मोदी सरकार ने अब लुटियंस दिल्ली के दिल यानी संसद भवन से लेकर राष्ट्रपति भवन, नॉर्थ और साउथ ब्लॉक, इंडिया गेट तक के तीन किलोमीटर के इलाके को निशाने पर लिया है। मोदी सरकार की योजना इस पूरे इलाके का नए सिरे से निर्माण करने की है।
लेकिन इस योजना में जिस सबसे खास भवन के स्वरूप के बदलने का आभास हो रहा है वह है, भारतीय संसद। इसको लेकर सवाल भी उठ रहे हैं। दरअसल भारत का संसद भवन 1927 में बना था यानी अभी इसकी उम्र महज 92 साल है। मानव जीवन-काल की तुलना में यह बेशक एक लंबे काल-खंड का आभास देता हो, लेकिन दुनिया के तमाम प्रमुख देशों के संसद भवनों के बरक्स यह अभी बच्चा ही है। फिर भी मोदी सरकार इसमें आमूल-चूल बदलाव की तैयारी में है।
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किसी भी देश के संसद भवन की अपनी अलग पहचान होती है। यह संघर्ष के इतिहास का साक्षी होता है और पूरी दुनिया में इसे सहेजने की हरसंभव कोशिश की जाती है। यही वजह है कि बदलते समय, जरूरतों और सुविधाओं की छाप बेशक इन भवनों के आंतरिक स्वरूप में दिखती हो, लेकिन बाहर से ये पुराने और अपने बुनियादी रूप में ही दिखते हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि विश्व के प्रमुख देशों के संसद भवनों की क्या स्थिति है। तो आइए, विश्व के उन संसद भवनों पर नजर डालें जो भारतीय संसद से काफी पुराने हैं, लेकिन दुरुस्त हैं।
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हॉलैंड का संसद भवन बिनेनहॉफ हेग में है। इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में हुआ था। संभवतः यह दुनिया का सबसे पुराना संसद भवन है जो अब भी इस्तेमाल में है।
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इटली का यह संसद भवन रोम में है। इसे मेडिसी परिवार के रहने के लिए बनाया गया था और इसका निर्माण 1505 में पूरा हुआ। 1871 से इटली की सीनेट की बैठक इसी भवन में हो रही है।
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फ्रांस का यह संसद भवन पेरिस में है। इसका निर्माण 1615-1645 के बीच शाही परिवार के आवास के तौर पर हुआ था। 1958 से यहां फ्रांसीसी संसद के ऊपरी सदन सीनेट की बैठक हो रही है।
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अमेरिकी संसद का यह भवन वाशिंगटन डीसी में है। इसका निर्माण 1800 में पूरा हुआ। अमेरिकी कांग्रेस के दोनों सदनों की बैठक इसी भवन में होती है।
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ब्रिटेन की संसद इन्हीं भवनों से चलती है और इनका निर्माण 1840 से 1870 के बीच पूरा हुआ था। इससे पहले भी ब्रिटेन की संसद यहीं से सदियों से चलती रही और आग लगने के कारण कई बार इनका पुनिर्निर्माण भी हुआ, लेकिन इसे बदला नहीं गया।
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यह चीन के बीजिंग में है। इसमें नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की बैठक होती है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी संसदीय निकाय माना जाता है, जहां 2,900 से अधिक लोगों के बैठने की व्यवस्था है। इसका निर्माण 1959 में पूरा हुआ था।
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भारत के संसद का निर्माण एड्विन लुटियन्स और हर्बट बेकर की डिजाइन पर 1921 में शुरू हुआ और 1927 में पूरा हुआ। इसके निर्माण पर तब 80 लाख रुपये का खर्च आया था। संसद भवन का परिसर 2.4 एकड़ में फैला हुआ है।
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मोदी सरकार इस प्रोजेक्ट के पक्ष में केवल इतना कह रही है कि परिसीमन के बाद संसद सदस्यों की संख्या में सैकड़ों का इजाफा हो जाएगा और उस स्थिति में अपना मौजूदा संसद भवन छोटा पड़ जाएगा। लेकिन इस दलील में दम नहीं लगता। लंदन के वेस्टमिनिस्टर और वाशिंगटन डीसी स्थित कैपिटल हिल कॉम्पलेक्स पर गौर किया जाना चाहिए। ये दोनों भारतीय संसद से कहीं पुराने हैं। इनमें बार-बार बदलाव किए गए, लेकिन इनकी बाहरी शक्ल-सूरत को बनाए रखा गया। वैसे, संभव है कि प्रधानमंत्री मोदी दिल्ली पर ऐसी छाप छोड़ना चाह रहे हों जो सदियों तक जिंदा रहे। यह बात और है कि इस प्रोजेक्ट के प्रति आम आदमी से लेकर विरासत संरक्षण से जुड़े लोग समान रूप से दुखी हैं।
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