मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार का एक साल पूरा होने पर मुख्यमंत्री कमल नाथ की कार्यशैली में आक्रामकता नजर आने लगी है। एक तरफ जहां वे गांव, गरीब और किसानों की योजनाओं को अमली जामा पहनाते नजर आते हैं तो दूसरी ओर माफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई के दौर को गति देने लगे हैं।
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राज्य में डेढ़ दशक बाद सत्ता में आई कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव के दौर दिए गए वचनों (वादों) को पूरा करना शुरू से ही बड़ी चुनौती नजर आई है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए कमलनाथ ने सबसे पहले किसानों की कर्ज माफी वाली फाइल पर हस्ताक्षर किए। बेरोजगारों को चार माह का भत्ता देने की पहल हुई, राज्य में स्थापित होने वाले उद्योगों में स्थानीय लोगों को 70 प्रतिशत रोजगार देने की नीति मंजूर की गई, संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण की पहल हुई, अन्य कर्मचारियों के हित में भी कई फैसले लिए गए और राज्य लोकसेवा आयोग के जरिए चयनित सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति का रास्ता साफ हुआ।
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एक तरफ जहां सरकार अपने वादों को पूरा करने में लगी रही, वहीं राजनीतिक चौसर पर भी बिसात पर अपनी पकड़ को मजबूत करने के प्रयास भी जारी रख रही है। लोकसभा चुनाव में हार का सामना करने के बाद कांग्रेस ने राज्य की सियासत को अपने अनुकूल बनाने के प्रयास किए। झाबुआ का उपचुनाव जीता तो विधानसभा के भीतर ही बीजेपी के दो विधायकों को अपने पाले में खड़ा करके बीजेपी में टूट का संदेश दिला डाला।
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इस बीच, राज्य सरकार पर बीजेपी के तीखे हमले जारी रहे। बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह ने तो इस सरकार को तबादलों, शराब और रेत नीति में उलझी रहने वाली सरकार करार दिया। उनका कहना है कि एक साल में इस सरकार को तबादला उद्योग, रेत नीति और शराब नीति से ही फुरसत नहीं मिली। किसानों का कर्ज माफ नहीं हुआ, केंद्र सरकार ने आपदा के लिए मदद राशि भेजी, मगर यह सरकार किसानों को राशि ही नहीं दे पाई। खाद के लिए किसानों को परेशान होना पड़ रहा है।
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सत्ता बदलाव के बाद राज्य में तबादले बड़े पैमाने पर हुए और बीजेपी ने इसे मुद्दा बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजवर्गीय ने तबादलों को ही उद्योग का नाम दे डाला।
अब सरकार के मुखिया कमल नाथ का रुख बदल चला है, वह समाज में अशांति का कारण बनने वालों के खिलाफ अभियान चलाने का संकेत दे चुके हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा, "प्रदेश को माफिया मुक्त बनाना हमारा लक्ष्य है, बड़े शहरों के अमले को माफियों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने को कहा गया है। समाज इन माफियाओं से परेशान है।"
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मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रशासन ने भी सख्ती से अमल शुरू कर दिया है। इंदौर में अवैध कब्जों और अपने रसूख के बल पर कई संपत्तियां खड़े करने वाले जीतू सोनी के कई ठिकानों को जमींदोज कर दिया गया। जबलपुर में अब्दुल रज्जाक के मैरिज गार्डन को ढहा दिया गया, इसी तरह भोपाल में कई रेस्टोरेंट के अतिक्रमण को तोड़ा गया। ग्वालियर में भी इमारतें गिरा दी गईं। भोपाल, इंदौर में अवैध तरीके से भूखंड बेचने वालों पर मामले दर्ज हुए हैं।
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राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मिश्रा का कहना है कि समाज में अशांति फैलाने वालों के खिलाफ होने वाली कार्रवाई का हर कोई स्वागत करता है, मगर यह कार्रवाई सिर्फ चुनिंदा लोगों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। प्रशासन ने अगर मुख्यमंत्री की मंशा के अनुसार कार्रवाई की तो जनसमर्थन भी मिलेगा, अगर प्रशासन खास उद्देश्यों तक सीमित रहा तो उसका नकारात्मक संदेश भी जाने में देरी नहीं लगेगी।
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उन्होंने कहा, "यह मुहिम तो अच्छी है, जनता का दिल जीतने वाली है, राजनीतिक लाभ देने वाली भी है, मगर खास लोगों तक आंच पहुंचने के बाद रफ्तार के धीमे पड़ने पर जोखिम भी कम नहीं है।"
सवाल उठ रहा है कि सरकारी जमीन पर अवैध तरीके से कब्जा कर बेचने वालों, भवन बनाने वालों पर कार्रवाई जोर पकड़े हुए है, क्या रेत माफिया, शराब माफियाओं पर भी कार्रवाई होगी? जनसामान्य के पुराने अनुभव अच्छे नहीं हैं, क्योंकि जब भी कोई मुहिम चलती है तो शुरुआत तो अच्छी होती ही है, कमजोरों और राजनीतिक विरोधियों पर गाज गिरती है। मगर जैसे ही कोई ताकतवर की बात सामने आती है तो पूरा अभियान ही ठंडे बस्ते में जाता नजर आने लगता है।
(आईएएनएस इनपुट के साथ)
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