मुंबई यूनिवर्सिटी द्वारा नौ साल पहले महाराष्ट्र अध्ययन केंद्र के गठन का प्रस्ताव लाया गया था। तब से यह केंद्र कागज पर ही है। मजे की बात यह है कि इस कागजी अध्ययन केंद्र के लिए बजट में प्रावधान भी किया गया है और हर साल कथित तौर पर लाखों रुपये का वारा-न्यारा हो रहा है। क्योंकि, बजट का पैसा कहां खर्च हो रहा है, इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है।
आर्थिक वर्ष 2019-20 के बजट में भी 90 हजार रूपये का प्रावधान किया गया है। यह जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने छह महीने की मशक्कत के बाद जुटाई है। उन्होंने आरटीआई के तहत मुंबई यूनिवर्सिटी प्रशासन से 31 जनवरी 2019 को महाराष्ट्र अध्ययन केंद्र के बारे जानकारी मांगी थी। टाल-मटोल करते-करते छह महीने के बाद अब यूनिवर्सिटी ने उन्हें जानकारी मुहैया कराई है।
Published: 22 Sep 2019, 12:51 PM IST
यूनिवर्सिटी ने भी स्वीकार भी किया है कि महाराष्ट्र अध्ययन केंद्र अभी तक अस्तित्व में आया ही नहीं है। गलगली का कहना है कि यूनिवर्सिटी से मिले दस्तावेजों के मुताबिक इस केंद्र के लिए आर्थिक वर्ष 2010-11 से लेकर 2019-20 तक हर साल बजट में लाखों रूपये का प्रावधान किया गया है। इसके खर्च करने का ब्यौरा नहीं दिया गया है।
हालांकि, इस कागजी केंद्र के नाम पर नौ सालों के दौरान दो-तीन बार बैठकें की गई ताकि हर साल लाखों रूपये का बजट तैयार होता रहे। ताज्जुब की बात यह है कि इस अध्ययन केंद्र को लेकर हर साल यूनिवर्सिटी प्रशासन से जानकारी मांगी जाती रही है। लेकिन कभी भी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई। पूर्व सीनेट सदस्य संजय वैराल ने भी अध्ययन केंद्र को लेकर पत्र द्वारा बातचीत की थी। लेकिन वे भी यूनिवर्सिटी प्रशासन की उदासीनता से नाराज हैं।
Published: 22 Sep 2019, 12:51 PM IST
इस केंद्र के मूल उद्देश्य में महाराष्ट्र के इतिहास और संस्कृति पर शोध, प्राचीन दस्तावेजों के अनुवाद, लुप्त साहित्य के संरक्षण और भाषा पर शोघ करने की योजना थी। इसका फायदा शोधार्थियों को होना था। इसे यूनिवर्सिटी के मराठी विभाग के तहत रखा गया। मराठी भाषा को लेकर सरकार करोड़ों रूपये खर्च कर रही है। लेकिन इस केंद्र से उनका मराठी प्रेम भी झलक रहा है।
राज्य का शिक्षा विभाग भी इसको लेकर जागरूक नहीं है। मराठी भाषा और संस्कृति का अभ्यास करने के मकसद से यूनिवर्सिटी के तत्कालीन कुलपति डॉ. विजय खोले ने यह केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया था। यूनिवर्सिटी के बजट में इसके लिए प्रस्ताव भी तय किए गए थे। इसके बाद पूर्व कुलपति डॉ. स्रेहलता देशमुख की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी। इसमें कुल 12 सदस्य थे। पांच-छह सालों के दौरान समिति की सिर्फ दो बार बैठकें हुई और बाद में इस समिति का क्या हुआ, इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है।
Published: 22 Sep 2019, 12:51 PM IST
यूनिवर्सिटी ने गलगली को जो दस्तावेज दिए हैं उससे यह स्पष्ट हो रहा हैं कि 8 फरवरी 2016 को मराठी विभाग के प्रमुख डॉ. भारती निरगुडकर ने महाराष्ट्र अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष भारत कुमार राऊत को विद्यानगरी में आमंत्रित किया था। उस समय यह तय हुआ था कि यूनिवर्सिटी प्रेस, ग्रंथ मेला, नाटक/एकांकिका प्रतियोगिता, डॉक्युमेंटेशन, मुंबई का इतिहास और जानकारी कार्यक्रम अभियान पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा और फिर 5 साल के बाद महाराष्ट्र का अभ्यास किया जाएगा। लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन की उदासीनता की वजह से नौ सालों से अध्ययन केंद्र अस्तित्व में आने के लिए बाट जोह रहा है।
Published: 22 Sep 2019, 12:51 PM IST
यूनिवर्सिटी के मराठी विभाग के प्रमुख डॉ. अनिल सपकाल ने गलगली को बताया है कि मराठी विभाग प्रमुख इस केंद्र के गठन के लिए नियुक्त समिति का एक सदस्य है। केंद्र की बैठक में मराठी विभाग प्रमुख उपस्थित रहता है। लेकिन यह केंद्र अब तक प्रस्तावित है जिससे इसके लिए अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं की गई है। उनके पास इसके कामकाज की कोई जानकारी नहीं है।
Published: 22 Sep 2019, 12:51 PM IST
आरटीआई कार्यकर्ता गलगली ने वाइस चांसलर डॉ. सुहास पेडणेकर के अलावा राज्य के राज्यपाल, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, शिक्षा मंत्री विनोद तावडे, शिक्षा राज्यमंत्री रविंद्र वायकर को पत्र भेजकर प्रस्तावित महाराष्ट्र अध्ययन केंद्र को तुरंत गठित करके चालू करने की मांग की है। इसके साथ ही बजट को लेकर जांच कराने की भी मांग की है।
Published: 22 Sep 2019, 12:51 PM IST
2010-11 में 5 लाख रूपये
2011-12 में 5 लाख रूपये
2012-13 में 29 लाख 95 हजार 750 रूपये
2013-14 में 5 लाख रूपये
Published: 22 Sep 2019, 12:51 PM IST
2014-15 में 5 लाख रूपये
2015-16 में 90 हजार रूपये
2016-17 में 18 लाख 46 हजार रूपये
2017-18 में 90 हजार रूपये
2018-19 में 90 हजार रूपये
2019-20 में 90 हजार रूपये
Published: 22 Sep 2019, 12:51 PM IST
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Published: 22 Sep 2019, 12:51 PM IST