एक ओर जहां हिंदी और उर्दू भाषा में फर्क पैदा कर लोगों के बीच फूट डालने की कोशिश जारी है, वहीं बड़े पैमाने पर देवनागरी लिपि में उर्दू साहित्य के प्रकाशन ने हिंदी पाठकों के बीच उर्दू साहित्य को लोकप्रियता की नई ऊंचाई पर पहुंचाया है। इसकी वजह ये है कि खड़ी बोली का साहित्य हिंदी के साथ-साथ उर्दू भाषा में भी भरा पड़ा है। ऐसे में वैसे उर्दू पाठक जो देवनागरी नहीं जानते और उर्दू लिपि नहीं पहचानने वाले हिंदी के पाठक दोनों ही भारी नुकसान में हैं। क्योंकि इन दोनों भाषाओं की बहुत सारी रचनाओं का दूसरी भाषा में अनुवाद या रुपांतरण उपलब्ध नहीं होने के कारण कई पाठक दूसरी भाषा के साहित्य से वंचित हैं।
पिछले दिनों अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रख्यात कहानीकार-नाटककार असगर वजाहत की रचनाओं को संकलित कर तैयार की गई किताब 'संचयन: असगर वजाहत' के तीन खण्डों का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर असगर वजाहत ने अपनी दो छोटी कहानियां 'नेताजी और औरंगजेब' और 'नया विज्ञान' का पाठ भी किया। इस मौके पर शायर शहरयार, जावेद कमाल और कुंवरपाल सिंह को याद करते हुए असगर वजाहत ने कहा कि उर्दू के जो पाठक देवनागरी नहीं पढ़ पाते और हिंदी के वे पाठक जो उर्दू लिपि नहीं जानते, दोनों भारी नुकसान में हैं, क्योंकि खड़ी बोली का साहित्य इन दोनों लिपियों में बिखरा हुआ है।
Published: 30 Apr 2018, 6:26 PM IST
यूनिवर्सिटी के केनेडी हॉल में आयोजित लोकार्पण समारोह में किताब के संपादक डॉ पल्लव ने पुस्तक प्रकाशन योजना पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि असगर वजाहत हमारी भाषा और संस्कृति के बहुत बड़े लेखक हैं, जो अपने लेखन में असंभव का संधान करते हैं।
भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान मानवता को मिले दर्द का एहसास कराती रचना ‘शाहआलम कैंप की रूहें’ के लेखक असगर वजाहत ने कई मर्मस्पर्शी और दिल को छू लेने वाली रचनाएं साहित्य जगत को दी हैं। इनमें सामाजिक पाखंड पर व्यंग्य के जरिये चोट करती कहानी 'लकड़ियां', “गोड्से@गांधी.कॉम”, “इन्ना की आवाज” जिने लाहौर नई वेख्या”, जैसी रचनाएं और नाटक शामिल हैं।
Published: 30 Apr 2018, 6:26 PM IST
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Published: 30 Apr 2018, 6:26 PM IST