भारत ने अपने तीसरी पीढ़ी के मौसम उपग्रह इनसैट-3डीएस को शनिवार शाम सफलतापूर्वक प्रारंभिक अस्थायी कक्षा में स्थापित कर दिया।
श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से शाम करीब 5.35 बजे 51.7 मीटर लंबा और 420 टन वजन वाले तीन चरणों वाले जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) रॉकेट ने अंतरिक्ष की ओर उड़ान भरी। मिशन को जीएसएलवी-एफ14 नाम दिया गया था। करीब 19 मिनट बाद रॉकेट ने 2,274 किलोग्राम वजनी इनसैट-3डीएस को अस्थायी कक्षा (जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट) में स्थापित कर दिया जहाँ से चरणबद्ध तरीके से कक्षा उन्नयन कर उपग्रह को भू-स्थैतिक कक्षा में स्थानांतरित किया जायेगा।
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इनसैट-3डीएस भारत का तीसरी पीढ़ी का मौसम उपग्रह है। यह पूरी तरह से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित है। इसे मौसम की भविष्यवाणी और आपदा चेतावनी के लिए उन्नत मौसम संबंधी अवलोकन और भूमि तथा महासागर सतहों की निगरानी के लिए डिज़ाइन किया गया है।
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि इनसैट-3डीएस पहले से अंतरिक्ष में मौजूद इनसैट-3डी और इनसैट-3डीआर उपग्रहों के साथ मौसम संबंधी सेवाओं को बेहतर बनायेगा।
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव से मुक्त होकर जैसे ही जीएसएलवी रॉकेट आसमान की ओर बढ़ा मिशन नियंत्रण कक्ष में इसरो के वैज्ञानिक रॉकेट की उड़ान की प्रगति को देखते हुए अपने कंप्यूटर स्क्रीन से चिपके हुए थे।
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पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत विभिन्न विभाग जैसे भारत मौसम विज्ञान विभाग, राष्ट्रीय मध्यम-सीमा मौसम पूर्वानुमान केंद्र, भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र, और विभिन्न अन्य एजेंसियां तथा संस्थान बेहतर मौसम पूर्वानुमान और मौसम संबंधी सेवाएं प्रदान करने के लिए इनसैट-3डीएस उपग्रह के डेटा का उपयोग करेंगे।
इसरो के मुताबिक, इनसैट-3डीएस को बनाने में भारतीय उद्योगों का अहम योगदान है। उपग्रह में छह चैनल इमेजर, 19 चैनल साउंडर पेलोड, डेटा रिले ट्रांसपोंडर (डीआरटी) और सैटेलाइट सहायता प्राप्त खोज और बचाव (एसए एंड एसआर) ट्रांसपोंडर हैं।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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