झारखंड के सीएम चंपई सोरेन ने वनों पर निर्भर लोगों को वन भूमि का पट्टा देने के अभियान में कोताही या लापरवाही करने वाले अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है।
सीएम ने वन अधिकार अधिनियम पर सोमवार को रांची में आयोजित राज्यस्तरीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि हमारी सरकार ने 'अबुआ वीर अबुआ दिशोम' अभियान के तहत जो रूटमैप तय किया है, उसमें आदिवासी और वन क्षेत्रों में रहने वालों को व्यक्तिगत और सामुदायिक वन संसाधन वन अधिकार पट्टा (लाइसेंस) मुहैया कराया जाएगा। इसके तहत उन्हें चिह्नित क्षेत्र में खेती करने, वनोपजों पर आधारित आजीविका संबंधी कार्य करने का अधिकार हासिल होगा।
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मुख्यमंत्री ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम वर्ष 2006 में लागू हुआ है, लेकिन 18 साल बाद भी हम वन क्षेत्र में रहने वाले परिवारों को वन भूमि का अधिकार देने में काफी पीछे हैं। झारखंड के विभिन्न कार्यालयों में वन पट्टा के हजारों आवेदन रद्द कर दिए गए हैं। आवेदन क्यों रद्द हुए हैं, इसका जवाब जनता को देना पड़ेगा। जो अधिकारी आवेदनों को जानबूझकर रद्द करने का प्रयास करेंगे, उन्हें चिन्हित कर कार्रवाई की जाएगी।
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सोरेन ने कहा कि झारखंड में जंगलों के संरक्षक हमारे आदिवासी-मूलवासी परिवार के लोग ही हैं। वन क्षेत्र में बनी ग्राम समितियों की बदौलत ही जंगल को बचाया जा सका है। यहां के आदिवासी-मूलवासी बहुत ही सरल और साधारण स्वभाव के लोग हैं, लेकिन ये लोग कभी भी अपनी परंपरा, संस्कृति और अस्तित्व की सुरक्षा के लिए पीछे नहीं हटते हैं।
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राज्य सरकार ने वर्ष 2023 में गांधी जयंती के अवसर पर 'अबुआ वीर अबुआ दिशोम' अभियान लॉन्च किया था। उस दिन राज्य के 30 हजार से अधिक ग्राम सभाओं ने जल, जंगल और जमीन तथा इसके संसाधनों की रक्षा के लिए संगठित प्रयास करने की शपथ ली थी। इसके बाद राज्य के वन क्षेत्रों में ग्राम, अनुमंडल एवं जिलास्तर पर वन अधिकार समितियों का गठन किया गया है। इन समितियों की अनुशंसा के आधार पर वन पर निर्भर लोगों और समुदायों को वन अधिकार पट्टा दिया जाना है।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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