द्रौपदी मुर्मू के देश का 15वां राष्ट्रपति चुने जाने के बाद से ही दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े लोग इस तथ्य को स्थापिक करने में जुटे हैं कि इस चुनाव में जबरदस्त क्रॉस वोटिंग (अपने दल की तय रणनीति से अलग हटकर मत देना) हुई है, और विपक्षी एकता एक तरह से ध्वस्त हो गई है।
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चुनाव आयोग से जारी आंकड़ों को जरा सा भी ध्यान से देखने पर साप हो गया है कि कहानी दरअसल अलग ही है। द्रौपदी मुर्मू चुनाव तो जीती हैं, लेकिन केंद्र और कई राज्यों में बीजेपी का बहुमत होने के बावजूद उन्हें जितने भी वोट मिले हैं, वह राष्ट्रपति चुनावों में अब तक के सबसे कम बहुमत से हासिल हुई जीत है।
इस चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को कुल 10,56,980 वोटों में से 6,76,803 वोट मिले हैं और उनकी जीत का अंतर 2,96,626 है। यानी उन्हें विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के मुकाबले 28.06 फीसदी वोट मिले हैं और वे कुल वोटों का 64.03 फीसदी वोट हासिल कर पाई हैं।
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राष्ट्रपति पद के लिए हुए बीते कुछ चुनावों के आंकड़ों से साफ होता है कि के आर नारायणन ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्हें 1997 के चुनाव में कुल वोटों में से 95.6 लाख वोटों के साथ 97 फीसदी वोट मिले थे। इसी तरह 2002 में हुए चुनाव में ए पी जे अब्दुल कलाम को भी कुल 9,22,884 वोटों के साथ 89 फीसदी वोट मिले थे। उनकी प्रतिद्वंदी वामदलों की उम्मीदवार लक्ष्मी सहगल को1,07,366 वोट मिले थे।
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द्रौपदी मुर्मू की जीत के साथ ही कई न्यूज संस्थानों ने बिना आंकड़ों और तथ्यों की जांच किए ही कहना शुरु कर दिया कि विपक्षी खेमे की गुटबंदी और टूट के चलते जबरदस्त क्रॉस वोटिंग हुई। हद तो यह है कि इन समाचार संस्थानों ने केरल से भी एक वोट द्रौपदी मुर्मू को मिलने की बात तक कह दी, जबकि यह सदस्य उत्तर प्रदेश के हैं और चुनाव के दौरान केरल में इलाज के लिए गए हुए हैं, इसीलिए उन्होंने वही वोट डाला था।
विपक्ष के खिलाफ मिथ्या प्रचार को हवा देते हे कुछ पत्रकारों ने भी ऐसे विधायकों की संख्या की सूची सोशल मीडिया पर शेयर की जिन्होंने क्रॉस वोटिंग की।
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लेकिन असली आंकड़े और संख्या ने इस सारे दावों की हवा निकाल कर रखी।
आंकड़ों को गहराई से देखने पर स्पष्ट है कि मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी 2017 में हुए चुनाव में द्रौपदी मुर्मू से अधिक वोट यानी 65.7 फीसदी वोट मिले थे। उनसे पहले प्रणब मुखर्जी को रामनाथ कोविंद से अधिक 69.3 फीसदी वोट मिले थे।
अगर राष्ट्रपति चुनावों का इतिहास देखें तो साफ होता है कि किसी भी चुनाव में अब तक सर्वाधिक वोट 1957 में डॉ राजेन्द्र प्रसाद को मिले थे, जब उन्होंने दूसरी बार राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा था। उन्हें 99 फीसदी वोट मिले थे जो 1952 में उनके पहली बार राष्ट्रपति बनने के 84 फीसदी से अधिक था। डॉ राजेंद्र प्रसाद के बाद दूसरे नंबर पर सर्वाधिक वोट हासिल करने वाले राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे जिन्हें 1962 के चुनाव में 98 फीसदी वोट हासिल हुए थे।
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दक्षिणपंथी और सत्ता के इशारों पर झूमने वाले मीडिया के इस नैरेटिव को विपक्षी नेताओं, खासतौर से कांग्रेस ने तथ्यों के सामने उजागर किया है। कांग्रेस के सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफार्म्स की चेयरपर्सन सुप्रिया श्रीनेत ने आंकड़ों के साथ ट्विटर पर लिखा-
“मोदी जी के अथक संघर्ष (सरकार गिराने तक) के बावजूद श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को 1969 से आजतक किसी भी राष्ट्रपति बनने वालों में सबसे कम वोट प्रतिशत (64%) मिला। श्री यशवंत सिन्हा जी को 53 साल में किसी भी विपक्ष के उम्मीदवार से सबसे ज़्यादा वोट मिले...मीडिया का राग अलग है।”
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गोदी मीडिया चुनाव नतीजे के ऐलान के बाद ही इस प्रचार में जुट गया था कि राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी एकता की पोल खुल गई और सारा कुनबा बिखर गया। इसके लिए वे क्रॉस वोटिंग के आंकड़े पेश कर रहे थे, लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि इतना सबने होने के बाद भी आखिर द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति चुनावों के सबसे कम वोट क्यों मिले।
वह तो बस सत्ता और दक्षिणपंथी विचारधारा के बहाव में बहकर एक खास एजेंडे को ही हवा देने में जुटे रहे।
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