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महाराष्ट्र: पूरे इलाके में ‘अडानी हटाओ, धारावी बचाओ’ लिखे नारे, जनसभाओं में भी ‘अपनी धारावी नहीं देंगे’ की गूंज

विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं का दावा है कि सरकार ने पहले ही रेलवे की 45 एकड़ और कुर्ला डेयरी की 21 एकड़ जमीन परियोजना को सौंप दी है। जनवरी में सरकार ने शहरी विकास विभाग को मुलुंड में 64 एकड़ जमीन के आवंटन का निर्देश दिया था।

फोटो: IANS
फोटो: IANS 

सन 2008 में बनी डैनी बॉयल की ऑस्कर विजेता फिल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ में दिखाई गई झुग्गी बस्ती धारावी में पोस्टर और फ्लैक्स लगे हैं जिसमें ‘अडानी’ को चुनौती देने का आह्वान किया गया है। अडानी समूह द्वारा 2022 में हासिल की गई महत्वाकांक्षी पुनर्विकास परियोजना के खिलाफ जनसभाएं भी जारी हैं। बीते रविवार को एक जनसभा में ‘अपनी धारावी नहीं देंगे’ के नारे लगाए गए जिसे अन्य लोगों के अलावा सांसद और मुंबई कांग्रेस प्रमुख वर्षा गायकवाड़ ने संबोधित किया। आसन्न विधानसभा चुनावों के बीच ऐसे विरोध का खासा महत्व है। माना जा रहा है कि परियोजना को भूमि अधिग्रहण की गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

रॉयटर्स की एक हालिया रिपोर्ट में इस पर जोर दिया गया है कि वर्ष 2000 से पहले से धारावी में रहने वाले ही पुनर्विकास में मुफ्त घर के योग्य होंगे जिनकी अनुमानित संख्या करीब 3,00,000 है। करीब 7,00,000 से ज्यादा लोग अपात्र माने गए हैं जिन्हें स्थानांतरित करने की योजना है। पात्र भी उन्हें ही माना जाएगा जिनके पास जमीन होगी और भूतल पर रहने वाला होगा। बस्ती लंबवत है और हजारों परिवार एक के ऊपर एक जोड़ी गई संकरी मंजिलों पर रहते हैं। इससे परिवारों और व्यवसाय में विभाजन का खतरा है। अडानी समूह और महाराष्ट्र सरकार के बीच के संयुक्त उद्यम को ऐसी जमीन खोजने में दिक्कत हो रही है जहां पुनर्वास किया जा सके। बहुतायत निवासी स्वाभाविक रूप से कहीं और जाना नहीं चाहते।

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रिपोर्ट में धारावी पुनर्विकास प्राधिकरण के प्रमुख एसवीआर श्रीनिवास के हवाले से कहा गया है कि भूमि आवंटन के लिए विभिन्न एजेंसियों से अपील के बावजूद कोई सफलता नहीं मिली है क्योंकि एजेंसियों के पास अपनी योजनाएं हैं और वे इसे देने को तैयार नहीं हैं। उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि मुंबई में जमीन पाना सबसे मुश्किल काम है। धारावी के लोग इस दावे का विरोध करते हैं। उनका मानना है कि पुनर्विकास के नाम पर अडानी समूह को वास्तव में उनके विकास और लाभ कमाने के लिए कीमती जमीन के टुकड़े सौंपे गए थे।

धारावी में एक जनसभा में गायकवाड़ ने दावा किया कि यहां लगभग 590 एक जमीन है जबकि अडानी समूह को 1,500 एकड़ जमीन सौंपी जा रही है। उन्होंने सात लाख ‘अपात्र’ निवासियों संबंधी आंकड़े पर सवाल उठाया और आश्चर्य जताया की सर्वे के अभाव में यह आंकड़ा कैसे निकाला गया। उन्होंने आरोप लगाया कि एनडीए सरकार पुनर्विकास के बहाने जमीन हड़पकर प्रधानमंत्री मोदी के करीबी औद्योगिक समूह को मदद पहुंचाने में लगी हुई है। पूर्व मुख्मयंत्री और शिव सेना (उद्धव बाला साहेब ठाकरे) नेता उद्धव ठाकरे ने परियोजना को ‘लाडला मित्र योजना’ करार दिया है और कहा कि महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की सरकार बनने पर इसे रद्द कर दिया जाएगा।

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विरोध करने वाले कार्यकर्ताओं का दावा है कि सरकार ने पहले ही रेलवे की 45 एकड़ और कुर्ला डेयरी की 21 एकड़ जमीन परियोजना को सौंप दी है। जनवरी में सरकार ने शहरी विकास विभाग को मुलुंड में 64 एकड़ जमीन के आवंटन का निर्देश दिया था। फरवरी में भांडुप और वडाला इलाकों में 284 एकड़ साल्ट-पैन भूमि के आवंटन को मंजूरी दी थी। देवनार में भी 820 एकड़ जमीन की पहचान की गई है। पूर्व विधायक और धारावी निवासी बाबूराव माने के अनुसार, धारावी की आबादी के केवल 5 प्रतिशत यानी लगभग 50,000 निवासियों के पास ही वैध कागजात हैं। चल रहे सर्वेक्षण से यह संख्या और कम हो जाएगी।

निवासियों का यह भी कहना है कि चूंकि अडानी समूह धारावी में ऊंची इमारतें बनाने और इसे 'विश्व स्तरीय शहर' बनाने में लगा है, तब केवल 30 प्रतिशत निवासियों को वहां रहने की अनुमति देने का क्या औचित्य है। कोई भी निवासी यहां से जाना नहीं चाहता है। 26 साल से यहां रह रहीं 46 वर्षीया नीता जाधव ने पहले बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा था, "धारावी के सभी घर दो या तीन मंजिल के हैं। मेरे परिवार के 15 सदस्य एक-दूसरे के ऊपर (एक ही इमारत में) रहते हैं। अगर हमें छोटे से अपार्टमेंट में रखा गया, तो झगड़े बढ़ेंगे। डेवलपर को बड़ा स्थान देने पर विचार करना चाहिए।"

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पवार की ‘मजबूती’

बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ बारिश में बैठे 83 वर्षीय व्यक्ति की छवि राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय रही है। वह पहले से ही राज्य के सबसे बड़े राजनीतिक नेता और प्रमुख सार्वजनिक हस्तियों में से एक हैं। वह बीमार भी हैं। मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा विपक्ष के राज्यव्यापी बंद पर रोक लगाए जाने के बाद शरद पवार विपक्ष के विरोध को आसानी से नजरअंदाज भी कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। महाराष्ट्र ने 2019 में चुनाव प्रचार के दौरान भी शरद पवार को बारिश में भीगते हुए देखा था जिससे उनके समर्थक खासे उत्साहित थे। तब एनसीपी ने 2014 की तुलना में विधानसभा की 13 अधिक सीटें जीती थीं जिसका श्रेय पवार को दिया गया था। आम चुनाव में उनकी पार्टी ने 10 लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ा और 8 पर जीत हासिल की। ​​यह तब हुआ जब चुनाव आयोग ने पार्टी का आधिकारिक चुनाव चिन्ह छीन लिया और भतीजे अजित पवार के नेतृत्व वाले अलग हुए गुट को इसका इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी। भाजपा और अजित पवार के बेहतरीन प्रयासों के बावजूद, अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा बारामती से शरद पवार द्वारा मैदान में उतारी गई सुप्रिया सुले से हार गईं। बहुतायत विश्लेषकों का मानना ​​है कि इस साल के अंत में होने वाले चुनाव में भी वह मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे।

हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ उन्हें दी गई जेड श्रेणी की सुरक्षा पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। सरकार ने मराठा आरक्षण मुद्दे पर अशांति के मद्देनजर इस कदम को उचित ठहराया है। पवार के कुछ समर्थक इसे राज्य में सबसे प्रमुख एमवीए नेता के रूप में उनकी स्थिति की मान्यता के रूप में देखते हैं। पवार खुद अधिक संशयी हैं और उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है कि बढ़ी हुई सुरक्षा का उद्देश्य उन पर ‘जासूसी’ करना और उन्हें लगातार निगरानी में रखना है।

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बदलापुर की छाया

बदलापुर के एक स्कूल में संविदा कर्मचारी द्वारा दो किंडरगार्टन छात्राओं के साथ यौन उत्पीड़न की घटना ने सत्तारूढ़ पार्टी के हलकों में माझी लाडकी बहीण योजना को लेकर पैदा हुए उत्साह पर ग्रहण लगा दिया है। आरोप है कि स्कूल के कई ट्रस्टी भाजपा से जुड़े हैं। सरकार ने स्वीकार किया है कि स्कूल में एक पखवाड़े की सीसीटीवी फुटेज गायब थी जिससे आक्रोश और बढ़ गया है। राज्य सरकार ने यह भी माना कि स्कूल की महिला अटेंडेंट ने जांच समिति के सामने पेश होने से इनकार कर दिया था। संविदा कर्मचारी को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है लेकिन विपक्ष को यह आरोप लगाने के लिए पर्याप्त आधार प्रदान कर दिया है कि सरकार राजनीतिक संबंधों वाले स्कूलों के प्रति नरमी बरत रही है।

विपक्ष का यह भी कहना है कि एमवीए सरकार ने यौन हिंसा से जुड़े मामलों में समयबद्ध अभियोजन और सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए 2021 में एक विधेयक पारित किया था। हालांकि, ‘शक्ति’ विधेयक को 2021 में ही राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया था लेकिन अभी भी राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार है। सरकार को बताना चाहिए कि उसने मंजूरी के लिए क्या किया। विपक्ष ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे द्वारा बच्चों के यौन उत्पीड़न पर सार्वजनिक विरोध और आक्रोश को राजनीति से प्रेरित और विपक्ष द्वारा प्रायोजित बताए जाने पर भी नाराजगी जताई है।

 हालांकि, प्रारंभिक जांच में स्कूल प्रबंधन की खामियां पाई गई हैं। स्कूल प्रबंधन पर आरोप है कि उसने शुरू में शिकायतों को नजरअंदाज किया और उसके बाद झूठा दावा किया कि स्कूल को हमले की पहली सूचना 16 अगस्त को दी गई थी। पीड़ित बच्चों के अभिभावकों का दावा है कि उन्होंने 14 अगस्त को स्कूल को सूचित किया था। सूचना मिलने के बाद भी स्कूल ने पुलिस को सूचित नहीं किया।

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