कुछ महीने बाकी हैं। लेकिन चुनाव प्रचार में पार्टियां अभी से जुट गई हैं। बीजेपी और पीएम मोदी तो वैसे भी सालों भर चुनावी मोड में रहते हैं! अब अगर कहीं चुनाव हो और पीएम मोदी की सभा न हो, दौरा न हो यह संभव नहीं। तो चुनाव नजदीक आते ही पीएम मोदी का राज्यों का दौरा तेज हो गया है।
इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को मध्य प्रदेश के जनजातीय बाहुल्य जिले शहडोल आ रहे हैं। इस प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री जनजातीय समुदाय के साथ संवाद करेंगे और उन्हीं के अंदाज में मोटे अनाज से बने व्यंजनों का स्वाद चखेंगे।
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आधिकारिक जानकारी में बताया गया है कि पीएम मोदी शहडोल के पकरिया गांव पहुंचेंगे, जहां खटिया पर बैठकर देशी अंदाज में जनजातीय समुदाय, फुटबॉल क्रांति के खिलाड़ियों, स्व-सहायता समूह की लखपति दीदियों और अन्य लोगों से संवाद करेंगे। ऐसा पहली बार होगा जब प्रधानमंत्री देशी अंदाज में जनजातीय समुदाय के साथ जमीन पर बैठकर कोदो, भात, कुटकी खीर का आनंद लेंगे।
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संपूर्ण कार्यक्रम भारतीय परंपरा एवं संस्कृति के अनुसार होगा। प्रधानमंत्री मोदी के भोज में मोटा अनाज (मिलेट) को विशेष प्राथमिकता दी जा रही है। पकरिया गांव की जल्दी टोला में प्रधानमंत्री के भोज की तैयारी जोर-शोर से चल रही है।
पकरिया गांव में 4700 लोग निवास करते हैं, जिसमें 2200 लोग मतदान करते हैं। गांव में 700 घर जनजातीय समाज के हैं, जिनमें गोंड समाज के 250, बैगा समाज के 255, कोल समाज के 200, पनिका समाज के 10 और अन्य समाज के लोग रहते हैं। पकरिया गांव में तीन टोला हैं, जिसमें जल्दी टोला, समदा टोला एवं सरकारी टोला शामिल हैं।
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इससे पहले 27 जून को प्रधानमंत्री मोदी का शहडोल आना प्रस्तावित था। मगर, भारी बारिश की चेतावनी के चलते प्रवास को स्थगित कर दिया गया था। उसी समय तय हो गया था कि प्रधानमंत्री एक जुलाई को शहडोल आएंगे।
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पकरिया गांव का जनजातीय समुदाय अद्भुत एवं अद्वितीय है। यहां की जनजातियों के रीति-रिवाज, खानपान, जीवन शैली सबसे अलहदा हैं। जनजातीय समुदाय प्रायः प्रकृति के सान्निध्य में रहते हैं। निसर्ग की लय, ताल और राग-विराग उनके शरीर में रक्त के साथ संचरित होते हैं। पकरिया गांव के जनजाति समुदाय के भोजन में कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा, सांवा, मक्का, चना, पिसी, चावल आदि अनाज शामिल हैं।
महुए का उपयोग खाद्य और मदिरा के लिए किया जाता है। आजीविका के लिए प्रमुख वनोपज के रूप में भी इसका संग्रहण सभी जनजातियां करती हैं। बैगा, भारिया और सहरिया जनजातियों के लोगों को वनौषधियों का परंपरागत रूप से विशेष ज्ञान है। बैगा कुछ वर्ष पूर्व तक बेवर खेती करते रहे हैं।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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