पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन की खंडपीठ ने नियोजित शिक्षकों की ओर से दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद कहा कि समान काम के बदले समान वेतन की मांग बिल्कुल सही है। नियोजित शिक्षकों की ओर से पेश हुए वकील दिनू कुमार ने बताया कि अदालत ने कहा है कि ऐसा नहीं करना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन भी है।
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इस फैसले के बाद राज्य के करीब साढ़े तीन लाख नियोजित शिक्षकों को बड़ी राहत मिली है। इस मांग को लेकर बिहार के नियोजित शिक्षक काफी लंबे समय से आंदोलन कर रहे थे। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नियोजित शिक्षकों की मांगों को ठुकरा दिया था, जिसके बाद नियोजित शिक्षकों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
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याचिका में कोर्ट को बताया गया कि राज्य के माध्यमिक विद्यालयों में नियोजित शिक्षकों से समान कार्य तो लिया जा रहा है, लेकिन उन्हें समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। नियोजित शिक्षकों का वेतन विद्यालय के चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों से भी कम है।
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नियोजित शिक्षकों ने विरोध स्वरूप मैट्रिक और इंटर परीक्षाओं की कॉपी का मूल्यांकन करने से भी इंकार कर दिया था।
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सरकार का पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता ललित किशोर ने कहा कि नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति सरकार नहीं करती, इसलिए समान काम के लिए समान वेतन का सिद्धांत नियोजित शिक्षकों पर लागू नहीं होता है।
कोर्ट के फैसले का विभिन्न शिक्षक संघों ने स्वागत करते हुए इसे न्याय की जीत करार दिया है। इससे पहले समान काम के लिए समान वेतन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को इस नीति पर विचार करने की सलाह दी थी।
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