सरकारी योजनाएं किस तरह लगभग 50 साल तक लटकी रहती हैं और उसकी आड़ में कैसे-कैसे खेल होते रहते हैं, पटना की एक योजना इसका ताजा उदाहरण है। लोग चकरघिन्नी बने हुए हैं कि आखिर, असली कौन है और नकली कौन।
1974 के आसपास बिहार की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने पटना के दीघा मुहल्ले में 1,024 एकड़ जमीन के अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की थी। लेकिन जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी, तो कुछ दिनों बाद ही एक प्रभावशाली आईएएस अफसर की यहां 4 एकड़ जमीन अधिग्रहण से मुक्त कर दी गई। बाकी जमीन अधिग्रहण मुक्त नहीं हुई और न सरकार को इस पर कब्जा मिला। कब्जा मिले बगैर ही बिहार सरकार के आवास बोर्ड ने आवंटन जारी करना शुरू कर दिया। जिन्हें यह आवंटन पत्र मिला, उन्हें भी जमीन नहीं मिली। जिन किसानों की जमीन अधिग्रहित हुई थी, उनसे भूमाफियाओं ने औने-पौने दाम पर जमीन खरीद ली। समय आगे बढ़ा, तो माफियाओं ने दबदबा दिखाकर मकान बनवाना शुरू किया। करीब 25 साल बाद वर्ष 2000 आते-आते अफसर, पुलिस, वकील- हर श्रेणी के लोगों को बुला-बुलाकर बेची गई, ताकि हटाने की बात ही नहीं उठे।
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नीतीश कुमार की सरकार बनी तो बिहार में ‘सुशासन’ के नाम पर जमीन के रेट बहुत बढ़ गए और पटना में घर बनाने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ी। ऐसे में दीघा और नए बसे इलाके राजीव नगर का रेट भी तेजी से बढ़ा। राजीव नगर इसमें अपेक्षाकृत सस्ती जमीन का विकल्प बना क्योंकि न तो अधिग्रहण के कारण किसानों के पास रजिस्ट्री का अधिकार था और न ही उनसे खरीदकर प्लॉटिंग करने वाले भूमाफियाओं के पास। ऐसे में, पुलिस की पौ बारह हो गई। उसने यहां कच्चे कागज पर जमीन मालिक बने लोगों को मकान की नींव डालने से छत ढालने तक के लिए रेट फिक्स कर दिए। बिजली बोर्ड और फिर नीतीश की बनाई बिजली कंपनी के अफसरों ने एक्ट्रा चार्ज वसूलकर कनेक्शन देना शुरू कर दिया। सत्ताधारी दल के विधायकों-सांसदों ने सड़कें बनवा दीं। नगर निगम ने बाकी सुविधाएं दे दीं।
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अब, नया और ताजा अध्याय। हाईकोर्ट अतिक्रमण के खिलाफ जब-जब सख्त होता है, सरकार अपना रंग दिखाती है। इस बार इस रंग में फंसे राजीव नगर में नीतीश सरकार के राज में ही बसे लोग। हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट तक जमीन पर अतिक्रमण साबित होने के बावजूद इन्हें भरोसा था कि सरकार रजिस्ट्री छोड़ सारी सुविधा दे रही है, तो कभी उनका आशियाना नहीं उजाड़ा जाएगा। लेकिन भरोसा आलीशान मकानों के रूप में टूटा और वह भी रविवार के दिन। इस दिन कोर्ट बंद था। अगले दिन कोर्ट खुला, तो वकीलों की लंबी फौज पहुंच गई सरकारी कार्रवाई रोकने क्योंकि ज्यादातर ने यहां आशियाना बसा लिया है। कोर्ट ने तत्काल तो रोक लगा दी लेकिन अंततः घोषित कब्जा हटाया जाना तो तय है। इस बार कार्रवाई के लिए नीतीश सरकार ने बहुत जबरदस्त कूटनीति बनाई है। यहां सरकारी क्वार्टर बनाए जाने हैं जिनमें जजों के लिए आवास भी बनने हैं।
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पटना की पॉश कॉलोनी पाटलिपुत्रा से सटे सरकारी आवास की चाहत रखने वाले सभी लोग कब्जा हटाए जाने के पक्ष में हैं। वे भी पक्ष में हैं जिन्होंने सस्ते के झांसे में आकर यहां जमीन नहीं ली। जो बना चुके या बना रहे या जमीन लेकर छोड़े हुए हैं, वे रो रहे हैं। वैसे, कब्जा हटाए जाने के बावजूद उन लोगों को कुछ नहीं मिलने वाला है जिन्हें आवास बोर्ड से यहां का आवंटन प्राप्त है। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि ‘दीघा में आवंटित भूमि पर असली मालिकों को कब्जा नहीं दिला पाने पर पटना हाईकोर्ट ने 2002 में कहा था कि बिहार में पूरी तरह अराजकता व्याप्त है। लेकिन मुझ जैसे लोगों को भी ताजा अभियान से फायदा नहीं होना है जिनके पास 1981 से आवंटन के कागजात हैं। मैंने भी तब कर्ज लेकर एक भूखंड के लिए 2 हजार रुपये जमा किए थे। मेरी ही तरह 11,260 लोगों ने कुल मिलाकर एक करोड़ 57 लाख 45 हजार रुपये उस समय आवास बोर्ड में जमा किए। जब तत्कालीन सरकार आवंटियों को जमीन का कब्जा नहीं दिला सकी तो अधिकतर लोगों ने सूद सहित पैसे वापस ले लिए। मेरे जैसे बहुत सारे लोगों का सरकार पर भरोसा था लेकिन अबतक यह नहीं मिला।’
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दरअसल, आवंटन पत्र रद्द नहीं कराने वाले लोगों को अब कुछ मिलना नहीं है क्योंकि सरकार ने कब्जा हटाने के लिए नई कूटनीति निकाली है। वकील, पुलिस, अफसर या रिटायर्ड जज- सभी श्रेणी के लोग कब्जा हटाने को मजबूर होंगे क्योंकि अव्वल तो अतिक्रमण के खिलाफ हाईकोर्ट लगातार सख्त रहा है। दूसरी बात यह कि अब यहां सरकार ज्यूडिशियल सर्विस समेत सरकारी कर्मियों के लिए क्वार्टर बनाने की योजना बना चुकी है। मतलब, राजीव नगर में अपना घर टूटते देखने वाले भले कितना ही रोएं, अब उजड़ने से बचना असंभव है।
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