देश

गुजरात की बिजली कंपनी को बचाने और वित्तीय घाटा कम करने के लिए सरकार ने कर्ज में डुबो दी ओएनजीसी

देश की नवरत्न कंपनियों में से एक ओएनजीसी के कर्मचारियों ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि बीते साढ़े चार साल के दौरान कामकाज में केंद्र सरकार के दखल के कारण ओएनजीसी भयंकर आर्थिक संकट से जूझ रही है। इसे वेतन तक देने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया ओएनजीसी कर्मचारी मजदूर सभा का कहना है कि केंद्र सरकार के दखल के कारण ओएनजीसी भयंकर आर्थिक संकट से जूझ रही है

नोटबंदी और जीएसटी के जरिए देश के छोटे और मझोले उद्योग धंधों को बरबाद करने के बाद केंद्र सरकार अब देश की नवरत्न कंपनियों को तबाह करने पर आमादा है। केंद्र सरकार ने गुजरात की सरकारी बिजली कंपनी को बचाने के लिए नवरत्न कंपनियों में से एक ओएनजीसी को जबरदस्ती ऐसा गैस ब्लॉक खरीदने पर मजबूर किया, जिसमें 20,000 करोड़ खर्च करने के बाद भी गैस नहीं मिली थी।

देश की नवरत्न कंपनी भयंकर आर्थिक संकट से जूझ रही है और हालत यह है कि कर्मचारियों के वेतन भत्ते तक देने के लिए उसे कर्ज लेना पड़ रहा है। बीते साढ़े चार साल के दौरान ओएनजीसी के कामकाज में केंद्र सरकार के दखल के चलते यह हालात पैदा हुए हैं। यह आरोप ओएनजीसी कर्मचारी मजदूर सभा ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में लगाए हैं।

सरकारी कंपनियों में केंद्र की बढ़ती दखलंदाज़ी के चलते देश की नवरत्न कंपनियों में से एक ऑयल एंड नेचुरल गैस कार्पोरेशन – ओएनजीसी दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई है। कभी नकदी के मामले में आत्मनिर्भर रहने वाली ओएनजीसी को कर्मचारियों के वेतन और भत्तों के भुगतान के लिए बैंकों से ओवर ड्राफ्ट लेना पड़ रहा है। और यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि केंद्र सरकार ने गुजरात राज्य बिजली निगम – जीएसपीसी के हिस्से का कृष्णा गोदावरी बेसिन जबरदस्ती ओएनजीसी को दिलवाया है और इसके बदले ओएनजीसी ने जीएसपीसी को 8000 करोड़ का भुगतान किया है।

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इस सिलिसिले में ओएनजीसी कर्मचारी मजदूर सभा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर हालात से अवगत कराया है। सभा के महासचिव ए आर ताडवी ने इस पत्र में बताया कि, “2016 में केंद्र सरकार ने ओएनजीसी पर दबाव डालकर उसे गुजरात राज्य बिजली निगम, जीएसपीसी का केजी बेसिन ब्लॉक अधिग्रहीत करने को कहा। इसके लिए ओएनजीसी को 8000 करोड़ रुपए का भुगतान जीएसपीसी को करना पड़ा।” ताडवी ने पत्र में लिखा है कि, “जीएसपीसी इस ब्लॉक में 2005 से ही शोधन और खोज का काम कर रही थी। करीब 10 साल तक खोज और विदेशी विशेषज्ञों और महंगे उपकरणों की खरीद पर करीब 20,000 करोड़ खर्च करने के बावजूद उसे इस बेसिन में गैस नहीं मिली, तो फिर सरकार ने क्यों जबरदस्ती 8000 करोड़ में ओएनजीसी को यह ब्लॉक खरीदने के लिए मजबूर किया?”

पत्र में ताडवी ने लिखा है कि, “केंद्र सरकार के विभिन्न फैसलों ने ओएनजीसी की आर्थिक कमर तोड़कर रख दी है।” उन्होंने पत्र में लिखा है कि केंद्र सरकार ने ओएनजीसी के कामकाज में हस्तक्षेप कर सिर्फ जीएसपीसी को ही नहीं बचाया है, बल्कि देश का वित्तीय घाटा कम करने के लिए हिंदुस्तान पेट्रोलियम में सरकार की सारी की सारी 51.11 फीसदी हिस्सेदारी 36,915 करोड़ में खरीदने पर भी मजबूर किया। यह कीमत एचपीसीएल के बाजार मूल्य (उस दिन के शेयर की कीमत के आधार पर) से 14 फीसदी ज्यादा है। एचपीसीएल में हिस्सेदारी खरीदने से ओएनजीसी का कर्ज दो गुना होकर 1,11,533 करोड़ हो गया।

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ताडवी ने पत्र में लिखा है कि ओएनजीसी में सरकारी हस्तक्षेप यहीं तक नहीं है। कंपनी की मर्जी के बिना ही बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा को उनकी पात्रता के बिना ही कंपनी का डायरेक्टर बना दिया गया। ताडवी ने बताया कि केंद्र सरकार ओएनजीसी के सीएसआर (सामाजिक दायित्व फंड) का भी दुरुपयोग कर रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की जिन योजनाओं में सरकार को पैसा लगाना चाहिए, उसमें दबाव बनाकर ओएनजीसी का पैसा लगाया जा रहा है। ताडवी ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार के मंत्री लगातार दबाव बनाकर कंपनी से पैसा लेकर खर्च करा रहे हैं।

उन्होंने गिनाते हुए कहा कि एलपीजी कनेक्शन वितरण हो, शौचालय बनाना हो, गांवों को गोद लेना हो या लड़कियों के लिए सैनिट्री नैपकिन वितरण हो, हर काम के लिए सरकारी योजनाओं के फंड के बजाए ओएनजीसी के सीएसआर का पैसा लगाने का लगातार दबाव बनाया जा रहा है।

नवनजीवन से बातचीत में ताडवी ने कहा कि, “हालात इतने खराब हो गए हैं कि कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए आवश्यक उपकरणों की खरीद की फाइलें पिछले 3-4 साल से मंत्रालय में धूल खा रही हैं और उन पर कोई फैसला नहीं लिया जा रहै।“

ताडवी ने कहा कि, “कर्मचारियों के लिए जरूरी सुरक्षा उपकरण ओएनजीसी पहले एक विदेशी कंपनी से खरीदता रहा है, लेकिन अब तेल मंत्री धर्मेंद्र प्रधान उसे किसी एक खास भारतीय कंपनी से खरीदने का दबाव बना रहे हैं। जबकि इस भारतीय कंपनी के उपकरण हमारी जरूरत पूरी नहीं करते।”

उन्होंने बताया, “ओएनजीसी को स्थापित हुए 68 साल हो गए हैं, लेकिन अब सरकार कहती है कि कंपनी को अपने सभी काम्पलेक्स के चारों तरफ दस फुट ऊंची दीवार बनाकर सीसीटीवी कैमरे और सेंसर लगाने चाहिए। इस पर करीब दो हजार करोड़ खर्च हो जाएंगे। पता नहीं सरकार इस कंपनी को किस रास्ते पर ले जाना चाहती है।” उनका कहना है कि जब हम कच्चा तेल विकसित करने में सरकार की मदद मांगते हैं तो वह उसे सुनने को भी तैयार नहीं है।

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उनका कहना है कि ओएनजीसी बचाने के लिए वे कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं। उन्होंने बताया कि वे सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि आखिर 20,000 करोड़ के घाटे वाली जीएसपीसी को मोदी जी और प्रधान जी क्यों बचा रहे हैं। ताडवी ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को जो पत्र भेजा था वह पीएमओ में प्राप्त हो गया है और पीएमओ ने जवाब देते हुए लिखा है कि इस बारे में जरूरी कार्यवाही की जाएगी।

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