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‘खुले में शौच मुक्त’ बिहार में शौचालय को तरस रहे सरकारी स्कूल, पीरियड आने पर छात्राओं को लेनी पड़ती है छुट्टी

बीते 27 सितंबर को केन्द्रीय आवास और शहरी कार्य मंत्रालय के सचिव दुर्गाशंकर मिश्र ने बाकायदा ट्वीट करके बिहार के शहरी क्षेत्र को खुले में शौच से मुक्त होने की बधाई दी। लेकिन जमीनी हालात इससे इतर है। आलम ये है कि बिहार के सरकारी स्कूलों से ही शौचालय गायब है।

फोटोः सीटू तिवारी
फोटोः सीटू तिवारी 

कुछ दिनों पहले बिहार के सभी शहरी क्षेत्रों को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया। बीते 27 सितंबर को केन्द्रीय आवास और शहरी कार्य मंत्रालय के सचिव दुर्गाशंकर मिश्र ने बाकायदा ट्वीट करके बिहार के शहरी क्षेत्र को खुले में शौच से मुक्त होने की बधाई दी। लेकिन जमीनी हालात इससे इतर है। आलम ये है कि बिहार के सरकारी स्कूलों से ही शौचालय गायब है।

शिक्षा विभाग के आंकड़े देखें तो सिर्फ पटना जिला जिसका ज्यादातर क्षेत्र शहरी है, वहां की स्थिति बहुत बदतर है। जिले के कुल 4054 स्कूल में से 1154 स्कूल में शौचालय नहीं है। इन 1154 स्कूल में से 557 यानी तकरीबन आधे स्कूल ऐसे हैं, जो सिर्फ लड़कियों के लिए हैं। यूनीफाइड डिस्ट्रीक्ट इंफारमेंशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यू -डाइस) की रिपोर्ट के मुताबिक भी बिहार के सरकारी स्कूलों में शौचालयों की स्थिति देश भर में सबसे बदतर है। राज्य के तकरीबन 8000 सरकारी स्कूल में गर्ल्स टॉयलेट और 9000 में ब्वायज टॉयलेट नहीं है।

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फोटोः सीटू तिवारी

पीरियड्स आते हैं तो छुट्टी ले लेतीं हैं लड़कियां

पटना सिटी के जलकदर्रबाग स्थित मध्य विद्यालय में शौचालय नहीं है। स्कूल में 350 बच्चे पढ़ते हैं, जिनमें 180 छात्राएं हैं। टीन की छत के नीचे चल रहा ये स्कूल, शहरी क्षेत्र में है। शौचालय नहीं होने के चलते स्कूल के छात्रों के साथ-साथ टीचर भी परेशान हैं। सबसे ज्यादा परेशानी स्कूल में छठी, सातवीं और आठवीं में पढ़ने वाली उन लड़कियां को है, जिनके मासिक शुरू हो चुके हैं। छात्राएं बताती हैं कि बाथरूम लगती है तो घर भागते हैं और अगर पीरियड्स आ जाए तो छुट्टी ले लेते हैं। स्कूल में जब रहते हैं तो पानी ज्यादा नहीं पीते हैं। वे कहती हैं कि वे जानतीं हैं कि ये अच्छा नहीं है, लेकिन पढ़ना है, तो ये सब करना पड़ेगा।

वहीं स्कूल में काम करने वाले अध्यापकों की बात करें तो वो बाथरूम लगने पर स्कूल के पड़ोस के घरों मे जाते हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक टीचर बताते हैं, “पहले कई बार इस संदर्भ में विभाग को चिठ्ठी लिखी जा चुकी है, जब विभाग की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं होती, तो सब कुछ राम भरोसे है।”

राजकीय हरिजन कन्या प्राथमिक विद्दालय, सुल्तानगंज, दानापुर के भी यही हालात हैं। इस स्कूल में पढ़ने वाली बच्चियों के लिए राहत की बात बस इतनी है कि ये बच्चियां बाथरूम लगने पर बगल के ही मध्य विद्यालय के शौचालय का इस्तेमाल कर लेती हैं। लेकिन स्कूल का अपना कोई शौचालय नहीं है।

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सफाईकर्मी का फंड ही नहीं है

पटना शहर के कई स्कूलों में शौचालय तो है, लेकिन इस्तेमाल लायक नहीं है तो कई स्कूल ऐसे हैं जहां चुनाव के वक्त डीलक्स शौचालय बनवाए गए, लेकिन उसमें ताला लटका रहता है। पटना के शहरी क्षेत्र में ही स्थित मध्य विद्यालय, नुरूद्दीनगंज में एक शौचालय है जो इस्तेमाल लायक नहीं है। स्कूल के प्राचार्य मनोज कुमार बताते हैं, “स्कूल में शौचालय नहीं होने की सूचना कई बार विभाग को दी जा चुकी है, लेकिन कोई असर नहीं पड़ा। शौचालय नहीं रहने से बच्चे स्कूल नहीं आना चाहते हैं। जो आते हैं वो आधी छुट्टी लेकर भाग जाते हैं।”

पटना शहर के मुख्य हिस्से खेतान मार्केट स्थित मध्य विद्यालय, भंवरपोखर में कई साल पहले शौचालय का छत गिर चुका है। इसके बाद लोकसभा चुनाव 2019 में यहां दो डीलक्स शौचालय चुनाव कार्य के लिए बनाए गए। लेकिन इन शौचालयों में ताला लगा रहता है। स्कूल में कोई भी इस ‘तालाबंदी’ के बारे में बात करने को तैयार नहीं हुआ। पटना जिला के शिक्षा पदाधिकारी ज्योति कुमार के मुताबिक, “शौचालय संबंधी दिक्कतों से विभाग वाकिफ है। कई स्कूलों ने लिखित सूचना भी दी है। विभाग इस समस्या का निदान करने की कोशिश भी कर रहा है।”

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एक दशक से भी ज्यादा समय से बिहार में शिक्षा को कवर कर रहीं पत्रकार रिंकू झा बताती हैं कि सरकारी स्कूलों में शौचालय की स्थिति लगातार खराब होती रही है। वो कहती हैं, “शौचालयों के रखरखाव के लिए सफाईकर्मी आदि का कोई फंड स्कूल के पास नहीं है। आप सिर्फ पटना के 12वीं कक्षा तक चलने वाले बांकीपुर गर्ल्स स्कूल को ही ले लें, जो सरकार का मॉडल स्कूल है। यहां तीन हजार लड़कियां पढ़ती हैं और कहने के लिए 25 शौचालय है। लेकिन एक भी शौचालय की स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे में अन्य स्कूलों की क्या हालत होगी, उसका अंदाजा लगा लीजिए।”

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बिहार में सबसे ज्यादा ड्राप आउट बच्चे

यू-डाइस के 2014-15 से लेकर 2016-17 के आंकड़े देखें तो बिहार राज्य में सबसे ज्यादा बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ रहे हैं। दिलचस्प है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई और आधारभूत संरचना में सुधार के सरकारी दावों के बीट ये ड्राप आउट बच्चे लगातार बढ़ रहे हैं। साल 2014-15 में माध्यमिक स्तर पर कुल बच्चों का 25.33 प्रतिशत, साल 2015-16 में 25.90 प्रतिशत और 2016 -17 में 39.73 प्रतिशत बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया। जानकारों की मानें तो इसकी एक बड़ी वजह स्कूल की घर से दूरी और शौचालय का अभाव है।

दिलचस्प है कि सरकार ‘पहले की सहेली’ नाम का कार्यक्रम छात्राओं के बीच प्रत्येक शनिवार को चला रही है, ताकि छात्राओं को सेहत और माहवारी संबंधी जानकारी दी जा सके। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जब स्कूलों में शौचालय है ही नहीं, तो ऐसे कार्यक्रमों का क्या मतलब है? साफ तौर पर स्वच्छ भारत मिशन के नाम पर केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से लफ्फाजियों का अंबार है जो हकीकत की जमीन पर आते ही ढेर हो जाते हैं।

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