नरेंद्र मोदी डरे हुए हैं। उन्हें डर है उन मतदाताओं से जिन्हें 2014 में सुहाने सपने दिखाकर उन्हें झांसा दिया है। अब जमीन उनके पांव के नीचे से खिसक रही है। मोदी मंझे हुए राजनेता हैं और उन्हें इसका अच्छी तरह एहसास भी है। ऐसे में उनकी हताशा साफ नजर आ रही है, इसीलिए वे ऐसी बातें कर रहे हैं जिनका कोई अर्थ ही नहीं है। दिल्ली के रामलीला मैदान में शनिवार को बीजेपी राष्ट्रीय परिषद की बैठक में मोदी का भाषण, एक ऐसे हारे हुए व्यक्ति का भाषण प्रतीत हुआ जिसके पास न तो अपनी पार्टी को देने के लिए कुछ है और न ही देश को देने के लिए।
मोदी ने ‘मजबूर सरकार बनाम मजबूत सरकार’ का नारा देकर देश को डराने की कोशिश की। उनका इशारा 2004 से 2014 तक सत्ता में रही कांग्रेस की अगुवाई वाली पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार की तरफ था। मोदी भूल गए कि इन दस वर्षों में देश ने 8 फीसदी से ज्यादा की रफ्तार से तरक्की की, जो कि आजाद भारत में सबसे तेज़ विकास दर है। कोई भी ‘मजबूर सरकार’ ऐसा नहीं कर सकती थी।
इतना ही नहीं, 10 वर्षों में यूपीए गठबंधन की सरकार के दौर में 10 फीसदी से ज्यादा भारतीय गरीबी रेखा से बाहर भी आए। साथ ही मनरेगा जैसी योजनाओं से देश के कृषि क्षेत्र का विकास हुआ और ग्रामीण अर्थव्यवस्था रोजगार के मौके बढ़े। भारत इन दस वर्षों में तेजी से विकास के रास्ते पर आगे बढ़ा, जबकि मोदी शासन के पांच साल से भी कम समय में देश को हर मोर्चे पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है। आंकड़े खुद साबित करते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है। अभी एक दिन पहले ही आए आंकड़े बताते हैं कि औद्योगिक विकास की दर 17 महीने के निचले स्तर पर गिरकर 0.5 फीसदी पर पहुंच गई है। देश अपने सबसे भयंकर कृषि संकट से दोचार है। नौकरियां कहीं है नहीं, नोटबंदी और जीएसटी से पैदा त्रासदी का असर आजतक बरकरार है, कारोबार में घाटा हो रहा है।
फिर भी नरेंद्र मोदी रामलीला मैदान में यह कहते नहीं थके कि, “बीजेपी शासन ने साबित कर दिया है कि देश में बदलाव आया है और सरकार बिना भ्रष्टाचार के चल सकती है।” निश्चित रूप से देश बदला है, लेकिन यह बदलाव बेहद भयावह है। क्या कभी देश में मॉब लिंचिंग जैसे शब्द सुने गए थे, जितने की बीते करीब पांच सालों में सुने गए? क्या कभी देश के वरिष्ठतम जजों ने सार्वजनिक रूप से प्रेस कांफ्रेंस कर बताया था कि सुप्रीम कोर्ट में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है? क्या कभी सीबीआई और आरबीआई को ऐसे हालात का सामना करना पड़ा,जैसा कि आज हो रहा है? क्या कभी देश के सरकारी बैंकों के एनपीए का पहाड़ इतना ऊंचा हुआ जितना बीते साढ़े चार साल में हुआ? राफेल सौदा तो ऐतिहासिक भ्रष्टाचार की मिसाल बन गया है। योजनाओं के घोटाले तो हर देशवासी की जुबान पर हैं। मोदी शासन की यह जीती-जागती नाकामियां हैं।
फिर भी, नरेंद्र मोदी अपनी सारी नाकामियों के लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। लेकिन देश अब मोदी को आर-पार देख पा रहा है। बीते एक साल में नरेंद्र मोदी एक भी बड़ा चुनाव नहीं जीत पाए हैं। हाल में हुए राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में हिंदी पट्टी ने उन्हें अपनी पीठ दिखा दी है। उत्तर प्रदेश और बिहार में विपक्षी दलों के गठबंधन से मोदी और व्याकुल हो गए हैं। दक्षइम भारत तो पहले ही बीजेपी की पहुंच से बाहर था। कर्नाटक में सारी कोशिशों के बावजूद बीजेपी सत्ता के द्वार तक पहुंच कर हार गई। डीएमके और एआईएडीएमके ने 2019 में बीजेपी के साथ किसी भी गठबंधन से इनकार कर दिया है। सबरीमाला पर छाती पीटने के बावजूद केरल में उसका खाता खुलने तक की संभावना नहीं है। पश्चिम और पूर्व दोनों ही में बीजेपी का राह मुश्किल हो चुकी है। ऐसे में सीटें हैं कहां, जहां से मोदी सत्ता में वापसी के सपने बुन रहे हैं।
इस सबके बीच रामलीला मैदान में जब बीजेपी अध्यक्ष 2019 के चुनाव को पानीपत का तीसरा युद्ध कहते हैं पीएम मोदी मजबूर सरकार बनाम मजबूत सरकार का नारा देते हैं, तो यह उनकी निराशा और घबराहट का ही प्रतीक साबित होता है। निश्चित रूप से आज नरेंद्र मोदी एक ऐसे कमजोर प्रधानमंत्री हैं, जो मजबूत विपक्ष के सामने खुद को मजबूर पा रहे हैं।
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