कानपुर में शुक्रवार को आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मुख्य आरोपी विकास दुबे के राजनीतिक संबंध इतने मजबूत थे कि उसका नाम जिले के टॉप 10 अपराधियों की सूची में शामिल नहीं है, जबकि उसके खिलाफ 71 आपराधिक मामले दर्ज हैं। विकास दुबे का नाम राज्य के 30 से अधिक शीर्ष अपराधियों की एसटीएफ सूची में भी शामिल नहीं है, जो इस साल की शुरुआत में जारी की गई थी। कानपुर के एसएसपी दिनेश कुमार ने कहा कि उन्हें सूचना दी गई थी कि पुलिस टीम एक आरोपी को गिरफ्तार करने जा रही है।
उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें ऑपरेशन के समय विकास दुबे की आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में पता नहीं था, और ऑपरेशन बुरी तरह विफल साबित हुआ और आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए। दिनेश कुमार, जिन्होंने कुछ दिनों पहले एसएसपी कानपुर के रूप में पदभार संभाला था, ने अब आदेश दिया है कि अपराधियों की पूरी सूची अविलंब अपडेट की जाए।
Published: 05 Jul 2020, 6:07 PM IST
विकास दुबे और उसके कद के बारे में शुक्रवार से पहले तक राज्य के लोगों को अधिक नहीं पता था, भले ही उसके खिलाफ कई जघन्य आपराधिक मामले दर्ज थे। क्योंकि वह चुपचाप काम करता था और यही कारण है कि राज्य के ज्ञात माफियाओं की सूची में उसका नाम शामिल नहीं था।
दुबे पहली बार 2001 में सुर्खियों में आया था, जब उसने कानपुर के शिवली पुलिस स्टेशन के अंदर बीजेपी नेता संतोष शुक्ला की हत्या कर दी थी। जब शुक्ला की मौत हुई, तब वह उत्तर प्रदेश सरकार में दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री थे। हालांकि दुबे को बाद में एक सत्र अदालत ने उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत न होने के कारण बरी कर दिया था। रिपोर्ट्स के अनुसार, यहां तक कि पुलिसकर्मियों ने भी अदालत में उसके खिलाफ गवाही देने से इनकार कर दिया था।
Published: 05 Jul 2020, 6:07 PM IST
दुबे पर 2018 में माटी जेल के अंदर रहने के दौरान अपने चचेरे भाई अनुराग की हत्या की साजिश रचने का भी आरोप है। वह अनुराग की पत्नी द्वारा नामित चार अभियुक्तों में से एक था। उसने अपराध की दुनिया में कई बड़े कारनामों को अंजाम दिया, जो उसे राजनीति के करीब ले गए। कानपुर के बिकरू गांव के रहने वाले दुबे ने युवाओं के एक समूह के साथ मिलकर अपना एक गिरोह बनाया। जैसे-जैसे उसके खिलाफ डकैती, अपहरण और हत्याओं के मामले बढ़ने लगे, विकास ने सुनिश्चित किया कि उसका दबदबा भी इसी तरह से इलाके में बढ़ता चला जाए।
चुनाव में उसकी मदद स्थानीय राजनेताओं की जरूरत बन गई, जिससे वह सत्ता के भी करीब आ गया। स्थानीय सांसदों और विधायकों ने अपना हाथ विकास के सिर पर रख दिया, क्योंकि वे जानते थे कि उसके प्रभाव से उन्हें चुनाव जीतने में मदद मिलेगी।
Published: 05 Jul 2020, 6:07 PM IST
उसके राजनीतिक गुरुओं ने उसकी अन्य राजनेताओं तक आसान पहुंच सुनिश्चित कराई। यहां तक कि उसने 2015 में नगर पंचायत चुनाव जीतने में भी कामयाबी हासिल की। जब उसके गुरुओं ने अपनी पार्टी बदली तो विकास भी उसी दिशा में घूम गया। जब विधानसभा सत्र होता विकास दुबे को अक्सर विधान भवन परिसर में देखा जाता था। उसे बहुत बार राजनेताओं के बीच देखा जाता था।
वह बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) से समाजवादी पार्टी (एसपी) में गया और और अब हाल के महीनों में उसे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के करीब देखा गया। सोशल मीडिया पर एक पोस्टर वायरल हो रहा है, जिसमें एक तस्वीर में विकास अपनी पत्नी ऋचा दुबे के लिए समाजवादी पार्टी के बैनर तले प्रचार करता नजर आ रहा है। उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री बृजेश पाठक के साथ उसकी तस्वीर राजनेताओं के साथ उनकी निकटता को दर्शा रही है।
Published: 05 Jul 2020, 6:07 PM IST
पिछले वर्षों में दुबे ने धीरे-धीरे कानपुर के बिल्हौर, शिवराजपुर, चौबेपुर, रनिया इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत की है। बिकरू गांव के एक सूत्र के मुताबिक, विकास दुबे को राजनीति का भी बड़ा चस्का लगा हुआ था। सूत्र ने कहा, वह एक विधायक और फिर एक सांसद बनना चाहता था। वह अक्सर कहता था कि वह जल्द ही संसद पहुंचेगा। उसकी स्थानीय राजनेताओं के साथ अच्छी सांठगांठ थी और इसका कारण यह था कि पुलिस ने उसकी गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं किया। सूत्र ने कहा कि विकास ने इस क्षेत्र में बहुत अधिक संपत्ति अर्जित की है और कथित तौर पर लखनऊ और नोएडा में भी उसकी संपत्ति है। नए-नए हथियार भी उसे आकर्षित करते थे।
हालांकि परिवार में उसके संबंधों को तनावपूर्ण बताया गया है। उसकी मां ने शुक्रवार की घटना के बाद उसे लगभग अस्वीकार कर दिया है और कहा कि वह मरने के योग्य है। उसके छोटे भाई ने भी उसका परित्याग कर दिया है।
Published: 05 Jul 2020, 6:07 PM IST
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Published: 05 Jul 2020, 6:07 PM IST