पंजाब के अमृतसर में विजयदशमी के दिन हुई रेल दुर्घटना ने एक बार फिर हमें याद दिलाया है कि अगर हम सभी दुर्घटनाओं को कम कर बेहतर सुरक्षा व्यवस्था स्थापित करें तो हर साल लाखों लोगों को मौत और गंभीर रूप से घायल होने से बचाया जा सकता है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल औसतन लगभग 3 लाख लोग दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं और लगभग 5 लाख लोग घायल होते हैं।
देश के सुदूर इलाकों की अनेक दुर्घटनाएं प्रकाश में नहीं आ पाती हैं। अक्सर हादसों के बाद घायल होने वालों की संख्या बहुत कम बताई जाती है, जबकि दुर्घटना में घायल होने वालों की समस्या बहुत गंभीर है। इसकी वजह से बहुत से लोग कम या अधिक समय के लिए अपंग हो जाते हैं (कभी-कभी तो यह अपंगता जीवन-भर चल सकती है)। अनेक दुर्घटनाग्रस्त लोगों को लंबे समय तक इलाज करवाना पड़ता है, जिसमें बहुत खर्च होता। इसके लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ता है और इस वजह से उनका जीवन बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है।
दुर्घटनाओं से हर साल कितने लोग घायल होते हैं, इसके बारे में प्रमाणिक जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि इस कारण जितने लोगों की मौत होती है, उससे कई गुणा अधिक लोगों को दर्दनाक चोटें लगती हैं। इंग्लैंड जैसे कुछ देशों में आंकड़े विस्तार से एकत्र होते हैं। वहां दुर्घटनाओं में घायल होने वाले लोगों की संख्या दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों से 50 गुणा से भी अधिक पाई गई है, जबकि भारत में आंकड़े घायल और मरने वाले लोगों की संख्या को लगभग एक बराबर ही बताते हैं। स्पष्ट है कि विभिन्न दुर्घटनाओं में घायल होने वाले लोगों की संख्या को हमारे देश के आंकड़ों में बहुत कम दिखाया गया है। दुर्घटनाओं में घायल होने वाले लोगों की संख्या सरकारी आंकड़ों से कई गुणा अधिक है।
इसके अलावा कार्यस्थल की दुर्घटनाओं और घरेलू दुर्घटनाओं की संख्या को भी बहुत कम आंका गया है। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की अधिकांश दुर्घटनाओं के आंकड़े एकत्र नहीं होते हैं, जबकि संगठित क्षेत्र में भी कई दुर्घटनाओं या उनसे होने वाली मौतों को दबा दिया जाता है। सरकारी आंकड़े जहां ये दिखाते हैं कि भारत में दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों की दर विश्व औसत से कम है, वहीं हकीकत यह है कि भारत में दुर्घटनाओं की दर विश्व औसत से अधिक होने की स्थितियां मौजूद हैं।
इसिलए अगर दुर्घटनाओं और खासकर उनमें घायल होने वाले लोगों की जानकारी ठीक से एकत्र की जाती है तो वास्तविक स्थिति इस समय उपलब्ध आंकड़ों से कहीं अधिक गंभीर पाई जाएगी। अगर सभी मृत और गंभीर घायलों की गिनती करें तो एक साल में दुर्घटनाओं से मरने वाले लोगों की संख्या लगभग 4 लाख है और इससे लगभग 25 गुणा अधिक लोग दुर्घटनाओं में घायल होते हैं। यानी लगभग एक करोड़ लोग घायल होते हैं। अगर पर्याप्त सावधानी अपनाई जाए तो फिलहाल इनमें लगभग 50 प्रतिशत कमी 5 साल में ही लाई जा सकती है। दूसरे शब्दों में दुर्घटना में होने वाली मौतों को हम 4 लाख प्रति वर्ष से 2 लाख प्रति वर्ष कर सकते हैं और घायल होने वालों की संख्या को भी आधी कर सकते हैं।
इस समय दुर्घटनाओं को कम करने के लिए जो छिटपुट प्रयास हो रहे हैं, वे विभिन्न विभागों में बंटे हुए हैं। उनमें कोई आपसी समन्वय नहीं है। इस कारण दुर्घटनाओं को कम करने की कोई समग्र सोच विकसित नहीं हो पा रही है। सभी तरह की दुर्घटनाओं को एक साथ जोड़कर देखने से ही समस्या की गंभीरता का सही आकलन होता है और इसे कम करने के लिए समग्र नीति बनाने में मदद मिलती है।
इसलिए सभी तरह की दुर्घटनाओं को एक साथ कम करने के सुनियोजित प्रयास के लिए राष्ट्रीय स्तर पर दुर्घटनाओं को कम करने का ऐसा प्राधिकरण बनाना चाहिए जो विभिन्न विभागों की सीमाओं से ऊपर उठ सके और समग्र योजना बना सके। इसकी राज्य स्तर और धीरे-धीरे जिले स्तर तक इकाईयां बननी चाहिए। इस प्राधिकरण को चाहिए कि वह दुर्घटनाओं को तेजी से कम करने के प्रयासों को एक जन-अभियान का रूप दे और लोगों के नजदीकी सहयोग से, उनकी स्थानीय समझ और जानकारियों से लाभ उठाते हुए कम समय से अधिक सफलता प्राप्त की जाए।
Published: 23 Oct 2018, 5:59 AM IST
दुर्घटनाओं को कम करने के साथ-साथ सभी तरह की दुर्घटनाओं में तुरंत और बेहतर चिकित्सा उपलब्ध करवाने की व्यवस्था भी होनी चाहिए। इस प्रकार से भी बहुत सी अनमोल जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। स्पष्ट है कि दुर्घटनाओं से बहुत व्यापक स्तर का और बहुत गहरा दुख-दर्द जुड़ा है। अनेक देशों के अनुभवों से यह सामने आया है कि अगर योजनाबद्ध तरीके और निष्ठा से दुर्घटनाओं को कम करने के प्रयास निरंतरता से किये जाएं तो दुर्घटनाओं में महत्त्वपूर्ण कमी लाई जा सकती है। इस दिशा में समग्र योजना बनाकर कार्य करना चाहिए और विभिन्न देशों को एक-दूसरे के अनुभवों से सीखना भी चाहिए।
Published: 23 Oct 2018, 5:59 AM IST
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Published: 23 Oct 2018, 5:59 AM IST