जेएनयू देशविरोधी नारेबाजी केस में दिल्ली पुलिस ने सोमवार को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में 1200 पन्नों का चार्जशीट दाखिल किया है। चार्जशीट में जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया, उमर खालिद, अनिर्बान भट्टाचार्य, आकिब हुसैन, मुजीब हुसैन, मुनीब हुसैन, उमर गुल, राईए रसूल, बशीर भट्ट समेत 10 लोगों को आरोपी बनाया गया है। दिल्ली पुलिस की ओर से फाइल चार्जशीट पर सुनवाई 19 जनवरी तक के लिए टल गई है। इस मुद्दे पर कन्हैया कुमार से बातचीत की नवजीवन के रिपोर्टर विश्वदीपक ने।
जब आपको देशद्रोह की धाराओं के तहत चार्जशीट फाइल होने खबर मिली तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी ?
सोमवार को जब ये ख़बर आई तो मैं लोगों के बीच में था। लोगों ने कहा कि बिल्कुल नहीं घबराना है, दही चूड़ा खाना है और चोरी कर रहे चौकीदार को गद्दी से हटाना है। असल में इस बात की खबर इनको भी है। मैं एक बहुत अहम बात आपको बता रहा हूं। हाल ये हो गया था कि चौक-चौराहों, गली-मोहल्लों, बस और ट्रेन में आरएसएस-बीजेपी के कार्यकर्ता मुंह नहीं खोल पा रहे थे। मोदी सरकार की असफलताओं ने इन्हें गूंगा बना था। तो चार्जशीट फाइल करने के बहाने इन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को बोलने के लिए एक मुद्दा थमा दिया है। अब ये अपने लोगों से कह रहे हैं कि देखो चार्जशीट फाइल हो गई है। अब इसका डंका पीटो, पर सचाई तो ये है कि चार्जशीट करने का दबाव हमने बनाया। मैं अभी भी कह रहा हूं कि स्पीडी ट्रायल होना चाहिए। इतने आत्मविश्वास से मैं इसलिए बोल रहा हूं कि क्योंकि मुझे मालूम है कि हमें दबा सकते हैं, हरा नहीं सकते।
खबरों से पता चला कि चार्जशीट बेहद सतही आधार पर पेश की गई है। जैसे कि आप जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष थे, इस नाते जेएनयू कैंपस में छात्र जो भी करते हैं, उसकी जिम्मेदारी आपकी बनती है।
दरअसल, ये सरकार सिस्टम को समझते ही नहीं है। न ही इनको सरकार चलाना आता है। ऐसा दावा करना इनकी अनुभवहीनता का जीता जागता प्रमाण है। जेएनयू कोई देहात में स्थित विश्वविद्यालय नहीं है। ये देश की राजधानी दिल्ली में स्थित है। तमाम तरह की एजेंसियों की निगाह इस विश्वविद्यालय में रहती है। इसके अलावा दिल्ली पुलिस 24 घंटे यहां पहरा देती है। अगर जेएनयू छात्र संघ का अध्यक्ष होने के नाते, जेएनयू में होने वाली हर घटना के बारे में मुझे पता होना चाहिए तब तो गृह मंत्री रहते हुए राजनाथ सिंह को भी पता होना चाहिए कि जेएनयू में क्या हो रहा है।
अच्छा किया, आपने गृहमंत्री राजनाथ सिंह की याद दिलाई। फरवरी 2016 में जब ये घटना हुई और उसके बाद कई दिनों विरोध प्रदर्शन हुए तब उन्होंने इसे पाकिस्तानी आतंकवादी हाफिज सईद का नाम लिया था। राजनाथ सिंह ने कहा था कि इस घटना के पीछे हाफिज सईद का हाथ है।
मैं ये पूछना चाहता हूं कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह के दावे का क्या हुआ। उस समय गृह मंत्री ने कहा था कि जेएनयू में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी रहते हैं। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या हुआ उनकी उस जानकारी का। मैं जानना चाहता हूं कि दिल्ली पुलिस द्वारा फाइल की गई चार्जशीट में क्या हाफिज सईद का नाम है या नहीं ? किस आधार पर देश के केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह का बयान आया था। असल में, ये फेक न्यूज, फेंकू प्रधानमंत्री और फेंकू पार्टी का दौर है। मैं मानता हूं कि इस दौर में सच को स्थापित होने में वक्त जरूर लगेगा, लेकिन सच स्थापित होगा ज़रूर।
आपकी मां को जब चार्जशीट फाइल होने की खबर मिली तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी ?
अब वो समझने लगी हैं कि ये एक राजनीतिक षड्यंत्र है। सुन-सुन कर वो परिपक्व हो चुकी हैं। जब मैं जेल में था तो जरूर मेरी मां परेशान थी लेकिन अब तो मैं उनके साथ रहता हूं। उन्होंने खुद ही कहा है कि अच्छा हुआ चार्जशीट फाइल हुई। कोर्ट में सच सामने आ जाएगा कि कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही?
आपने कहा कि दिल्ली पुलिस का ये कदम पॉलिटिकली मोटिवेटेड है। इससे क्या राजनीतिक फायदा होगा मोदी सरकार को ?
देखिए, चुनाव आने वाला है और सरकार जाने वाली है। पिछले साढ़े 4 साल के दौरान मोदी सरकार ने फेक मुद्दे ही उठाए हैं ताकि असली मुद्दों से ध्यान भटकाया जा सके। तीन साल बाद एक बार फिर से नेशनल और एंटी नेशनल का मुद्दा लेकर आ गए हैं। इससे कुछ महीने पहले ये राममंदिर का मुद्दा लेकर आए थे।
जाहिर है, सरकार बार-बार अपने गोलपोस्ट बदल रही है। साफ है कि सरकार डरी हुई है। और मैं आपको बता दूं कि सरकार को कहीं न कहीं ये अंदाजा है कि जनता इनका साथ छोड़ चुकी है। जनता का जो गुस्सा है, दबाव है उसी का नतीजा है कि विपक्षी दलों को भी अपने-अपने हित छोड़कर एक साथ आना पड़ा रहा है। लग रहा है कि हिंदी पट्टी में बीजेपी को भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा। दक्षिण में पहले से ही इनके पास कोई आधार नहीं है। तो इस हताशा में सरकार सारे हथकंडे अपना रही है कि कैसे विपक्षी दलों को बदनाम किया जाए।
इस तरह से ये लोग दो लक्ष्य हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। एक तो जो इनके विरोध में आए हैं उनको बदनाम करना और दूसरा जो इनके समर्थन में आए हैं उनको कुछ बोलने के लिए झुनझुना पकड़ा देना। कल मैं बीजेपी के प्रवक्ताओं को सुन रहा था। ऐसा लग रहा था कि चार्चशीट एक बहाना है, 2019 निशाना है। जैसे ही चार्जशीट फाइल हुई, ऐसे हल्ला करने लगे जैसे फैसला आ गया हो। कन्हैया कुमार के नाम पर, जेएनयू के नाम पर निशाना साधा जा रहा है। इतना ही नहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और विपक्ष के बाकी नेताओं पर हमला बोला जा रहा हैं। इस राजनीतिक षणयंत्र का खुलासा इनके ही कारनामों से हो रहा है।
क्या आपको लगता है कि देशद्रोह जैसे गंभीर कानून का मजाक बना दिया है मोदी सरकार ने ?
आप ये देखिए कि चाहे वो सिजिटनशिप बिल का मामला हो या चाहे आरक्षण का मामला हो या फिर चाहे पाटीदार आंदोलन का मामला हो। जिसने भी विरोध किया उसके ऊपर मोदी सरकार ने देशद्रोह का चार्ज लगा दिया। पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल के ऊपर भी सिडिशन के चार्ज लगाए गए। सिटिजनशिप बिल के विरोध में बोलने वाले असम के सामाजिक कार्यकर्ता अखिल गोगोई के खिलाफ भी इसी कानून का इस्तेमाल किया गया। जाहिर सी बात है कि इस कानून का मजाक बना दिया गया है।
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आप जेएनयू के लेकर होने वाली देशभक्त और देशद्रोह की पूरी बहस और घटना, दोनों के केन्द्र में थे। आपका क्या अनुभव है ? सरकार इस मुद्दे को लेकर कितना गंभीर लगती है ?
मेरा स्पष्ट मानना है कि जो सरकार अपने आप को देशभक्त कहती है लेकिन देश विरोधी गतिविधियों को लेकर गंभीर नहीं है। अगर सरकार देशद्रोह की घटना को लेकर गंभीर होती तो जो चार्जशीट 3 साल बाद फाइल हुई है, वो पहले ही हो गई होती, ट्रायल हो चुका होता। इतना ही नहीं इस मामले में अगर कोई दोषी होता भी तो अब तक उन्हें सजा भी मिल चुकी होती।
ये सरकार इस मुद्दे को लेकर गंभीर नहीं है क्योंकि इन्हें पता है कि इन लोगों ने पूरा षड्यंत्र खुद ही तैयार किया है। ये षड्यंत्र के तहत ही एक बार फिर देशभक्त बनाम देशद्रोही बहस खड़ा करना चाहते हैं। 2019 के चुनाव से पहले, ये चाहते हैं कि परसेप्शन के खेल में इनकी जीत हो क्योंकि इनके कार्यकर्ताओं के पास बोलने के लिए कुछ नहीं रह गया है। मैं कहता हूं कि देश के विरोध में नारेबाजी बेहद गंभीर मसला है। क्यों नहीं जल्द से जल्द देशद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई की गई? मैं अभी भी कह रहा हूं कि इस मामले में स्पीडी ट्रायल हो, पुलिस सारे सबूत को इकट्ठा करके जल्द से जल्द कोर्ट में रखे, दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।
हम इस फेक मुद्दे के पीड़ित हैं। हम जानते हैं कि इस पूरे मामले को किस तरह से रचा गया था। हमको मालूम है कि घटना फरवरी की है लेकिन कैसे इससे पहले नवंबर में ही आरएएस के मुख पत्र पांचजन्य और ऑर्गेनाइजर में जेएनयू के ऊपर स्टोरी आ गई थी। जिसका शीर्षक था- जेएनयू दरार का गढ़। यानि आरएसएस के मुखपत्र में स्टोरी पहले होती है और एंटी नेशनल नारे बाद में लगते हैं। जब मामला कोर्ट में जाएगा तो इनकेषड्यंत्र का खुलासा हो जाएगा। देश को पता चलेगा कि किस तरह से इन लोगों ने लोकतंत्र को कमजोर किया है, किस तरह से संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करके राजनीतिक हित साधने की कोशिश की गई है।
आप लंबे समय से जनता के बीच काम कर रहे हैं। क्या आपको लगता है कि ये मुद्दा चुनाव के दौरान अपना असर दिखाएगा?
देखिए, काठ की हांडी बारृ-बार नहीं चढ़ती। ये सारे पुराने मुद्दों को छेड़कर लाभ ले चुके हैं। चाहे राम मंदिर का मुद्दा हो या फिर कोई और। राम मंदिर का मुददा छेड़कर ये सरकार बना चुके हैं। मस्जिद इसलिए नहीं गिराई गई कि मंदिर बनाना था, मस्जिद इसलिए गिराई गई क्योंकि सरकार बनाना था। राम के नाम पर नाथूराम की राजनीति को लोग समझने लगे हैं।
बहुत दिनों के बाद आरएसएस राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बना है। इससे पहले तक आरएसएस पीछे से काम करता रहता था लेकिन कभी भी राजनीतिक विमर्श का हिस्सा नहीं था आरएसएस। अब आरएसएस का भी असली चेहरा सामने आने लगा है। गांधी की हत्या में आरएसएस का हाथ था इस बारे में भी लोग बात करने लगे हैं। नाथूराम गोडसे, सावरकर जैसे लोगों के बारे में अब चर्चा होने लगी है। आजादी के आंदोलन में इनका कुछ भी योगदान नहीं था, इस पर बात होने लगी है। किस तरह से आरएसएस ने तिरंगे का विरोध किया, किस तरह से संविधान का विरोध किया- ये बातें अब लोग जानने लगे हैं।
ये चाहें जो कर लें, जो हमारे वाजिब सवाल हैं जैसे जैसे कि 15 लाख का क्या हुआ, काला धन कहां गया, रोजगार कहां है, मॉब लिचिंग क्यों हो रही है, इस देश में इंटलेक्चुअल को क्यों मारा जा रहा है- हम ये पूछना बंद नहीं करेंगे।
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