पूरे देश में अभिव्यक्ति की आजादी पर हो रहे हमलों की कड़ी में ताजा मामला इलाहाबाद विश्वविद्यालय का है, जहां संविधान का उत्सव मनाने के लिए छात्रों द्वारा आयोजित कार्यक्रम को पहले दी गई अनुमति कुलपति ने रद्द कर दी। सामने आए कई तथ्यों से जाहिर है कि ऐसा उन्होंंने राजनीतिक दबाव में किया है। ऐसा करते हुए न सिर्फ उन्होंने अपनी बल्कि पूरे संस्थान की स्वायतत्ता को दांव पर लगा दिया है। बावजूद इसके छात्रों ने अपनी और अपने संस्थान की आजादी को सुरक्षित रखने के लिए यह फैसला किया है कि वे इस कार्यक्रम को आयोजित करेंगे जैसा यह पहले से तय था। आयोजनकर्ताओं की तरफ से एक छात्र ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति के नाम एक खुला पत्र लिखा है, जिसका हिंदी अनुवाद हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।
-नवजीवन
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति के नाम खुला पत्र
प्रिय महोदय,
विश्वविद्यालय परिसर में लिबर्टी फेस्टिवल आयोजित करने की अनुमति देने और उसके बाद इस अनुमति को रद्द करने के संबंध में हमारी फोन पर हुई बातचीत का संदर्भ याद करने की कृपा करें। फेस्टिवल आयोजित करने की अनुमति देने के लिए मैं आपका धन्यवाद करना चाहता हूं, साथ ही इस पत्र के माध्यम से अपनी चिंता से आपको अवगत कराना चाहता हूं कि किस तरह आखिरी क्षण में इस अनुमति को रद्द कर दिया गया।
मैं आपकी अनुमति के बिना ही इस पत्र को सार्वजनिक कर रहा हूं, क्योंकि इस पत्र में जो लिखा है उससे सिर्फ हम दोनों का ही नहीं, बल्कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों, इलाहाबाद और देश के युवाओं का सरोकार है। इन छात्रों और युवाओं को यह जानने का हक है कि आखिर किस तरह के दबाव में आप जैसे विश्वविद्यालय के मुखिया काम कर रहे हैं।
मुझे उम्मीद है कि आप मेरे इस कदम की सराहना करेंगे क्योंकि इसका मकसद आपको शर्मिंदा करना कतई नहीं है।
मेरे कुछ साथी छात्रों ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ देश के संविधान का उत्सव मनाने के लिए लिबर्टी फेस्टिवल नाम से एक दिवसीय आयोजन की आपसे अनुमति मांगी थी। आपने उदारता के साथ न सिर्फ इस आयोजन की अनुमति दी थी, बल्कि उत्सव में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होने के लिए सहमति भी दी थी। 13 सितंबर 2017 को हमें संबंधित विभाग की तरफ से आपके फैसले का उल्लेख करते हुए एक पत्र भी मिला था।
हमारे लिए इस अनुमति का मिलना ही बहुत बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि अनेक विश्वविद्यालयों में हमारा यह प्रयास नाकाम रहा था। तीन साल पहले तक इस तरह के आयोजनों में कोई अड़चन नहीं आती थी, लेकिन अब ऐसे आयोजन के लिए अनुमति मिलना ही असाधारण घटना हो गई है। यही वजह थी कि जब हमें आपने अनुमति दी तो हमने खुद को काफी कृतार्थ महसूस किया और इस बात पर हम गौरवान्वित भी हुए कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय आप जैसे लोगों के सुरक्षित हाथों में है। लेकिन जैसे-जैसे हमारे आयोजन की तारीख नजदीक आने लगी, हमें ये खबरें भी मिलने लगीं कि जेएनयू, आईआईटी मद्रास, जामिया मिलिया इस्लामिया आदि संस्थानों में ऐसे आयोजनों के लिए दी गयी अनुमति रद्द की जा रही हैं। हमें इन खबरों से चिंता होने लगी, लेकिन चूंकि आपने हमें अनुमति दी थी, इसलिए हम अपनी तैयारियों में जुटे रहे।
यह एक अलग किस्म का आयोजन था। इस आयोजन में हम संविधान पर चर्चा करने वाले थे और उस पर जश्न मनाने वाले थे, जिसकी स्वतंत्रता संविधान से हमें मिली है। यह वह दस्तावेज है जिसे भारत के लोगों ने लंबे संघर्ष के बाद अंग्रेजी शासन से खुद को मुक्त कराकर अपने लिए तैयार किया था। असंख्य लोगों द्वारा जान की बाजी लगाने के बाद मिली स्वतंत्रता हमारे लिए सर्वोपरि है और इसी स्वतंत्रता को हमारा संविधान परिभाषित और परिलक्षित करता है। इसीलिए हमारा मानना है कि हम सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही स्वतंत्रता का जश्न न मनाएं, बल्कि संविधान के मूल सिद्धांतों को अपने दैनिक जीवन में भी उतारें और उसको याद करें।
बहरहाल, हम आयोजन की तैयारी करते रहे। इस एक दिवसीय आयोजन में दूसरे शहरों से लेखकों, मेहमानों, कलाकारों को शामिल होना था और दिन भर हम चर्चा, रंगमंच, कविता और गीतों के जरिए संविधान के मूल विचार का उत्सव मनाने वाले थे। इस आयोजन में शामिल होने वाले लोग अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज हैं, और इसीलिए विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों के लिए ऐसी शख्सियतों से रूबरू होने का यह एक दुर्लभ मौका था।
लेकिन, आयोजन के ठीक एक दिन पहले, 16 सितंबर को हमें मौखिक तौर पर सूचित किया गया कि आयोजन की अनुमति रद्द कर दी गयी है और हमें वहां आयोजन नहीं करने दिया जाएगा।
यह सूचना हमारे लिए एक आपदा की तरह थी। मैंने तुरंत आपसे संपर्क किया और अनुमति बहाल करने की कोशिश की। फोन पर हुई बातचीत में आपने कहा कि चूंकि आयोजन स्थल पर निर्माण कार्य किया जाना है, इसीलिए अनुमति को रद्द किया जा रहा है। मैंने जब आपसे पूछा कि फिर हमें अनुमति दी ही क्यों गयी थी, तो आपका जवाब था कि अनुमति इलाहाबाद में कहीं भी आयोजन करने के लिए थी।
महोदय, आप इस बात को मानेंगे कि विश्वविद्यालय परिसर से बाहर किसी भी आयोजन के लिए हमें आपसे अनुमित लेने की जरूरत नहीं होगी। आप भी जानते हैं कि अनुमति रद्द करने का कारण (निर्माण कार्य) कितना कमजोर है, जो आपने हमें बताया है।
बहरहाल, जब मैंने इस ओर इंगित किया अनुमति पत्र में विश्वविद्यालय परिसर के एक हॉल का नाम लिखा है, तो आपने स्पष्ट कहा कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय का बहुत अधिक दबाव है और आप इस विषय में कुछ नहीं कर सकते।
हम समझ सकते हैं कि अपने ही द्वारा दी गयी अनुमति को रद्द करते हुए आपको कितनी पीड़ा हुई होगी। इस अनुमति को रद्द करने से पहले आपने किस तरह की असहायता और अपमान महसूस किया होगा, इसे सिर्फ आप ही समझ सकते हैं।
मैं यह भी समझता हूं कि हमारा प्रयास व्यर्थ जाता देख आपको पीड़ा हुई होगी। जिन ताकतों ने आपको ऐसा करने के लिए मजबूर किया उनके सामने झुकते हुए आपने खुद को कितना बेबस महसूस किया होगा।
दरअसल, इस आयोजन की आहट पाते ही आरएसएस और विद्यार्थी परिषद की स्थानीय इकाइयों ने फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया माध्यमों से अफवाहें फैलाना शुरु कर दिया था। आयोजन में शामिल होने वाले वक्ताओँ के बारे में अपमानजनक पर्चे बांटे गए और उन्हें राष्ट्र-विरोधी बताया गया। हम पर आरोप लगाए गए कि हम इलाहाबाद विश्वविद्यालय को जेएनयू बनाकर छात्रों के बीच नफरत फैलाना चाहते हैं।
लेकिन, अच्छा ही हुआ कि आपने यह अनुमति रद्द कर दी। अगर हम यह आयोजन कर लेते तो लोगों को यह गलतफहमी हो जाती कि लोकतंत्र के विभिन्न संस्थानों और संस्थाओं की स्वतंत्रता अभी बची हुई है। यह भी कि संस्थानों की स्वायत्तता बचाए रखने के लिए कुछ न कुछ तो किया ही जा सकता है। अच्छा ही हुआ कि हमें पक्के तौर पर पता चल गया कि अब संस्थानों की स्वतंत्रता खत्म हो चुकी है और आप जैसे स्वतंत्र बुद्धिजीवी भी इसका कुछ नहीं कर सकते। विश्वविद्यालयों के प्रमुखों पर चौतरफा दबाव है और उन्हें ऐसे लोगों के सामने झुकना पड़ रहा है जिन्होंने सभी संस्थानों और सामाजिक जगहों पर कब्जा कर रखा है। यह इस बात का भी संकेत है कि वह वक्त दूर नहीं जब निजी स्वतंत्रता और स्वायत्तता भी हमसे छीन ली जाएगी।
मुझे लगता है कि यह अच्छा ही हुआ कि हमें फिर से उस घनीभूत अंधकार के माहौल की याद दिलाई गई जिसमें इस समय हम रह रहे हैं, ऐसा माहौल जिसमें देश के संविधान तक को संदेह से देखा जाने लगा है और स्वतंत्र और आलोचनात्मक नजरिए वाले लोगों को राष्ट्र-विरोधी बनाकर पेश किया जा रहा है। जैसा कि राइनर मारिया रिल्के ने लिखा है, “हमारी आंखें तभी देखने लायक होंगी जब अंधकार पूर्ण हो जाएगा”
आपका अच्छा छात्र होने के नाते, हम तेजी से बढ़ते भय के सामने झुकने को तैयार नहीं हैं।
इसलिए हम तय तारीख और दिन को उस हॉल के सामने वाले लॉन में अपना आयोजन करेंगे, जहां हमें पहले अनुमति दी गयी थी। हमें इस बात का अच्छी तरह अनुमान है कि हम पर संगठित ताकतों द्वारा हमला हो सकता है और हमारे आयोजन को बंद कराया जा सकता है। हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि आजादी न तो दी जाती है और न ही पाई जाती है। हर किसी को हर समय न सिर्फ सतर्क रहना है, बल्कि आजादी के लिए हर क्षण संघर्ष करना है।
हम पुलिस के पास भी सुरक्षा की गुहार लगाने नहीं जाएंगे, और आजादी के अपने हक के आग्रह के लिए हम कोई भी नतीजा भुगतने को तैयार हैं।
हम आपको भरोसा दिलाना चाहते हैं कि हमारे मन में आपके लिए कोई कड़वाहट नहीं है। आप जैसे बुद्धिजीवी के लिए शायद यह दुविधा की स्थिति भी है कि आज की सत्तारूढ़ शक्तियों से जूझते हुए कैसे संस्थानों को चलाया जाए।
मुझे अब भी उम्मीद है कि आप हमारे आयोजन में अपनी निजी हैसियत में शामिल जरूर होंगे।
धन्यवाद और आदर सहित,
मनीष शर्मा,
ज्वाइंट एक्शन कमेटी,
इलाहाबाद विश्वविद्यालय
Published: 18 Sep 2017, 6:06 PM IST
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Published: 18 Sep 2017, 6:06 PM IST