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जम्मू-कश्मीर: बारूदी सुरंगों पर सेना के दावों पर ही संदेह, एंटी माइन बूटों की खरीद पर उठते सवाल

सीमा पर बारूदी सुरंगे बिछाई गई थीं, ताकि पाकिस्तान की ओर से आतंकवादियों की घुसपैठ रुके। लेकिन अब तक किसी भी घुसपैठिए के बारूदी सुरंगों की चपेट में आकर मारे जाने या घायल होने की खबर नहीं मिली, बल्कि हमारे अपने ही लोग इनके शिकार जरूर होते रहे हैं।

फोटो: नवजीवन ग्राफिक्स
फोटो: नवजीवन ग्राफिक्स एंटी माइन बूटों की खरीद पर उठते सवाल

बारूदी सुरंगों को लेकर सेना के दावों को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। सेना की जम्मू में 15वीं कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट परमजीत सिंह ने पिछले माह घोषणा की कि सेना ने सीमा रेखा के पास तैनात जवानों के लिए सुरंगों से रक्षा वाले विशेष किस्म के बूटों की खरीद कर ली है। एक न्यूज एजेंसी को उन्होंने बताया कि घुसपैठ रोकने के अभियानों के तहत सैनिकों को भारतीय सीमा में आगे तक जाना पड़ता है और आतंकियों तथा उनका साथ देने वाले लोगों का पीछा करना पड़ता है।

सेना जिस तरह बारूदी सुरंगों का उपयोग करने और बारूदी सुरंगों में विस्फोटों से इंकार कर रही है, उनसे इस तरह के एंटी माइन बूटों की खरीद पर संदेह होता है कि कहीं यह सिर्फ पैसा बनाने का धंधा तो नहीं है। विशेषज्ञ कहते हैं कि व्यवहारिक कारणों से सुरंगों में काम करने वाले लोग भी इस तरह के ‘माइन प्रूफ बूट्स’ पहनना उचित नहीं समझते। दरअसल, इसे पहनने वाले को झुककर चलना पड़ता है। ऐसे में, इन बूटों को पहनकर सैनिक आखिर सुरंग वाले इलाकों में किस तरह आतंकियों का पीछा कर सकते हैं? कनाडा और ब्रिटेन के विस्फोट-रोधी बूट वेंडरों के तर्क स्वतंत्र वैज्ञानिक प्रमाणों पर खरे नहीं उतरते। बारूदी सुरंगों का उपयोग खत्म करने के लिए काम कर रहे जेनेवा के एक एक्टिविस्ट का कहना भी है, “माइन प्रूफ बूट्स! ओह, हां... बारूदी सुरंग में बिना क्षति पहुंचे घूमने का सपना एक सपना ही है...! इसका नाम ही भ्रमित करने वाला है। सुरंग बिल्कुल अलग आकार और माप में होती हैं, इसलिए ‘माइन प्रूफ’ जैसी कोई चीज होती ही नहीं।” उनका कहना है कि जमीन पर ट्रिप वायर से होने वाले सुरंग-विस्फोट से किसी तरह के जूते से रक्षा नहीं हो सकती। इस तरह के हर बूट की तली में कोई-न-कोई सोखने वाले पदार्थ का उपयोग होता है। एक छोटे विस्फोट से भी वह जूते में चीर-फाड़ कर ही देगा। वैसे भी, कोई भी विस्फोट आदमी को कुछ दूर फेंक देगा और तब वह दूसरी बारूदी सुरंग पर जा गिरेगा।

इंटरनेशनल माइन एक्शन स्टैंडर्ड्स का भी साफ कहना है कि फिलवक्त, यही कहा जा सकता है कि विस्फोट-रोधी जूते ‘झूठी सुरक्षा’ का दावा करते हैं और यह खतरनाक बात है। उनका कहना है कि इस तरह के ‘जूतों की क्षमता और उनका सामरिक लाभ विवादित मुद्दा है...अब तक (अमेरिकी सरकार द्वारा प्रायोजित) सिर्फ एक स्वतंत्र जांच हुई है और उसने भी कहा है कि...इनसे होने वाले लाभ अप्रमाणित हैं।’

लोगों को हताहत करने वाली बारूदी सुरंगों के खिलाफ गैरसरकारी संगठनों के अंतरराष्ट्रीय संगठन इंटरनेशनल कैंपेन टु बैन लैंडमाइंस (आईसीबीएल) को नोबेल पुरस्कार तक मिल चुका है। इसकी रिसर्च टीम- लैंडमाइंस एंड क्लस्टर एम्युनीशन मॉनीटर के रिसर्च को-ऑर्डिनेटर येशुआ माजर-पुआनसुवान यह बात रेखांकित करते हैं कि ‘पाकिस्तान की तरफ से आ रहे हथियारबंद घुसपैठियों की बारूदी सुरंगों के फटने से हताहत होने की कोई खबर नहीं आ रही है। उन्हें समय-समय पर गोली मारकर गिरा देने की सूचनाएं आती रही हैं, लेकिन इससे भी अधिक अपनी ही बिछाई सुरंगों से हताहत होने की सूचनाएं आती रहती हैं।...इसे जारी रहने वाली ट्रैजेडी के तौर पर देखा जाना चाहिए।’

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येशुआ बताते हैं कि ‘आईसीबीएल ने पिछले साल दिसंबर में जेनेवा में भारतीय दूतावास के जरिये विदेश मंत्रालय को पत्र भेजा था, लेकिन अब तो कोई जवाब आया नहीं है। इस साल 30 अगस्त को कन्वेंशनल वीपन्स ग्रुप ऑफ गवर्नमेंटल एक्सपर्ट्स की बैठक के दौरान रक्षा मंत्रालय की तरफ से जेनेवा गए कर्नल सुमित कबथियाल के साथ एलओसी पर हताहतों के बारे में बात की गई तो उन्होंने बारूदी सुरंगों में विस्फोटों की बातों से साफ मना कर दिया और इस बारे में ऑनलाइन रिपोर्ट्स को झूठा बताया।’

संयुक्त राष्ट्र को बारूदी सुरंगों के मुद्दे पर अपनी औपचारिक वार्षिक रिपोर्ट में भारत ने इस साल लिखा है कि ‘भारत बारूदी सुरंगों की चुनौतियों से मुक्त संयुक्त राष्ट्र के उस विचार का समर्थन करता है... जिसमें आदमी और समुदाय विकास में सहायक सुरक्षित वातावरण में रहते हैं और जहां विस्फोटों से बचे लोग अपने समाजों में पूरी तरह मिल-जुलकर रहते हैं।’ लेकिन नियंत्रण रेखा के पास रह रहे लोगों के साथ ऐसा नहीं हो रहा है।

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