केंद्र की मोदी सरकार वंचितों, असहायों और विशेष रूप से सक्षम लोगों के कल्याण और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए कितनी गंभीर है, इसका पता इसी बात से चलता है कि देश में दिव्यागों की बेहतरी के लिए बनाए गए ‘नेशनल फंड फॉर पर्सन विद डिसैबिलिटीज’ में 260.62 करोड़ रुपए का फंड पिछले दो साल से ज्यादा समय से बिना इस्तेमाल के पड़ा हुआ है। एक आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार यह रकम दिव्यांगों के कल्याण के लिए गठित फंड में साल 2016 में दिव्यांगों के लिए लागू नए अधिकारों के समय से ही बिना इस्तेमाल के पड़ा हुआ है।
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देश में दिव्यांग नागरिकों के कल्याण और अधिकारों के लिए लड़ने वाले वकील अकील अहमद उस्मानी द्वारा दाखिल एक आरटीआई पर सामाजिक कल्याण एवं अधिकारिता मंत्रालय और ऑफिस ऑफ द डायरेक्टर जनरल ऑफ ऑडिट की ओर से दिए जवाब से यह जानकारी मिली है। इस फंड से प्रतिभाशाली दिव्यांग छात्रों को स्कॉलरशिप दिया जाना था। लेकिन साल 2009-15 के बीच लागू होने के बावजूद इस फंड से केवल 3.51 करोड़ रुपए की ही स्कॉलरशिप दी गई। बाद में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से 2016 से इस फंड का रकम बगैर इस्तेमाल के ऐसे ही पड़ा है।
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बता दें कि दिव्यांगों के लिए इस राष्ट्रीय कोष की शुरुआत चैरिटेबल एनडोउमेंट एक्ट के तहत साल 1983 में 2.51 करोड़ रुपये के कोष के साथ की गई थी। इस रकम में 1 लाख रुपये केंद्र सरकार की ओर से दिए गए ते, जबकि बाकी के 2.50 करोड़ रुपये जवाहरलाल नेहरू सेंटेनरी ट्रस्ट ने दिए थे। बाद में द डिसैबिलिटी एक्ट 1995 के तहत इस कोष का विलय कर दिया गया।
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खास बात ये है कि नेशनल फंड फॉर पर्सन विद डिसैबिलिटीज कोष की कमाई का स्त्रोत केवल बैंकों से मिलने वाला ब्याज है। आरटीआई दाखिल करने वाले वकील अकील अहमद का कहना है कि पिछले 4 साल से यह फंड रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास पड़ा हुआ है, जिसका दिव्यांगों के कल्याण और उनका जीवन सुधारने के लिए फौरन इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
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