यह पूरी तरह से असंभव था कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी, जिसके लिए चुनाव ही सब कुछ है, वे सम्मानपूर्वक पीछे हट जाती और कांग्रेस-जेडीएस को राज्य में सरकार गठन का मौका देती। बीजेपी को स्पष्ट रूप से जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन से मात मिली थी और भारतीय लोकतंत्र के अस्तित्व को बचाने के लिए महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस अपने पास उपलब्ध सभी कानूनी और संवैधानिक ताकतों का इस्तेमाल करते हुए इस कठिन लड़ाई को जारी रखे, जो न सिर्फ बीजेपी के दोमुंहेपन और पाखंड का पर्दाफाश करेगी बल्कि अपने खुद के संवैधानिक परंपराओं के प्रति उसके सम्मान और लोकतांत्रिक मूल्यों की कमी को भी उजागर करेगी।
भारत कोई हिंसक क्रांति वाला देश नहीं है। अपने विदेशी शसकों के खिलाफ हिंसा का रास्ता अपनाने वाले अन्य देशों के विपरीत महात्मा गांधी और कांग्रेस ने अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए हिंसा का इस्तेमाल से परहेज किया, जिसे नहीं पता था कि अहिंसक असहयोग आंदोलन के हथियार का मुकाबला कैसे किया जाए।
अब उसी तरह का शांतिपूर्ण विरोध शुरू करते हुए राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव ने बिहार के राज्यपाल से मिलकर पिछले साल नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी के गठबंधन को सरकार बनाने के लिए निमंत्रण देने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए ज्ञापन सौंपा। पिछले साल जुलाई में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद राज्यपाल द्वारा सरकार गठन के लिए नहीं बुलाए जाने के खिलाफ राजभवन के बाहर धरने पर बैठने वाली आरजेडी अब कर्नाटक के उदाहरण के आधार पर दोबारा अपने दावे के लिए दबाव बना रही है। मणिपुर और गोवा में कांग्रेस ने भी ऐसा ही किया। यह असंभव है कि मोदी के द्वारा विशेष तौर पर ऐसे ही काम के लिए चुने गए इन राज्यों के राज्यपाल उनकी मांगों को मानेंगे। लेकिन यह पूरी तरह संभव है कि 2019 में बीजेपी को हराने के लिए देश विपक्षी एकता के रास्ते पर चल पड़ा है और इसमें अगले कुछ महीनों में तेजी आएगी जो राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव तक जाएगी।
कर्नाटक के चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए भी एक सबक हैं। वैसे राज्य जहां कांग्रेस की सीधी लड़ाई बीजेपी के साथ हो सकती है, उसे गैर-बीजेपी वोट शेयर को बनाए रखने के लिए छोटे धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ गठजोड़ करना होगा और बीजेपी को जरूरत से ज्यादा सीट नहीं लाने देना होगा। सबकुछ कहा और किया जा चुका है। आज कांग्रेस एकलौती पार्टी है जो बीजेपी का मुकाबला कर रही है और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एकमात्र ऐसे नेता हैं जो स्पष्ट रूप से मोदी से लड़ रहे हैं। जैसा कर्नाटक में हुआ, उसी तरह बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए इसे कई राज्यों में अपने सहयोगी दलों का नेतृत्व स्वीकार करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी या फिर केंद्र में शरद पवार को मौकरा देना होगा, जो 2019 में गठबंधन बनाने और उसे बनाए रखने में एकमात्र सक्षम नेता हो सकते हैं।
कई कांग्रेस नेताओं को डर है कि अस्थायी रूप से नेतृत्व का त्याग करना बिहार और उत्तर प्रदेश की तरह अपनी पार्टी को हाशिये पर ढकेल देना होगा। लेकिन ऐसा नहीं करना उन सभी धर्मनिरपेक्ष दलों का विनाश होगा जो नियमों पर चलते हैं, जबकि बीजेपी ऐसा नहीं करती है।
हालांकि, यह विवाद कांग्रेस के लिए वरदान साबित हो सकता है, जिसने बाधाओं से लड़ने में हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ दिया है। चाहे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान शक्तिशाली ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई हो या विभाजन के बाद सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ एकता कायम करने में, जो महात्मा गांधी की हत्या के बाद देश का और अधिक विभाजन कर देते...।
देश के स्थिर होने के बाद इंदिरा गांधी समेत दूसरी पीढ़ी के कांग्रेस नेताओं को गरीबी, भूख, विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों, देश को अस्थिर करने के बाहरी ताकतों के प्रयासों से लड़ना पड़ा, जिसका परिणाम 19 75 की दुर्भाग्यपूर्ण आपातकाल के रूप में सामने आया। तीसरी पीढ़ी को भारत को अंधेरे युग से बाहर लाने और इसे वैश्वीकृत दुनिया का हिस्सा बनाने के लिए लड़ना पड़ा। लेकिन यूपीए शासन में जब अर्थव्यवस्था स्थिर हुई और दोनों ग्रामीण और शहरी भारतीयों को आरामदायक जीवन मिलना शुरू हो गया, तो पार्टी ने आनंद में डूब कर अपने जूझने और लड़ने के तेवर को खो दिया।
मोदी ने कांग्रेस और अन्य सभी दलों को, जिनमें से ज्यादातर या तो कांग्रेस का अंश रही हैं या देश के हितों के लिए लड़ने के प्रति अधिक आक्रामक नहीं हैं, फिर से लड़ने की एक वजह दे दी है। कर्नाटक में चल रहे नाटक के होने वाले प्रभावों को देखते हुए यह लड़ाई एक देश के तौर पर हमारी विविधता में एकता, बहुलता, हमारी बुनियादी स्वतंत्रता और अस्तित्व की सभी लड़ाइयों से बड़ी हो सकती है।
मोदी ने कांग्रेस और अन्य सभी दलों को दिया है - उनमें से ज्यादातर कांग्रेस के टूटने या देश के हितों के लिए आक्रामक नहीं हैं - फिर से लड़ने का एक कारण। और यह लड़ाई, कर्नाटक में सामने आने वाले नाटक के प्रभावों पर विचार करते हुए, हमारी विविधता में हमारी एकता के रूप में हमारी बहुतायत और अस्तित्व के लिए सभी युद्धों की मां हो सकती है, हमारी बहुलता हमारी विविधता में हमारी एकता है। हमारा लोकतंत्र, हमारा संविधान।
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अगर बीजेपी की समझ थोड़ी सही होती होती और उसे थोड़ा कम लालच होता तो उन्होंने इस खतरनाक स्थिति से सलीके से निपटा होता। उनके इस कदम का समय विपक्ष के नजरिये से एकदम सटीक है। लोकसभा चुनाव के ज्यादा दूर नहीं होने से इस विवाद ने उन्हें पर्याप्त समय और फौरन हरकत में आने और साथ आने का मौका दे दिया है क्योंकि वे अंत समय तक इस माहौल को बरकरार रख पाने में सक्षम नहीं होंगे। जो हमारी सोच से बहुत जल्दी हो सकता है क्योंकि मोदी और शाह द्वारा विपक्षी एकता के निर्माण को बर्दाश्त करने और उन्हें अपनी ताकत को मजबूत करने के लिए पर्याप्त समय देने की कोई संभावना नहीं है।
भारत की आधी रात को भाग्य के साथ पहली मुलाकात 15 अगस्त, 1947 को हुई थी। भारत की आधी रात को भाग्य के साथ दूसरी मुलाकात 70 साल बाद 17 मई 2018 को तब हुई, जब कांग्रेस और जेडी (एस) ने कर्नाटक के गवर्नर के न सिर्फ अल्पसंख्यक सरकार को शपथ दिलाने बल्कि लोकतंत्र और संविधान को भी कमजोर करने के पक्षपातपूर्ण फैसले के खिलाफ अपनी याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अगर कांग्रेस इस लड़ाई में हार भी जाती है तो भी उसे अपने सहयोगियों के साथ मिलकर देश के लिए बड़ी लड़ाई को हर हाल में जीतना होगा। और वह लड़ाई संभवततः हमारी स्वतंत्रता के लिए तीसरी और आखिरी लड़ाई होगी। इस बार यह लड़ाई कट्टरता और निरंकुश शासन के खिलाफ होगी। अगर हम इस युद्ध को हार जाते हैं, तो हम अपनी आत्माओं को खो देंगे।
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