सरकार जनधन योजना के खाते खोलने का अभियान फिर शुरू करने की तैयारी में है। लेकिन लगता है, उसे या तो पता ही नहीं है कि उसका पहला ही अभियान सफल नहीं रहा है या फिर, उसने इस बात से आंखें मूंद रखी हैं।
खाते खोलने और उसे मेन्टेन करने का उसका सक्सेस रेट अच्छा नहीं है। जो डाटा नवजीवन को आरटीआई से मिल पाया है, उससे स्पष्ट है कि 37.36 फीसदी जनधन खाते नाॅन-आॅपरेशनल या नाॅन-ट्रांजेक्शनल हैं। मतलब यह कि नए खाते खोलने से पहले सरकार को देखना चाहिए कि ऐसे खातों में ट्रांजेक्शन बढ़ें और वे आॅपरेशनल हों, इसके लिए क्या किया जाए। आर्थिक सोच सही नहीं होने की वजह से इस योजना की हालत भी नोटबंदी की तरह हो जाने का खतरा है। ऐसा मानने की वजह है। बैंकों का नियम यह है कि एक साल तक नॉन-आॅपरेशनल रहे खाते को फिर से शुरू करने के लिए केवाईसी की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। ज्यादा दिन होने पर ऐसे खाते बैंक फ्रीज कर देते हैं।
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सरकार इन खातों को लेकर पहले से ही लोगों को सही और पूरी जानकारी नहीं दे रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले 12 सितंबर तक इस योजना के तहत 32.68 करोड़ खाते खुल चुके हैं। योजना शुरू होने के चार साल बाद भी इनमें से करीब 8 करोड़ लोगों को रूपे कार्ड जारी किया जाना अभी बाकी है। इस योजना का सबसे बड़ा आकर्षण यह है कि ये एक लाख रुपये का दुर्घटना बीमा कवर करते हैं। लेकिन जनधन योजना के नियम के अनुसार, व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा के तहत दावा तभी देय होगा जब खाता ऑपरेशनल हो। कारण यह है कि बीमा दावे के लिए जरूरी है कि रूपे कार्डधारक ने किसी भी बैंक शाखा, बैंक मित्र, एटीएम, पीओएस, ई-कॉम आदि चैनल पर कम से कम एक सफल वित्तीय या गैर-वित्तीय लेन-देन किया हो। इस तरह का लेन-देन अपने स्वयं के बैंक और/या किसी दूसरे बैंक के माध्यम से दुर्घटना की तारीख से 90 दिन के भीतर किया गया हो।
इस हिसाब से जिनके खाते नाॅन-आॅपरेशनल हैं, वे व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा के पात्र नहीं हैं। यह मानने की वजह है कि इस बात को अधिकांश खाताधारक नहीं जानते क्योंकि ये खाते आम तौर पर कमजोर आर्थिक वर्ग, अधिकांशतः कम पढ़े-लिखे वर्ग के लोगों के हैं। इसी कारण करोड़ों की तादाद में जनधन योजना खाते बंद होते जा रहे हैं और गरीब जनता को राहत नहीं मिल रही है।
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