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दिल्ली में लाखों किसानों-मजदूरों ने भरी हुंकार, मोदी सरकार नीति बदलो, नहीं तो सरकार बदल देंगे

देश की राजधानी दिल्ली को बुधवार को मजदूर-किसान रैली ने लाल रंग में रंग दिया। रैली में जुटे देश भर के लाखों किसानों-मजदूरों ने कहा कि मोदी सरकार देश की जनता के खिलाफ काम कर रही है, लिहाजा गद्दी छोड़े।

फोटोः बिपिन
फोटोः बिपिन मोदी सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ दिल्ली में जुटे लाखों किसान-मजदूर

`अच्छा, क्या आप किसान रैली में जा रही हैं, तब फिर मैं आपसे पैसे नहीं लूंगा, मैं भी किसान का बेटा हूं। हालात बहुत खराब हैं और सरकार पूरी तरह से गरीब के खिलाफ हो गयी है। मेरे गांव से भी लोग आए हैं’– सामने से रैली चली आ रही थी, लिहाजा, यह कहते हुए फिरोजशाह रोड पर ऑटोवाले ने मुझे उतार दिया।

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देश की राजधानी दिल्ली को बुधवार को मजदूर-किसान रैली ने लाल रंग में रंग दिया। मंडी हाउस से लेकर जंतर-मंतर, पार्लियामेंट स्ट्रीट, कनॉट प्लेस, अशोका रोड, रायसीना रोड यानी सेंट्रल दिल्ली के तमाम अहम केंद्रों पर आज लाखों की तादाद में 26 राज्यों से आए किसान-मजदूर, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा कार्यकर्ता, बीएसएनएल कर्मी, कंस्ट्रकशन वर्कस, बीड़ी मजदूर, स्कूल टीचर, मध्यांह्न भोजन बनाने वाले, कोयला मजदूर, स्टील मजदूर, प्लांटेशन मजदूर सहित खेतिहर मजदूर ही नजर आ रहे थे। देश की अलग-अलग भाषाओं में एक ही तरह के नारे लग रहे थे-`नीति बदलो, नहीं तो जनता सरकार बदल देगी। कॉरपोरेट लूट पर टिकी मोदी सरकार, गद्दी छोड़ो-गद्दी छोड़ो’। यह रैली मूलतः सीपीएम से जुड़े जनसंगठनों की थी, जिसमें प्रमुख भूमिका सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू), ऑल इंडिया किसान सभा और अखिल भारतीय कृषि मजदूर यूनियन (एआईएडब्लूयू) ने निभाई। ये सारे सीपीएम से जुड़े जनसंगठन हैं।

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अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के महासचिव हन्नान मोल्ला ने बताया कि देश में जो उत्पादक तबका है यानी मजदूर, किसान और कामगार-खेतिहर मजदूर उन सभी का कहना है कि मोदी सरकार देश की जनता के खिलाफ काम कर रही है, लिहाजा गद्दी छोड़े। उन्होंने कहा, “किसानों की दो बड़ी मांगें हैं। पहली है, लागत का डेढ गुना समर्थन मूल्य और खरीद की गारंटी दी जाए और कर्ज माफी और खेती करने वाले को जमीन दी जाए। कृषि मजदूरों की मांग है कि साल में कम से कम 200 दिन काम और मनरेगा के तहत 300 रुपये मजदूरी दी जाए और कृषि मजदूरों के लिए एक केंद्रीय कानून लाया जाए। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र को जिस तरह से निजी क्षेत्र को बेलगाम ढंग से बेचा जा रहा है, हम उसका विरोध करते हैं।” हन्नान मोल्ला ने मांग की कि 18,000 रुपये न्यूनतम मजदूरी घोषित की जाए, ठेकेदारी खत्म कर पक्की नौकरी दी जाए।

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इस रैली से पहले देश भर से दो करोड़ हस्ताक्षर जुटाये गये और विभन्न तबकों को गरीब-मजदूर-किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ एकजुट किया गया। बिहार के भभुआ से आईं किरण देवी ने बताया, “नीतीश सरकार हो या मोदी सरकार, सब गरीबों पर जुल्म कर रही है। मनरेगा का काम ठप्प है, नौकरी है नहीं, महंगाई से हम सब मर रहे हैं। ऐसे देश न चली। सरकार बदले के पड़ी (अब सरकार बदलनी पड़ेगी।”

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सीआईटीयू की हेमलता ने बताया कि देश भर में मजदूरों की हालत खराब है। उन्होंने कहा, “बड़े पैमाने पर नौकरियां कम कर दी गई हैं और छंटनी मोदी सरकार के प्रशासन का हिस्सा बन गया है। केंद्र की मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों ने मजदूरों को सड़क पर उतरने के लिए मजबूर किया है।” आंगनबाड़ी फेडरेशन की ए आर सिंधू ने बताया, “देश भर से आंगनबाड़ी वर्कर यहां आई हैं, क्योंकि हम सब मजदूर हैं। हमें सरकार कुछ भी नहीं समझती। सरकारें सारी योजनाओं को हमसे लागू करवाने पर उतारू रहती हैं, लेकिन कोई सुविधा नहीं देती।”

केंद्र की मोदी सरकार को मजदूर विरोधी, किसान विरोधी और विकास विरोधी घोषित करने में यह रैली बहुत हद तक सफल दिखाई दी। खासतौर से इसमें बीड़ी मजदूरों से लेकर बीएसएनएल कर्मियों और कोयला मजदूरों का किसान-मजदूरों के साथ उतरना, एक अलग किस्म का संकेत देता है, जो आने वाले समय में देश की राजनीति की दिशा तय करता नजर आ रहा है।

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