मनी बिल को लेकर भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ द्वारा 7 न्यायाधीशों की बेंच गठित करने के फैसले पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने खुशी जताई है। कांग्रेस नेता ने कहा कि आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने मेरी याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सात न्यायाधीशों की एक पीठ का गठन किया है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने मनी बिल के जरिए कई अहम विधेयकों को पारित किया है। यह असंवैधानिक है और अहम मामलों पर इस तरह से विधेयकों को पारित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इस पर राज्यसभा में बहस के बाद ही फैसला लिया जाना चाहिए।
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जयराम रमेश ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, ‘आख़िरकार, सुप्रीम कोर्ट ने सीजेआई की अध्यक्षता में मेरी याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सात न्यायाधीशों की एक पीठ का गठन किया है, जो मोदी सरकार द्वारा असंवैधानिक तरीके से कई महत्वपूर्ण बिल को मनी बिल के जरिए पास करने को चुनौती देने वाली मेरी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।‘
उन्होंने आगे लिखा, ‘मैंने इस मुद्दे को संसद में और उसके बाहर सुप्रीम कोर्ट में तीन याचिकाओं के माध्यम से बार-बार उठाया है - पहली याचिका 6 अप्रैल, 2016 को दायर की गई थी।‘ उन्होंने कहा कि मनी बिल राज्यसभा को प्रमुख कानूनों में संशोधनों पर चर्चा करने या पारित करने के अवसर से वंचित करती है। ऐसे कई अहम बिल बिना चर्चा के पास किए गए जिसमें आधार विधेयक, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण सहित न्यायाधिकरणों की शक्तियों को कमजोर करने वाला विधेयक और धन शोधन निवारण अधिनियम को और अधिक कठोर बनाने वाला विधेयक शामिल है। कांग्रेस नेता ने उम्मीद जताई की इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट जल्द ही अंतिम फैसला सुनाएगा।
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बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने आधार अधिनियम जैसे कानूनों को ‘धन विधेयक’ के रूप में पारित करने की वैधता के मुद्दे पर विचार करने के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया है। इस पीठ के गठन का मकसद सरकार के आधार विधेयक और यहां तक कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) में संशोधन को ‘धन विधेयक’ के रूप में पेश करने के बाद इस फैसले का उद्देश्य ‘मनी बिल’ से जुड़े विवाद का समाधान करना है।
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गौरतलब है कि, ‘धन विधेयक’ कानून का एक हिस्सा है जिसे केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है और राज्यसभा इसमें संशोधन या अस्वीकार नहीं कर सकती है। उच्च सदन केवल सिफारिशें कर सकता है जिन्हें निचला सदन स्वीकार भी कर सकता है और नहीं भी। राज्यसभा द्वारा धन विधेयकों पर की गई सिफारिशें लोकसभा के लिए बाध्यकारी नहीं हैं, जो इसे अस्वीकार करने का विकल्प चुन सकती हैं।
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