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जानिए क्या है ‘लो अर्थ ऑर्बिट’ (एलईओ), जहां भारत ने मार गिराया सजीव उपग्रह

पृथ्वी की सतह से सबसे नजदीक होने की वजह से इस ऑर्बिट में किसी उपग्रह को स्थापित करने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। मौसम, निगरानी करने वाले उपग्रह और जासूसी उपग्रहों को इसी ऑर्बिट में स्थापित किया जाता है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

पीएम मोदी ने आज देश के लोगों से मुखातिब होते हुए भारत द्वारा पृथ्वी की निचली कक्षा में एंटी सैटेलाइट (ए-सेट) मिसाइल से एक सजीव उपग्रह को नष्ट किये जाने के बारे में बताया है। लो अर्थ ऑर्बिट यानि पृथ्वी की निचली कक्षा में हुए इस ऑपरेशन को बुधवार को भारतीय वैज्ञानिकों ने अंजाम दिया है।अमेरिका, चीन और रूस के बाद भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। आइये जानते हैं कि आखिर क्या है ये लो अर्थ ऑर्बिट।

दरअसल पृथ्वी की सतह से 160 किलोमीटर और 2,000 किलोमीटर के बीच ऊंचाई पर स्थित लो अर्थ ऑर्बिट पृथ्वी की सबसे नजदीकी कक्षा है। लो अर्थ ऑर्बिट के बाद मिडियन अर्थ ऑर्बिट, और उसके बाद पृथ्वी की सतह से 35,786 किलोमीटर पर हाई अर्थ ऑर्बिट है।

लो अर्थ ऑर्बिट में मौसम, निगरानी करने वाले उपग्रह और जासूसी उपग्रहों को स्थापित किया जाता है। पृथ्वी की सतह से सबसे नजदीक होने की वजह से इस ऑर्बिट में किसी उपग्रह को स्थापित करने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस कक्षा की खास बात यह भी है कि इसमें ज्यादा शक्ति वाली संचार प्रणाली को स्थापित किया जा सकता है।

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इंडियन स्पेस रिसर्च सेंटर (इसरो) के मुताबिक साल 2022 में भारत की ओर से जो तीन भारतीय अंतरिक्ष भेजे जाएंगे, वो भी इस लो अर्थ ऑर्बिट में रहेंगे। इस प्रोजेक्ट के दौरान इसरो की तरफ से इन तीन लोगों को महज 16 मिनट में स्पेस में पहुंचा दिया जाएगा और तीनों भारतीय स्पेस के 'लो अर्थ ऑर्बिट' में 6 से 7 दिन बिताएंगे।

वहीं हाल ही में कुछ सैटेलाइट इस कक्षा में भेजे गए थे। इनमें से कुछ उपग्रह ऐसे हैं जिनकी सहायता से इंटरनेट की स्पीड में इजाफा करने का प्रयास भी किया गया है। हालांकि, लो अर्थ ऑर्बिट में किसी भी उपग्रह का काफी समय तक बने रहना काफी मुश्किल भी होता है।

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