स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओरसे इस बात का आए दिन खूब हो हल्ला मचाया जाता है कि “जननी शिशु सुरक्षाकार्यक्रम” के तहत बच्चों के जन्म के पहले और बाद में उनकी सेहत की देखभालसुनिश्चित करने के लिए पुख्ता उपाय किए गए हैं। लेकिन देश की राजधानी दिल्ली मेंस्वास्थ्य मंत्रालय की नाक के नीचे मात्र तीन माह का एक अबोध बच्चा सबसे बड़ेअस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के कार्डियो विभाग के डॉक्टरोंकी घोर लापरवाही से मौत की नींद सो गया।
आहान बिष्ट मात्र 3 माह का था। उसके पिता अशोक बिष्ट उत्तराखंड के सुदूर रुद्रपुर में एक निजी फैक्टरी में काम करते हैं। आहान जन्मजात हृदय की बीमारी से पीड़ित था। उसकी हालत को देखते हुए 15 नवंबर को रुद्रपुर से दिल्ली एम्स के इमरजेंसी वॉर्ड में लाया गया। बच्चे की हालत को देखते हुए कार्डिओ थेओरसिस विभाग में जांच और उपचार के लिए रेफर किया गया।
अगले दिन 16 नवंबर को एम्स के कार्डियिक डॉक्टरों ने बच्चे की नाजुक हालत के बावजूद बिस्तर उपलब्ध न होने की बात कहकर उसे सफदरजंग अस्पताल में रेफर कर दिया। जबकि एम्स को बखूबी मालूम है कि इस तरह के गंभीर उपचार की कोई भी माकूल व्यवस्था सफदरजंग अस्पताल में नहीं है। निर्धन माता-पिता के पास इतने पैसे नहीं थे, कि वे उसे दिल्ली-एनसीआर में किसी निजी अस्पताल में ले जाने की हिम्मत जुटा पाते।
Published: 18 Nov 2018, 11:48 PM IST
बच्चे के माता-पिता को सफदरजंग के शिशु वॉर्ड में बताया गया कि उनके पास आईसीयू बेड उपलब्ध नहीं है और न ही कोई वेंटीलेटर है। बच्चे की सांसें थमने लगीं तो माता-पिता को कहा गया कि उसकी सांसें बरकरार रखने के लिए हाथ से पंप करें। 24 घंटे से ज़्यादा परिजनों से लगातार हाथ से पंप करने को कहा गया। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में बच्चे की हालत और भी नाजुक हो गयी और हृदय की धमनियों को सांस में लगातार बढ़ते दबाव से और भी नुकसान बढ़ता गया। सफदरजंग अस्पताल में पूरे 30 घंटे बाद शनिवार शाम 4 बजे आईसीयू उपलब्ध हो पाया।
बच्चे के चाचा हरेंद्र सिंह बिष्ट का कहना है कि, “जब सफदरजंग अस्पताल में बच्चों के इस तरह के उपचार का कोई प्रबंध नहीं है, तो साफ है कि एम्स के डॉक्टर ने हमारे शिशु को मरने के लिए वहां रेफर किया।“ परिजनों की मांग है कि एम्स के संबंधित डॉक्टरों के खिलाफ इस अमानवीय कृत्य के लिए कार्रवाही होनी चाहिए।
Published: 18 Nov 2018, 11:48 PM IST
आहान के पिता अशोक का कहना है कि उन्होंने बच्चे को किसी दूसरे सरकारी अस्पताल जी बी पंत में रेफर करने का अनुरोध किया था, लेकिन डॉक्टरों ने इनकार कर दिया। उनका दबाव था कि वे स्वेच्छा से बच्चे को यहां से ले जाएं। परिजनों ने एम्स के डॉक्टरों को मौत के लिए जिम्मेदार माना। उनका कहना है कि एम्स का कार्डियक विभाग अगर कुछ घंटों के लिए इमरजेंसी के आईसीयू में बच्चे को निगरानी में रखने की वैकल्पिक व्यवस्था कर देता तो उसकी जान बच सकती थी।
सफदरजंग अस्पताल के सूत्रों का कहना है कि एम्स की ओर से लगातार इस तरह के नाजुक मरीजों, खासतर से अबोध बच्चों को वहां रेफर कर दिया जाता है। सूत्रों का कहना है कि सफदरजंग अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट ने इस बाबत एम्स डाइरेक्टर को अपना विरोध प्रकट किया है।
Published: 18 Nov 2018, 11:48 PM IST
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Published: 18 Nov 2018, 11:48 PM IST