अगस्त की रात को शुरू हुआ जब एआईएडीएमके की सरकार ने यह घोषणा की कि करुणानिधि का मेमोरियल मरीना बीच पर नहीं बनेगा जिसका आग्रह डीएमके ने किया था। सरकार ने कहा कि वह मेमोरियल के लिए चेन्नई में दूसरी जगह गिंडी में गांधी मंडपम के पास दो एकड़ जमीन देगी।

इस पूरे विवाद के पीछे असल में मामला यह है कि कौन सी पार्टी द्रविड़ आंदोलन और अन्ना दुरई की विरासत पर अपना दावा कर सकती है, डीएमके या एआईडीएमके। यह असल में इन दोनों दलों के बीच चला आ रहा 46 साल लंबा संघर्ष है कि कौन डीएमके के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री अन्नादुरई का सच्चा अनुयायी है।

1972 में एमजीआर ने अपनी पार्टी का नाम अन्ना डीएमके रखा और पार्टी के झंडे पर अन्ना की फोटो भी लगाई। करुणानिधि ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि अन्ना ने डीएमके बनाई थी और वही सच्ची द्रविड़ पार्टी है।

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डीएमके ने अपने बैनरों और होर्डिंग्स में पेरियार, अन्ना और करुणानिधि की त्रिमूर्ति को जगह दी, जबकि एआईएडीएमके ने पेरियार, अन्ना और एमजीआर की त्रिमूर्ति को शुरू में जगह दी लेकिन बाद में अन्ना, एमजीआर और जयललिता आ गए। मरीना को एआईएडीएमके ने इसी त्रिमूर्ति के लघु चित्र की तरह सामने रखा।

लाखों लोग इन तीनों की समाधि को देखने हर महीने आते हैं। मरीना पर कलैनार का मेमोरियल और वह भी अन्ना मेमोरियल के बगल में बनाने के लिए तैयार होना एआईएडीएमके के द्रविड़ आंदोलन और अन्नादुरई की विरासत पर दावे में थोड़ा सेंध लगा देता।

इसलिए, एआईएडीएमके नहीं चाहती थी कि इस राजनीतिक समीकरण में कोई फेरबदल हो, और वह भी उसके घनघोर प्रतिद्वंदी डीएमके के पक्ष में तो कतई नहीं।

अन्ना और कलैनार की यह जोड़ी दिखाएगी कि डीएमके ही अन्ना और द्रविड़ आंदोलन की विरासत की हकदार है और इससे एमजीआर और जयललिता की समाधि की चमक फीकी पड़ जाएगी। इस पूरे विवाद का यही मूल था।

करुणानिधि की दो इच्छाएं थीं जिन्हें उन्होंने जाहिर किया था। उन्हें उम्मीद थी कि एक तमिल ईलम गठित होगा। दूसरा, वह अन्ना के बगल में दफ्न होना चाहते थे। ईलम का सपना ध्वस्त हो चुका था। डीएमके को आशा थी कि कम से कम उनकी दूसरी इच्छा पूरी हो, अन्ना मेमोरियल के बगल में एक कलैनार मेमोरियल। सीएम की प्रतिक्रिया सकरात्मक थी जिसके बारे में डीएमके नेताओं ने मीडिया से बात की। 7 अगस्त की शाम को मुख्य सचिव ने यह प्रेस रिलीज जारी की कि मेमोरियल सिर्फ गांधी मंडपम पर ही बनेगा, मरीना पर नहीं। इसकी वजह से डीएमके कार्यकर्ताओं के एक समूह ने हिंसक प्रदर्शन भी किए।

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डीएमके के नेतृत्व ने इस आदेश को चुनौती देने का फैसला लिया और मद्रास हाई कोर्ट पहुंच गए। कार्यकारी चीफ जस्टिस के आवास पर एक याचिका दी गई। कोर्ट की एक बेंच ने याचिकाकर्ताओं और एडवोकेट जनरल को सुना लेकिन 8 अगस्त की सुबह तक के लिए आदेश को सुरक्षित रख लिया।

आज सुबह एडवोकेट जनरल ने कानूनी मुद्दे उठाने के अलावा कई बाधाएं डालीं कि मरीना पर निर्माण नहीं हो सकता क्योंकि इससे बीच को नुकसान हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए मरीना पर मेमोरियल बनाने की कोई परंपरा नहीं है। उदाहरण के लिए, उन्होंने बताया कि द्रविड़ कड़गम के संस्थापक ईवी रामास्वामी (पेरियार) या पूर्व मुख्यमंत्री जानकी एमजीआर का मरीना पर कोई मेमोरियल नहीं है।

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डीएमके के वकील ने कहा कि 7 अगस्त की रात को ही मरीना में मेमोरियल बनाने के खिलाफ दी गई याचिका वापस ले ली गई है और मरीना पर कलैनार मेमोरियल के लिए जगह बना दी गई है।

हाई कोर्ट ने तब यह आदेश दिया कि मरीना पर अन्ना मेमोरियल के बगल में कलैनार मेमोरियल बनेगा और इसने करुणानिधि के बेटे एमके स्टालिन और बेटी कनिमोड़ी समेत डीएमके नेताओं के आंखों में खुशी के आंसू ला दिए।

इस फैसले के राजनीतिक परिणाम होंगे क्योंकि अन्ना और कलैनार मेमोरियल की जोड़ी एमजीआर और जयललिता मेमोरियल की चमक को फीकी कर देगा। इससे यह भी लगेगा कि डीएमके अन्ना के सबसे ज्यादा निकट है क्योंकि कलैनार मेमोरियल के बगल में अन्ना मेमोरियल होगा। इसके जरिये अन्ना-करुणानिधि के जुड़ाव का संदेश जाएगा जिससे राजनीतिक रूप से डीएमके को फायदा मिल सकता है और एआईएडीएमके के समीकरण बिगड़ सकते हैं।

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