सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से दो जजों के रिटायर होने के बाद दो नए सदस्यों, जस्टिस बी.आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत को शामिल किया गया है। बता दें कि कॉलेजियम के मेंबर रहे दो जज, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस अजय रस्तोगी रिटायर हो गए हैं। इसके बाद कॉलेजियम में बदलाव हुआ है। अब 5 सदस्यीय कॉलेजियम में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं। आगे हम आपको जस्टिस बी.आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत के बारे में बताने जा रहे हैं। कौन हैं, हाल में किस मामले में उन्होंने फैसला दिया है इसके बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। पहले बात करते हैं जस्टिस बीआर गवई की।
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24 नवंबर 1960 को जन्मे जस्टिस गवई को का पूरा नाम भूषण रामकृष्ण गवई है। जस्टिस गवई ने कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद महज 25 साल की उम्र में वकालत की शुरुआत की थी। लंबे वक्त तक बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में प्रैक्टिस करते रहे। महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें अपना सरकारी वकील भी नियुक्त किया। जस्टिस गवई 14 नवंबर 2013 को बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बने, जहां 16 साल तक सेवा दी। इसके बाद 24 मई 2019 को उनका सुप्रीम कोर्ट में तबादला हुआ था।
जस्टिस गवई, साल 2010 में जस्टिस केजी बालाकृष्णन के सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद 9 वर्षों के दौरान उच्चतम न्यायालय में नियुक्त होने वाले पहले दलित जज हैं। जनसत्ता की खबर के मुताबिक जस्टिस बीआर गवई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भी बन सकते हैं। फिलहाल वो कतार में हैं। वरिष्ठता के आधार पर 14 नवंबर 2025 को चीफ जस्टिस नियुक्त हो सकते हैं।
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147 जजमेंट, एक चौथाई क्रिमिनल मामलों में
जनसत्ता ने scobserver पर उपलब्ध 18 मई 2023 तक के डाटा के अनुसार रिपोर्ट बताया है कि जस्टिस गवई 147 फैसले सुना चुके हैं और 422 बेंच का हिस्सा रहे हैं। सर्वाधिक 21 फीसदी आपराधिक मामलो में फैसला सुनाए हैं। इसके अलावा 11 फीसदी फैसले एजुकेशन, 10 फीसदी सिविल और 9 फीसदी प्रॉपर्टी के मामलों से जुड़े हैं।
नोटबंदी को ठहराया था सही
जस्टिस गवई हाल में नोटबंदी को लेकर दिए अपने फैसले के लिए चर्चा में रहे हैं। जस्टिस बीआर गवई, सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच के हिस्से थे जिसने ‘विवेक नारायण शर्मा वर्सेस यूनियन ऑफ़ इंडिया’ मामले में साल 2016 के मोदी सरकार के नोटबंदी वाले फैसले को सही ठहराया था। जस्टिस गवई ने अपने जजमेंट में कहा था कि केंद्र सरकार ने नोटबंदी से पहले आरबीआई से सलाह ली थी। साथ ही केंद्र सरकार को यह अधिकार है कि वह नोटबंदी जैसे निर्णय ले सकती है।
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आगे हम बात करने वाले हैं जस्टिस सूर्यकांत की। इन्हें भी सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में जगह मिली है। हरियाणा के महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक से कानून की पढ़ाई करने वाले जस्टिस सूर्यकांत ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में बतौर एडवोकेट प्रैक्टिस शुरू की थी। हरियाणा सरकार ने साल 1985 में उन्हें अपना एडवोकेट जनरल नियुक्त किया था। साल 2001 में सीनियर एडवोकेट बन गए थे। जस्टिस सूर्यकांत साल 2004 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जज नियुक्त हुए, जहां तकरीबन 14 साल तक रहे। इसके बाद 3 अक्टूबर 2018 को हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस नियुक्त हुए।
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अब तक के रिकॉर्ज के अनुसार जस्टिस सूर्यकांत अब तक 54 जजमेंट दे चुके हैं, जबकि 312 बेंच का हिस्सा रहे हैं। सर्वाधिक 35 फीसदी फैसले आपराधिक मामलों में सुनाए हैं। इसके अलावा 12 फीसदी फैसले मोटर व्हीकल से जुड़े केसेज, 8 फीसदी सर्विसेज और 6 फीसदी इंश्योरेंस से जुड़े मामले में हैं।
OROP पर दिया था फैसला
जस्टिस सूर्यकांत, सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने वन रैंक वन पेंशन से जुड़े मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। इस बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस विक्रम नाथ भी शामिल थे। इसके अलावा दिल्ली पुलिस कमिश्नर के तौर पर राकेश अस्थाना की नियुक्ति से जुड़े मामले की भी सुनवाई की थी।
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