माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाली विश्व की पहली दिव्यांग महिला अरुणिमा सिन्हा को 24 दिसंबर को महाकाल मंदिर में दर्शन के दौरान अपमान का शिकार होना पड़ा था, जिसके बाद मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री भूपेंद्र सिंह ने अफसोस जाहिर किया। अरुणिमा सिन्हा ने पीएमओ और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को ट्वीट कर कहा था, “महाकाल मंदिर में मेरी दिव्यांगता का मजाक बना। मुझे यह बताते हुए बहुत दुख है कि एवरेस्ट चढ़ने में इतनी तकलीफ नहीं हुई जितनी मुझे उज्जैन के महाकाल मंदिर में दर्शन के दौरान हुई।”
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अरुणिमा सिंह ने कहा कि 24 दिंसबर को सुबह साढ़े तीन से चार बजे के बीच अपनी दो सहयोगी महिलाओं के साथ वे महाकाल मंदिर में होने वाली भस्मारती में शामिल होने के लिए पहुंची थी। मंदिर के सुरक्षाकर्मियों और कर्मचारियों ने उन्हें और उनकी दोनों महिला सहयोगियों को गर्भगृह में जाने से कई बार रोका गया। उन्होंने कहा कि मंदिर के कर्मचारियों ने उन्हें यह कह कर रोक दिया कि वो लोअर, टी-शर्ट और जैकेट पहन कर मंदिर के अंदर नहीं जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि मंदिर के अंदर जाने के लिए किसी ड्रेस कोड के बारे में कहीं कुछ भी लिखा हुआ नहीं दिखाई दिया। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने सुरक्षाकर्मियों को अपने दिव्यांग होने और पैर कृत्रिम होने की जानकारी दी थी और कहा था कि इन कपड़ों में ठंड के दिनों में पैरों को राहत मिलती है। इस दौरान उनकी सुरक्षाकर्मियों के साथ कई घंटे तक बहस चली और उसके बाद सिर्फ उन्हें जाने की अनुमति दी गई, जबकि उनकी सहयोगी महिलाओंं को अंदर जाने से रोक दिया गया। जब वह महाकाल के दर्शन के बाद बाहर आईं तो रो पड़ीं।
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उन्होंने यह भी कहा, “पहले मंदिर कर्मचारियों ने मुझसे कहा कि भस्मारती को एलसीडी में देख लो। फिर मुझसे कहा गया कि खुद गर्भगृह में चले जाओ। मैं खुद नहीं जा सकती थी, इसलिए दोनों सहयोगियों को साथ ले जाने के आग्रह कर रही थी।”
पूरा मामला सामने आने के बाद मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री भूपेंद्र सिंह ने दुख जताते हुए ट्वीट किया। उन्होंने कहा, “इस घटना को लेकर उनको बेहद अफसोस है। इस घटना के जांच के आदेश दे दिए गए हैं। आप देश का गौरव हैं, भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन में आपका स्वागत है।”
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2011 में अरुणिमा सिन्हा को हादसे का शिकार होना पड़ा था। वह लखनऊ से दिल्ली के बीच सफर कर रही थीं तभी चलती ट्रेन में बदमाशों ने अरुणिमा से बैग और सोने की चेन छीन ली थी और उनको चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया था। हादसे के बाद अरुणिमा सिंह ने अपना एक पैर खो दिया। लेकिन इस हादसे के बाद उन्होंने पर्वतारोही बनने का फैसला किया और अपनी मेहनत के दम पर सिर्फ दो साल में ही एवरेस्ट पर पहुंचने में कामयाब रहीं। 2013 में अरुणिमा एवरेस्ट पर पहुंचने वाली पहली दिव्यांग बनीं। उनकी इस उपलब्धि पर भारत सरकार की ओर से उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
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