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‘मां अभी फायरिंग शुरू हो गई है बाद में फोन करूंगा’ कहकर देश के लिए शहीद हो गया उत्तराखंड का ये लाल

जवान शंकर सिंह ने फोन पर मां से  इन दिनों सीमा पर गोलीबारी की घटनाएं बढ़ने की बात कही। फिर बात करते-करते उन्होंने कहा, ‘मां अभी फायरिंग शुरू हो गई है बाद में फोन करूंगा। इसके बाद फोन कट गया। बता दें कि शहीद जवान शंकर सिंह के अपनी मां से फोन पर कहे गए अंतिम शब्द थे।  

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में शुक्रवार को हुई पाकिस्तानी गोलाबारी में उत्तराखंड के दो लाल नायक शंकर और गोकर्ण सिंह शहीद हो गए। दोनों शहीद जवान 21 कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात थे। दोनों शहीदों के पार्थिव शरीर को हेलीकॉप्टर से पहले बरेली स्थित सेना मुख्यालय लाया जाएगा। उसके बाद हेलीकॉप्टर पिथौरागढ़ ब्रिगेड हेडक्वार्टर लाया जाएगा। फिर दोनों के पार्थिव शरीर मुनस्यारी तहसील के ग्राम नापड़ और शंकर सिंह मेहरा गंगोलीहाट तहसील के नाली गांव पहुंचेगा।

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जानकारी के मुताबिक गंगोलीहाट के नाली गांव निवासी शंकर सिंह पुत्र मोहन सिंह का जन्म पांच जनवरी 1989 को हुआ था। जीआईसी चहज से इंटरमीडिएट करने के बाद 23 मार्च 2010 को सेना की 21 कुमाऊं में भर्ती हुए थे। सात वर्ष पूर्व उनका विवाह इंद्रा के साथ हुआ। उनका छह साल का बेटा हर्षित है। एक वर्ष पूर्व उन्होंने बेटे को स्कूल पढ़ाने के लिए हल्द्वानी में किराए पर कमरा लिया था। लॉकडाउन के कारण उनकी पत्नी और बेटा आजकल नाली गांव आए थे।

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बताया जा रहा है वह प्रतिदिन अपनी पत्नी इंद्रा और मां जानकी देवी से बात करते थे। शुक्रवार को दिन में भी उनका अपनी मां के लिए फोन आया था। उन्होंने इन दिनों सीमा पर गोलीबारी की घटनाएं बढ़ने की बात कही। फिर बात करते-करते उन्होंने कहा, 'मां अभी फायरिंग शुरू हो गई है बाद में फोन करूंगा। इसके बाद फोन कट गया। बता दें कि शहीद जवान शंकर सिंह के अपनी मां से फोन पर कहे गए अंतिम शब्द थे।

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शंकर सिंह जब सीमा पर शहीद हुए तो शुक्रवार की देर शाम को ही गांव में खबर पहुंच गई, लेकिन उनकी माता को यह दुखद समाचार नहीं सुनाया गया। शनिवार की सुबह जब गांव के लोग वहां पहुंचने लगे तो उन्हें कुछ अनहोनी की आशंका हुई। उन्होंने पूछा कि कहीं उनके शंकर के साथ कुछ हुआ तो नहीं। फिर जब बेटे की शहादत की खबर उन्हें दी गई तो वह गश खाकर गिर पड़ीं। तब से वह पूरी तरह से बदहवास हैं। शंकर सिंह की पत्नी इंद्रा भी पति के शहीद होने की सूचना के बाद से बेसुध हैं।

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सीमा की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान देने वाले शंकर सिंह का परिवार सैन्य पृष्ठभूमि का है। शहीद शंकर सिंह के दादा भवान सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा था। शंकर सिंह के पिता ने भी सेना को ही चुना और राष्ट्रीय राइफल में भर्ती हुए। देश सेवा के बाद उन्होंने वर्ष 1995 में सेवानिवृत्ति ली। पिता और दादा के नक्शेकदम पर शंकर सिंह और उनके छोटे भाई नवीन सिंह ने भी देश सेवा को ही लक्ष्य बनाया। शंकर सिंह के छोटे भाई नवीन सिंह सात कुमाऊं में जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं।

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