केंद्र की मोदी सरकार ने एक अप्रत्याशित कदम के तहत बुधवार को जम्मू और कश्मीर (दूसरा संशोधन) विधेयक- 2019 को वापस ले लिया है। लोकसभा में गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने विधेयक को वापस लेने की अनुमति मांगी और सहमति के बाद विधेयक को वापस ले लिया गया। हालांकि इस दौरान तृणमूल कांग्रेस ने विधेयक वापस लेने का विरोध किया। इस पर लोकसभा अध्यक्ष ने सरकार का बचाव करते हुए कहा कि सरकार ने पहले ही सदन को विधेयक वापस लेने का कारण बता दिया है।
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दरअसल टीएमसी सांसद सौगत राय ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि नियम 110 के तहत विधेयक वापस लेने के तीन प्रमुख कारण होते हैं, जिसमें नया विधेयक या अन्य कोई विधेयक लाना शामिल है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक राज्य के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण देने वाला था, जिसमें कुछ गलत नहीं था। उन्होंने कहा कि सरकार ने इसे वापस लेने का कोई कारण नहीं बताया। इस पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि यह विधेयक राज्यसभा द्वारा पारित है और सरकार ने बीते 6 अगस्त को सदन को इस बात की जानकारी दे दी थी कि क्यों यह विधेयक वापस लिया जा रहा है।
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दरअसल जून में इस विधेयक के पारित होने के बाद 6 अगस्त को मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का प्रस्ताव रखते हुए राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने वाला विधेयक जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक संसद में पेश किया था, जिसे मंजूरी भी मिल गई थी। इसके बाद ही गृह मंत्री शाह ने लोकसभा से जम्मू-कश्मीर आरक्षण (दूसरा संशोधन) विधेयक- 2019 को वापस लेने की अनुमति मांगी थी। शाह ने कहा कि अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों के समाप्त होने के बाद अब इस विधेयक की जरूरत नहीं है।
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गौरतलब है कि इससे पहले इसी साल 28 जून को लोकसभा में सरकार ने जम्मू और कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक पेश किया था, जिसे लंबी चर्चा के बाद मंजूरी दी गई थी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू और कश्मीर आरक्षण विधेयक- 2004 में और संशोधन के लिए लोकसभा में यह विधेयक पेश किया था। अमित शाह ने इस विधेयक को पेश करते समय इसके उद्देश्यों का जिक्र करते हुए राज्य के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों को आने वाली दिक्कतों का जिक्र करते हुए उन्हें इस विधेयक के जरिये मुख्यधारा में लाने का दावा किया था।
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