जम्मू-कश्मीर में पाबंदियों को हटाए जाने की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अपने सभी आदेशों पर 7 दिन के अंदर एक बार फिर से गौर करने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने इन प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार जल्द ही घाटी से गैर जरूरी आदेशों को वापस ले। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने घाटी के कुछ इलाकों में जरुरत के मुताबिक इंटरनेट सेवाएं फिर से बहाल करने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि सरकार घाटी में ई-बैंकिंग और ट्रेड सर्विस को जल्द शुरू करे।
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कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी एक अनिवार्य तत्व है। इंटरनेट का उपयोग करने का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) (A) के तहत एक मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि केंद्र सरकार घाटी में लगाए जाने वाले प्रतिबंधों के फैसलों को भी सार्वजनिक करे।
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कोर्ट ने कहा कि सरकार अनिश्चितकाल के लिए इंटरनेट पर प्रतिबंध नहीं लगा सकती और न ही लंबे समय तक धारा 144 लगा सकती है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान तीन जजों की बेंच ने कहा, “हमारा काम आजादी और सुरक्षा में तालमेल रखना है। कश्मीर ने काफी हिंसा देखी है और नागरिकों के अधिकार की रक्षा करना हमरा कर्तव्य है।”
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सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार जम्मू-कश्मीर राज्य प्रशासन इंटरनेट पर पाबंदी, धारा 144, ट्रैवल पर रोक से जुड़े सभी आदेशों को जल्द से जल्द सार्वजनिक करे और ही 7 दिन के अंदर इन फैसलों की समीक्षा करे।
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पिछले साल कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद द्वारा घाटी में केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के खिलाफ याचिका दाखिल की गई थी, जिसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्ययी बैंच ने 27 नवंबर को पूरी की थी। इसी याचिका पर कोर्ट ने आज फैसला सुनाया है।
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बता दें कि 5 अगस्त को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35A को हटा दिया था, जिसके बाद घाटी में फोन और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई थीं। हालांकि कुछ महीनों के बाद प्रीपेड फोन सेवाएं बहाल कर दी गई थीं। इसके अलावा कश्मीर में विपक्ष के नेताओं की एंट्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया गाय था।
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