राष्ट्रीय विधि आयोग ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए यानी राष्ट्रद्रोह कानून पर गुरुवार को एक परामर्श पत्र जारी किया। अपने परामर्श पत्र में आयोग ने कहा कि देश या उसके किसी पहलू या सरकार और उसकी नीतियों की आलोचना करना देशद्रोह नहीं होता। किसी व्यक्ति के विचार सरकार की वर्तमान नीतियों से मेल नहीं खाने के कारण उसपर देशद्रोह का आरोप नहीं लगाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस बीएस चौहान के नेतृत्व वाले विधि आयोग ने कहा है कि राष्ट्रद्रोह कानून को सिर्फ वैसे मामलों में ही लगाया जाना चाहिए, जिनमें किसी काम का उद्देश्य कानून-व्यवस्था बिगाड़ना या फिर हिंसा या अन्य अवैध तरीकों से सरकार को उखाड़ फेंकना हो। आयोग ने अपने परामर्श पत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करपते हुए कहा कि अभिव्यक्ति का अधिकार देश की अखंडता को बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है।
आयोग ने कहा कि लोकतंत्र में एक ही किताब से गाना देशभक्ति का आदर्श नहीं है। लोगों को इस बात की आजादी है कि वह अपने-अपने तरीके से देश के प्रति अपना प्यार दिखा सकें। सरकार की कुछ नीतियों में कमी की ओर इशारा करते हुए आयोग ने कहा कि ऐसे में कोई भी स्वस्थ बहस या आलोचना में शामिल हो सकता है। ऐसी स्थिति में प्रतिक्रिया देने वाले का लहजा कई बार कठोर और कुछ लोगों को नापसंद हो सकता है, लेकिन इसे देशद्रोह नहीं कहा जा सकता है। आयोग ने कहा कि अगर लोगों को सकारात्मक आलोचना का अधिकार नहीं होगा तो आजादी के बाद और उससे पहले के वक्त में कोई फर्क नहीं रह जाएगा। अपने ही इतिहास की आलोचना का अधिकार और ठेस पहुंचाने का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत संरक्षित अधिकार हैं।
आयोग ने कहा कि राष्ट्रद्रोह कानून (124ए) पर पेश इस सुझाव पत्र में कई मुद्दे रखे गए हैं, जिन पर अभी विस्तृत चर्चा की जरूरत है। आयोग ने कहा कि इस मुद्दे पर न्याय क्षेत्र के विद्वानों, कानून निर्माताओं, सरकार और गैर सरकारी संगठनों, बुद्धिजीवियों, विद्यार्थियों और सबसे अहम आम जनता के बीच इस मुद्दे पर स्वस्थ बहस होनी चाहिए, ताकि जरूरी सुधार किये जा सकें। आयोग ने कहा कि देशद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा ‘124 ए’ के संशोधन का अध्ययन करते समय यह बात ध्यान में रखा जाना चाहिए कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में इस धारा को जोड़ने वाले ब्रिटेन ने अपने यहां 10 साल पहले ही देशद्रोह के प्रावधानों को हटा दिया है।
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