जोकीहाट सीट पर आरजेडी के हाथों जेडीयू की हार के बाद बिहार में एनडीए सरकार के भविष्य को लेकर कयास शुरू हो गए हैं। परिणाम आने के बाद मीडिया में जेडीयू के महासचिव केसी त्यागी का यह वक्तव्य सामने आया, “कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों जैसे कई दलों ने हमसे बातचीत का रास्ता खुला रखा है।” हालांकि उन्होंने जोड़ा, “हम एनडीए के साथ रहना चाहते हैं। हम किसी भई बीजेपी-विरोधी मोर्चे से नहीं जुड़ना चाहते हैं। लेकिन हम अपने आत्म-सम्मान के मसले पर कोई समझौता नहीं करेंगे।“
देश भर में हुए उपचुनाव के परिणाम के मौके पर आया त्यागी का बयान एक बड़े आश्चर्य की तरह सामने आया है। इन उपचुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन काफी खराब रहा है। पिछले साल 27 जुलाई को त्यागी ने इसी तरह का एक बयान दिया था जब अपने पद से इस्तीफा देने के कुछ घंटों बाद ही सीएम नीतीश कुमार ने बीजेपी का दामन थाम लिया था।
जोकीहाट में आरजेडी के शाहनवाज आलम ने जेडीयू के मुर्शिद आलम को 41225 वोटों से मात दी।
अब जेडीयू के पास बिहार विधानसभा में 71 से घटकर 70 सीटें रह गई हैं। इसकी तुलना में आरजेडी की सीटों की संख्या 80 से बढ़कर 81 हो गई है।
मार्च में अररिया लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में आरजेडी के उम्मीदवार सरफराज आलम ने बीजेपी के उम्मीदवार प्रदीप सिंह को 81248 मतों से हराया था।
जोकीहाट की सीट पर उपचुनाव इसलिए कराना पड़ा क्योंकि जेडीयू के टिकट पर यहां से जीते सरफराज आलम आरजेडी की तरफ से अररिया लोकसभा सीट का चुनाव लड़ने के लिए जेडीयू से इस्तीफा दे दिया था। अररिया लोकसभा सीट सरफराज आलम के पिता तस्लीमुद्दीन की मृत्यु के बाद खाली हो गई थी जो इस सीट से आरजेडी सांसद थे।
बिहार की हालिया राजनीति की सबसे अजीब बात यह है कि ऐसे बहुत कम लोग हैं जो नीतीश की हार पर आंसू बहाएंगे।
आरजेडी के लिए जोकीहाट सीट पर मिली जीत का जश्न मनाना स्वाभाविक है क्योंकि पिछले लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों की जीत के थोड़े समय बाद ही उसे फिर से जीत हासिल हुई है। लेकिन वे सीटें पहले भई आरजेडी के पास थीं, जबकि जोकीहाट की सीट को उसने बीजेपी से छीना है।
देश भर में हुए उपचुनावों में बीजेपी के खराब प्रदर्शन से निराश पार्टी के नेता जोकीहाट में नीतीश की हार में उम्मीद की किरण देख रहे हैं क्योंकि यह नीतीश की मोल-तोल की ताकत को और कम कर देगी। उनकी राय है कि एक मजबूत नीतीश अपना हिस्सा चाहते हुए 2019 में बिहार में ज्यादा सीटों की मांग करेंगे।
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जेडीयू की हार के बाद बीजेपी खेमे में संतोष का माहौल होगा। लेकिन दूसरे राज्यों में भगवा पार्टी की पराजय ने बिहार के बीजेपी नेताओं को उधेड़बुन में डाल दिया है। वे अब नीतीश कुमार से हल्का व्यवहार नहीं कर सकते क्योंकि 2019 में उन्हें नीतीश पर निर्भर होना पड़ सकता है।
इस संदर्भ में त्यागी के हालिया बयान को समझा जा सकता है।
एनडीए के भीतर जेडीयू को कमजोर होना और वह भी बीजेपी को फायदा मिलने की स्थिति में आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन के लिए भी अच्छा नहीं है। अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी निश्चित रूप से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन को यह मानना पड़ेगा कि जोकीहाट सीट या फिर अररिया लोकसभा सीट पूरा बिहार नहीं है। जोकीहाट में दो-तिहाई से ज्यादा मुसलमान हैं। इसलिए वहां चुनाव जीतना तुलनात्मक रूप से आसान था, भले ही जेडीयू ने भी वहां मुस्लिम उम्मीदवार उतारा हो। संभव है बिहार के बाकी हिस्सों में ऐसा न हो, जहां लड़ाई मुश्किल होगी।
फिर भी, बीजेपी के लिए चिंता का विषय यह है कि इस बार पूरे बिहार में जीत दिलाने वाली नरेन्द्र मोदी की आंधी नहीं रहेगी।
पहले गोरखपुर-फूलपुर और अब कैराना में बीजेपी की हार ने पड़ोसी राज्य बिहार में बीजेपी कार्यकर्ताओं और समर्थकों के हौसले को भारी मनोवैज्ञानिक धक्का दिया है। इसके अलावा जिस तरह 2014 में बीजेपी ने कुछ यादवों का वोट हासिल करने में कामयाबी पाई थी, इस बार उस तरह की परिस्थिति नहीं है। इसलिए 2014 की तीन-तरफा लड़ाई की बजाय इस बार एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला काफी कांटे का होगा। सबसे अजीब बात यह है कि बिहार के अपने गढ़ में सिकुड़ चुकी जेडीयू गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, मणिपुर और दूसरी जगहों पर अपना विस्तार करने की कोशिश कर रही है। पार्टी के हर स्तर के नेताओं-कार्यकर्ताओं में उपचुनावों में लगातार मिली हार से एक निराशा है। इसके अलावा उन्हें नीतीश कुमार के दोबारा एनडीए में जाने के बाद कुछ नहीं मिला है।
महागठबंधन में पार्टी कार्यकर्ता आरजेडी के साथ काफी समान स्तर पर थे। अब उनकी कोई भूमिका नहीं रह गई है। वे जानते हैं कि एनडीए की पूरी चुनावी मशीन बीजेपी कार्यकर्ताओं के हाथ में रहेगी।
अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले जोकीहाट शायद आखिरी उपचुनाव होगा।
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